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व्यापमं के आरक्षक भर्ती घोटाले में कोर्ट का फैसला।
Constable Recruitment Fraud Gwalior CBI Court Judgement: मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले से जुड़े एक आरक्षक भर्ती फर्जीवाड़े में ग्वालियर की विशेष सीबीआई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मूल परीक्षार्थी रणवीर सिंह (आगरा) और उसकी जगह परीक्षा देने वाले सॉल्वर हरवेंद्र चौहान उर्फ प्रवेंद्र (जयपुर) को 7-7 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई है, साथ ही 12-12 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
यह पहली बार है जब व्यापमं से जुड़े किसी मामले में 7 साल की इतनी कठोर सजा दी गई है। 30 सितंबर 2012 को हुए इस फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ जब परीक्षा केंद्र पर फोटो और हस्ताक्षर का मिलान नहीं हुआ। कोर्ट ने इस धोखाधड़ी को सुनियोजित अपराध करार दिया।
सॉल्वर और मुन्नाभाई को 7-7 साल की कठोर सजा
ग्वालियर स्थित विशेष सत्र न्यायालय ने आरक्षक भर्ती परीक्षा 2012 से जुड़े फर्जीवाड़े के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस मामले में, आरोपी मूल परीक्षार्थी रणवीर सिंह और उसके स्थान पर परीक्षा देने वाले सॉल्वर हरवेंद्र चौहान उर्फ प्रवेंद्र को दोषी ठहराया गया। जज ने दोनों आरोपियों को सात-सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। इसके अतिरिक्त, दोनों पर 12-12 हजार रुपए का आर्थिक जुर्माना भी लगाया गया है। इस प्रकरण में सीबीआई ने जांच पूरी कर कोर्ट में चार्जशीट पेश की थी, जिसके आधार पर यह फैसला आया है।
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कोर्ट ने देर रात तक बैठकर सुनाया फैसला
इस मामले की सुनवाई को लेकर कोर्ट का रुख बेहद सख्त रहा। जज ने यह तय कर लिया था कि वे उस दिन फैसला सुनाकर ही कोर्ट से जाएंगे। आरोपियों के कोर्ट में हाजिर न होने के कारण सुनवाई में विलंब हुआ। आरोपी हरवेंद्र चौहान की पेशी का इंतजार करते हुए कोर्ट रात 8 बजे तक बैठी रही, जबकि आमतौर पर न्यायालयों का काम शाम तक समाप्त हो जाता है।
आरोपियों के वकीलों ने उनके रास्ते में होने की जानकारी बार-बार कोर्ट को दी। आखिरकार, करीब तीन घंटे के इंतजार के बाद जब आरोपी कोर्ट में हाजिर हुए, तो जज को सजा सुनाने में सिर्फ 15 मिनट का समय लगा।
यह फैसला इस दृष्टि से भी ऐतिहासिक है क्योंकि व्यापमं घोटाला से जुड़े किसी प्रकरण में पहली बार इतनी कठोर यानी सात वर्ष की सजा सुनाई गई है। इससे पहले, इन मामलों में अधिकतम सजा पांच वर्ष तक ही दी जाती रही थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कोर्ट ने इस अपराध को अत्यंत गंभीर माना है।
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सुनियोजित धोखाधड़ी: ऐसे हुआ था खुलासा
कोर्ट ने अपने फैसले में इस धोखाधड़ी को सुनियोजित बताया। न्यायालय ने टिप्पणी की कि वास्तविक परीक्षार्थियों की जगह अन्य व्यक्तियों को बैठाने की योजना व्यवस्थित तरीके से बनाई जाती है, और इस मामले में भी यही हुआ था। चूँकि यह एक मान्यता प्राप्त भर्ती परीक्षा थी, इसलिए इसमें किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया।
इस फर्जीवाड़े का खुलासा 30 सितंबर 2012 को परीक्षा केंद्र पर हुआ था। परीक्षार्थी रणवीर सिंह की जगह हरवेन्द्र सिंह उर्फ प्रवेन्द्र सिंह चौहान परीक्षा दे रहा था। केंद्र पर ड्यूटी कर रही एक शिक्षिका ने पाया कि एडमिट कार्ड पर लगे परीक्षार्थी के फोटो और हस्ताक्षर फार्म में मौजूद विवरण से मेल नहीं खा रहे हैं, दोनों मिस मैच है। टीचर ने तुरंत केंद्र अध्यक्ष को इसकी सूचना दी, जिसके बाद पूछताछ में यह पूरा मामला पकड़ में आया। मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल एफआईआर दर्ज की गई और बाद में सीबीआई ने चालान कोर्ट में पेश किया।
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