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PWD Engineers Protest: लोक निर्माण विभाग (PWD) में औचक निरीक्षण व्यवस्था को लेकर बड़ा टकराव सामने आया है। करीब एक हजार इंजीनियर और सरकार आमने-सामने हैं। इंजीनियरों का कहना है कि नई व्यवस्था में उनका दखल लगभग खत्म हो गया है और पूरा सिस्टम सॉफ्टवेयर के आधार पर चल रहा है। इसी विरोध में सोमवार (22 दिसंबर) को बड़ी संख्या में इंजीनियरों ने औचक निरीक्षण से दूरी बना ली। जो इंजीनियर निरीक्षण के लिए पहुंचे, उन्हें भी विरोध का सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद अब विभाग ने सख्त रुख अपना लिया है।
विरोध के बाद विभाग हरकत में
लोक निर्माण विभाग से जुड़ी अलग-अलग विंग के तीनों इंजीनियर इन चीफ इस मामले में सक्रिय हो गए हैं। सभी चीफ इंजीनियरों को निर्देश दिए गए हैं कि काम से दूरी बनाने वाले और औचक निरीक्षण का विरोध करने वाले इंजीनियरों की पूरी जानकारी जुटाई जाए। नाम और फोटो के साथ उनका डेटा तैयार कर अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा ईएनसी को भेजने के आदेश दिए गए हैं। इसके साथ ही यह भी जांच की जा रही है कि कौन से इंजीनियर लंबे समय से अनुपस्थित हैं या काम नहीं कर रहे हैं।
सॉफ्टवेयर आधारित निरीक्षण बनी विरोध की वजह
निर्माण कार्यों में गुणवत्ता सुधार के उद्देश्य से पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह ने फरवरी महीने में औचक निरीक्षण व्यवस्था लागू की थी। इस व्यवस्था में सॉफ्टवेयर के जरिए निरीक्षण स्थल का चयन होता है। निरीक्षण से एक दिन पहले संबंधित स्थान की जानकारी सिस्टम द्वारा दी जाती है। इसके बाद चीफ इंजीनियर और अन्य वरिष्ठ इंजीनियर मौके पर जाकर निर्माण कार्य का निरीक्षण करते हैं। जहां गुणवत्ता में कमी पाई जाती है, वहां संबंधित इंजीनियर और ठेकेदार पर कार्रवाई की जाती है। वहीं अच्छा काम करने वालों को प्रोत्साहित भी किया जाता है।
सात जिलों में पहुंचते ही शुरू हुआ विरोध
इस बार सॉफ्टवेयर के माध्यम से सात जिलों का चयन किया गया था, जिनमें मुरैना, छतरपुर, रायसेन, बुरहानपुर, सिवनी और शहडोल शामिल हैं। जब इन जिलों में चीफ इंजीनियर निरीक्षण के लिए पहुंचे, तो लोक निर्माण, लोक निर्माण भवन, एमपीआरडीसी (MPRDC), बिल्डिंग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (Building Development Corporation) और एनएचएआई (NHAI) से जुड़े इंजीनियरों ने खुला विरोध शुरू कर दिया।
इंजीनियरों का पक्ष और विभाग की सफाई
इंजीनियर एसोसिएशन के अनुसार, उनका विरोध गुणवत्ता जांच से नहीं, बल्कि एकतरफा कार्रवाई के तरीके से है। उनका दावा है कि फील्ड में आधे से ज्यादा पद खाली हैं, ऐसे में पूरी जिम्मेदारी इंजीनियरों पर डालना उचित नहीं है।
वहीं विभागीय अधिकारियों का कहना है कि अब तक सिर्फ सात इंजीनियरों पर कार्रवाई हुई है, जबकि करीब 50 ठेकेदारों पर भी कदम उठाए गए हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इंजीनियरों की मांग उचित नहीं है।
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