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Maa Baglamukhi Temple: बगलामुखी मंदिर से जुड़ी जमीन पर सरकार का हक लौटा, हाईकोर्ट ने फर्जी डिक्री को किया रद्द, चला बुलडोजर

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बगलामुखी मंदिर परिसर की 200 करोड़ की जमीन पर सरकार का हक बहाल किया और 1997 की फर्जी डिक्री को पूरी तरह शून्य घोषित किया।

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Wasif Khan
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Maa Baglamukhi Temple: आगर मालवा के नलखेड़ा स्थित प्रसिद्ध मां बगलामुखी मंदिर परिसर से जुड़ी करीब 200 करोड़ रुपए की भूमि पर अब राज्य सरकार का नियंत्रण फिर बहाल हो गया है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने राज्य शासन के पक्ष में फैसला देते हुए सनत कुमार और अन्य याचिकाकर्ताओं की पहली अपील खारिज कर दी। इसके साथ ही वर्ष 1997 में बनाई गई संदिग्ध और फर्जी डिक्री को निचली अदालत द्वारा अवैध घोषित किए जाने का आदेश भी बरकरार रखा गया।

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दो दशक पुराने विवाद का अंत

यह मामला बीस साल से ज्यादा समय से चढ़त-उतार में था। साल 1997 में विपक्षी पक्ष ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर मंदिर की जमीन पर अपना दावा स्थापित करने की कोशिश की थी। आगर के अपर जिला न्यायाधीश ने 14 मार्च 2007 को उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर उस डिक्री को पूरी तरह अवैध करार दिया था। हाईकोर्ट ने भी अपनी सुनवाई में साफ टिप्पणी की कि यह डिक्री धोखे, दस्तावेजों के दमन और एक संदेहास्पद वसीयत पर आधारित थी, जिसे कानूनी तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि संबंधित वाद में मंदिर या मूर्ति को पक्षकार ही नहीं बनाया गया था, जबकि विवाद सीधा मंदिर की संपत्ति से जुड़ा था।

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साल 1997 में विपक्षी पक्ष ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर मंदिर की जमीन पर अपना दावा स्थापित करने की कोशिश की थी।
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राज्य के अभिलेखों ने मजबूत किया केस

राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने अंतिम सुनवाई में विस्तृत राजस्व रिकॉर्ड, औकाफ समिति के मूल दस्तावेज, मंदिर की गुरु-चेला परंपरा और पहले के फैसलों सहित संदिग्ध दस्तावेजों की पूरी श्रृंखला कोर्ट में पेश की। कोर्ट ने माना कि ये रिकॉर्ड न केवल मजबूत हैं, बल्कि पूरे छल के प्रकरण को उजागर करते हैं।

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विवादित भूमि कई वर्षों से सरकारी अभिलेखों में मंदिर और धर्मशाला की संपत्ति के रूप में दर्ज थी, और वर्ष 2006-07 से यह जमीन श्रीराम मंदिर व्यवस्थापक कलेक्टर के नाम विधिवत दर्ज है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी कपटपूर्ण दस्तावेज मंदिर की संपत्ति पर अधिकार का आधार नहीं बन सकता।

साल 1997 में विपक्षी पक्ष ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर मंदिर की जमीन पर अपना दावा स्थापित करने की कोशिश की थी।

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हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन की कार्रवाई

फैसला आने के तुरंत बाद जिला प्रशासन ने शुक्रवार (28 नवंबर) देर रात मंदिर परिसर की जमीन पर दोबारा अधिकार लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी। मौके पर अधिकारियों की टीम पहुंची और भूमि पर शासन का कब्जा फिर से बहाल करने के लिए कार्रवाई आगे बढ़ाई। कई दुकानदार रात में ही अपना सामान हटाते दिखाई दिए, क्योंकि जमीन पर लंबे समय से निजी उपयोग को लेकर तनाव बना हुआ था।

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