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MP High Court: आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन पर हाईकोर्ट का फैसला, बहादुरी के आधार पर प्रमोशन कानूनी हक नहीं, प्रधान पुलिस आरक्षक की अपील खारिज

ग्वालियर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक प्रधान पुलिस आरक्षक की अपील को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने 2007 में डकैतों के एनकाउंटर में शामिल होने के आधार पर आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन की मांग की थी।

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Vikram Jain
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ग्वालियर हाईकोर्ट।

Madhya Pradesh High Court Out-of-Turn Promotion Verdict: मध्यप्रदेश में पुलिसकर्मियों के आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन (सेवा के दौरान तय समय से पहले पदोन्नति) के मामलों में ग्वालियर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक प्रधान आरक्षक की अपील को खारिज करते हुए यह साफ कर दिया कि बहादुरी या किसी विशिष्ट कार्य के आधार पर पदोन्नति पाना किसी भी कर्मचारी का कानूनी हक नहीं होता है। 

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प्रधान आरक्षक ने यह पदोन्नति 2007 में ग्वालियर-चंबल में हुए एक बड़े डकैत एनकाउंटर में अपनी भागीदारी के आधार पर मांगी थी। कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता का नाम जांच रिपोर्ट में शामिल नहीं था और उसके सक्रिय योगदान के दस्तावेजी साक्ष्य भी नहीं थे, जबकि इसी एनकाउंटर में 35 पुलिसकर्मियों को प्रमोशन मिला था।

आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन पर हाईकोर्ट का रुख

मध्यप्रदेश पुलिस के एक प्रधान आरक्षक ने ग्वालियर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में एक अपील दायर की थी। इस अपील में उन्होंने 15 मार्च 2007 को ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कुख्यात डकैत जगजीवन और परमजीत के गिरोह के साथ हुई मुठभेड़ में शामिल होने का दावा करते हुए आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन की मांग की थी।

कोर्ट ने क्यों खारिज की अपील?

हाईकोर्ट ने प्रधान आरक्षक की अपील को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं।

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  • कानूनी हक नहीं: कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि बहादुरी या विशिष्ट सेवा के आधार पर प्रमोशन मिलना एक कानूनी अधिकार (Legal Right) नहीं है, जिसका दावा याचिकाकर्ता अदालत में कर सके।
  • प्रशासनिक विवेक: यह फैसला पूरी तरह से प्रशासनिक विवेक (Administrative Discretion) पर निर्भर करता है कि किसे आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन दिया जाना है।
  • साक्ष्यों का अभाव: कोर्ट ने यह भी पाया कि जांच रिपोर्ट में प्रधान आरक्षक के नाम का कोई उल्लेख नहीं था, न ही उनकी सक्रिय भागीदारी या योगदान को प्रमाणित करने वाले कोई दस्तावेज पेश किए गए। (Out of turn promotion Madhya Pradesh) 

प्रधान आरक्षक का दावा क्या था?

याचिकाकर्ता प्रधान आरक्षक ने अपने दावे में कहा था कि वह उस पुलिस पार्टी के चालक थे, जो 14 मार्च 2007 को डकैतों को पकड़ने के लिए रवाना हुई थी। 15 मार्च को हुई इस मुठभेड़ में कुल 7 डकैत ढेर किए गए थे। याचिकाकर्ता ने बताया कि इस एनकाउंटर में शामिल कुल 35 पुलिसकर्मियों को आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन दिया गया था, जिसमें उसके साथ गई टीम के दो अन्य सदस्यों को भी प्रमोशन मिला, लेकिन उसका दावा खारिज कर दिया गया।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि एनकाउंटर पार्टी के चालक के रूप में उसकी सक्रिय भूमिका थी, लेकिन कोर्ट ने दस्तावेजों के अभाव और प्रशासनिक विवेक के तर्क को मानते हुए उनकी अपील को खारिज कर दिया।

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