Ujjain Land Pooling Controversy: सिंहस्थ से पहले उज्जैन की राजनीति में लैंड पूलिंग (Land Pooling) का मामला गरमाता जा रहा है। उज्जैन उत्तर से भाजपा के जिस विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा ने कुछ महीने पहले विधानसभा में इस व्यवस्था का समर्थन किया था, अब इसके विरोध में खुलकर खड़े हो गए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा को पत्र लिखकर लैंड पूलिंग एक्ट (Act) को पूरी तरह समाप्त करने की मांग की है।
अनिल जैन कालूहेड़ा ने अपने पत्र में लिखा है कि 17 नवंबर को शासन, किसान संगठनों और जनप्रतिनिधियों की संयुक्त बैठक में लैंड पूलिंग एक्ट को समाप्त करने का निर्णय लिया गया था। इसके बावजूद अब तक इस फैसले को लागू नहीं किया गया है। उन्होंने पत्र में साफ किया है कि यदि सरकार ने जल्द निर्णय पर अमल नहीं किया तो वे किसानों के साथ सड़क पर उतरने को मजबूर होंगे। 26 दिसंबर को भारतीय किसान संघ द्वारा प्रस्तावित ‘घेरा डालो–डेरा डालो’ आंदोलन में शामिल होने की चेतावनी भी उन्होंने दी है।
कालूहेड़ा ने लैंड पूलिंग के साथ-साथ सिंहस्थ क्षेत्र से जुड़ी अन्य मांगें भी सामने रखी हैं। उन्होंने लिखा है कि सिंहस्थ भूमि पर पहले से बस चुकी लगभग एक लाख की आबादी को आवासीय (Residential) उपयोग का लाभ दिया जाए और उनकी जमीन को सिंहस्थ उपयोग से मुक्त किया जाए। इसके अलावा पिपलीनाका क्षेत्र की तीन सड़कों के चौड़ीकरण (Road Widening) पर भी दोबारा विचार करने की मांग की गई है।
मार्च में विधानसभा में लैंड पूलिंग पर चर्चा के दौरान कालूहेड़ा ने कहा था कि सिंहस्थ उनकी विधानसभा में हो रहा है और इससे विकास हो रहा है। अब उन्होंने कहा है कि लैंड पूलिंग एक्ट समाप्त नहीं किया गया, इसलिए वे किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए विवश हैं। इस बदले हुए रुख ने उज्जैन की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है।
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यहां उज्जैन लैंड पूलिंग मामले को आसान और तथ्यात्मक तरीके से समझाने के लिए 5 डिटेल FAQ दिए जा रहे हैं।
जरूरी सवालों के आसान जवाब...
उज्जैन लैंड पूलिंग मामला क्या है?
उज्जैन में सिंहस्थ 2028 की तैयारियों के तहत सरकार ने शहर और आसपास के ग्रामीण इलाकों की जमीन को एक साथ विकसित करने के लिए लैंड पूलिंग योजना लागू की थी। इसके तहत किसानों और भू-स्वामियों से उनकी जमीन लेकर उस पर सड़क, ड्रेनेज, बिजली जैसी सुविधाएं विकसित की जानी थीं और बाद में विकसित जमीन का एक हिस्सा उन्हें वापस दिया जाना था। सरकार का दावा था कि इससे बिना जबरन जमीन अधिग्रहण के विकास संभव होगा, लेकिन किसानों को लगा कि उनकी जमीन पर अधिकार कमजोर हो जाएंगे।
इस लैंड पूलिंग योजना पर विवाद क्यों हुआ?
विवाद इसलिए हुआ क्योंकि बड़ी संख्या में किसानों और स्थानीय लोगों को डर था कि उनकी उपजाऊ जमीन स्थायी रूप से सरकारी नियंत्रण में चली जाएगी। कई किसानों का कहना था कि उन्हें यह स्पष्ट नहीं किया गया कि कितनी जमीन वापस मिलेगी और किस समय मिलेगी। सिंहस्थ क्षेत्र घोषित होने के बाद जमीन के उपयोग पर लगने वाले प्रतिबंधों ने भी नाराजगी बढ़ाई। किसानों को आशंका थी कि भविष्य में वे अपनी जमीन न बेच पाएंगे और न ही उसका मनचाहा उपयोग कर सकेंगे।
सरकार ने लैंड पूलिंग को जमीन अधिग्रहण के किस कानून के तहत लागू किया था?
उज्जैन लैंड पूलिंग योजना सीधे भूमि अधिग्रहण कानून (Land Acquisition Act) के तहत नहीं लाई गई थी। इसे मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 (Madhya Pradesh Town and Country Planning Act, 1973) के तहत लागू किया गया था। सरकार का तर्क था कि यह अधिग्रहण नहीं बल्कि स्वैच्छिक विकास मॉडल है, लेकिन किसानों ने इसे परोक्ष अधिग्रहण बताया।
सरकार ने लैंड पूलिंग योजना वापस क्यों ली?
लगातार किसान आंदोलनों, राजनीतिक विरोध और जनप्रतिनिधियों की आपत्तियों के बाद सरकार को पीछे हटना पड़ा। किसानों ने साफ कहा कि वे किसी भी कीमत पर जमीन पूलिंग में देने को तैयार नहीं हैं। उज्जैन और आसपास के इलाकों में विरोध इतना बढ़ गया कि यह कानून-व्यवस्था और राजनीतिक दबाव का मुद्दा बन गया। इसके बाद 17 नवंबर को शासन, किसान संगठनों और जनप्रतिनिधियों की बैठक में लैंड पूलिंग योजना समाप्त करने पर सहमति बनी।
क्या लैंड पूलिंग वापस लेने का कोई शासकीय आदेश जारी हुआ?
सरकार ने सार्वजनिक मंचों और बैठकों में लैंड पूलिंग योजना वापस लेने की घोषणा जरूर की, लेकिन लंबे समय तक इसका स्पष्ट और अलग से जारी शासकीय आदेश (Government Order) सामने नहीं आया। यही वजह है कि किसान और कुछ विधायक अब भी आशंकित हैं और औपचारिक आदेश की मांग कर रहे हैं। प्रशासनिक स्तर पर प्रक्रिया रोकने की बात कही गई, लेकिन कानूनी रूप से स्पष्ट अधिसूचना (Notification) को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही।