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MP Fraud News: मध्यप्रदेश के मंडला जिले में सहकारी बैंकिंग प्रणाली से जुड़ा एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने दस्तावेजों की विश्वसनीयता और संस्थागत निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक अस्वीकृत ऋण को महज एक अक्षर हटाकर स्वीकृत दिखा दिया गया और 65 लाख रुपये का ऋण बांट भी दिया गया। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) की जांच के बाद इस पूरे प्रकरण में तत्कालीन महाप्रबंधक समेत चार अधिकारियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया गया है।
कागज में हेरफेर कर फर्जीवाड़ा
यह मामला जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित मंडला और उससे संबद्ध अल्प बचत साख सहकारी समिति से जुड़ा है। जांच में सामने आया कि साल 2011 में बैंक की ऋण उप समिति की बैठक में जिस प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से अस्वीकृत किया गया था, उसी प्रस्ताव को बाद में कूटरचना (Forgery) के जरिए स्वीकृत बना दिया गया। यह बदलाव केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसके आधार पर वास्तविक धनराशि का वितरण भी कर दिया गया।
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बैठक में खारिज हुआ था ऋण प्रस्ताव
8 नवंबर 2011 को हुई ऋण उप समिति की बैठक में अल्प बचत साख सहकारी समिति मंडला का नया ऋण आवेदन रखा गया था। समिति पर पहले से 38 लाख रुपये का बकाया होने के कारण इस प्रस्ताव को बैठक में अस्वीकृत कर दिया गया था। यह निर्णय बैठक के आधिकारिक दस्तावेजों में दर्ज भी किया गया। बाद में इन्हीं दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की गई।
एक अक्षर हटाया, पूरा अर्थ बदला
ईओडब्ल्यू की जांच में यह तथ्य सामने आया कि आरोपियों ने अस्वीकृत शब्द से ‘अ’ अक्षर को मिटा दिया, जिससे वह स्वीकृत पढ़ने में आने लगा। यहीं नहीं, दस्तावेज की अंतिम पंक्ति में अतिरिक्त शब्द जोड़कर 65 लाख रुपये की अल्प कृषि ऋण साख सीमा (Agricultural Credit Limit) को स्वीकृत दर्शा दिया गया। इस कागजी बदलाव ने पूरे निर्णय का अर्थ ही पलट दिया।
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तीन दिन में जारी हुआ आदेश, बांटी गई राशि
जांच एजेंसी के अनुसार तत्कालीन महाप्रबंधक नरेन्द्र कोरी की भूमिका इस पूरे घटनाक्रम में संदिग्ध पाई गई। बैठक के केवल तीन दिन बाद, 12 नवंबर 2011 को उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कृषि शाखा मंडला को आदेश जारी कर दिया। आदेश में 65 लाख रुपये का ऋण स्वीकृत बताया गया और यह राशि समिति के सदस्यों में वितरित भी कर दी गई।
मौजूदा प्रबंधन पर भी उठे सवाल
ईओडब्ल्यू की जांच में यह भी सामने आया कि वर्तमान प्रबंधक शशि चौधरी के कार्यकाल में भी नियमों की अनदेखी हुई। समिति की उपविधि (bylaws) के विपरीत गैर सदस्यों से 26 लाख 68 हजार 436 रुपये की राशि प्राप्त की गई, जिसे जांच एजेंसी ने अवैधानिक और धोखाधड़ी की श्रेणी में माना है।
चार अधिकारियों के खिलाफ अपराध दर्ज
जांच पूरी होने के बाद ईओडब्ल्यू ने चार लोगों को आरोपी बनाया है। इनमें तत्कालीन महाप्रबंधक नरेन्द्र कोरी, तत्कालीन स्थापना प्रभारी एनएल यादव, तत्कालीन लेखापाल और पंजी फील्ड कक्ष प्रभारी अतुल दुबे तथा अल्प बचत साख सहकारी समिति मंडला के प्रबंधक शशि चौधरी शामिल हैं। जांच एजेंसी ने इसे बैंक को प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान पहुंचाने और आपराधिक षड्यंत्र (Criminal Conspiracy) का गंभीर मामला माना है।
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