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India Development Report 2025
MP CG-India Unfinished projects 2025: साल 2025 को भारत के लिए एक निर्णायक वर्ष माना जा रहा था। बजट घोषणाओं, मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, रोजगार सृजन, आवास, डिजिटल क्रांति और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता- हर मोर्चे पर सरकार और नीति-निर्माताओं ने बड़े लक्ष्य तय किए थे। लेकिन साल के अंत की ओर बढ़ते हुए तस्वीर वैसी नहीं दिखी, जैसी उम्मीद की गई थी।
मध्य प्रदेश में किन चीजों की थी उम्मीद?
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साल 2025 को मध्य प्रदेश (MP Development) के लिए विकास की नई उड़ान का वर्ष माना जा रहा था। राज्य सरकार और केंद्र की कई साझा योजनाओं से यह उम्मीद थी कि रोजगार, इंफ्रास्ट्रक्चर, उद्योग, कृषि, स्वास्थ्य और शहरी विकास के मोर्चे पर प्रदेश तेज़ी से आगे बढ़ेगा। बजट घोषणाओं, निवेश सम्मेलनों और नीतिगत वादों ने आम लोगों के बीच भरोसा जगाया था। लेकिन साल के अंत तक आते-आते यह साफ हो गया कि कई अहम योजनाएँ तय समयसीमा में पूरी नहीं हो सकीं और अपेक्षित नतीजे ज़मीन पर नहीं दिखे।
- निवेश आया, नौकरियाँ अपेक्षा से कम
मध्य प्रदेश को 2025 में “निवेश का नया हब” (Investment Hub) बनाने की बात कही गई थी। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट और रीजनल इंडस्ट्रियल कॉन्क्लेव के ज़रिए बड़े निवेश प्रस्ताव सामने आए। उम्मीद थी कि इससे युवाओं के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होंगे।
हालांकि, निवेश प्रस्तावों और ज़मीनी रोजगार सृजन के बीच बड़ा अंतर देखने को मिला। कई औद्योगिक इकाइयाँ अभी निर्माण या अनुमति के चरण में ही अटकी रहीं। MSME सेक्टर में पूंजी की कमी और बाज़ार की अनिश्चितता के कारण अपेक्षित भर्तियाँ नहीं हो सकीं। सरकारी भर्तियों में भी प्रक्रिया और कानूनी अड़चनों के चलते पद लंबे समय तक खाली रहे। नतीजतन, 2025 में युवाओं के बीच रोजगार को लेकर असंतोष बना रहा।
- शिक्षा और कौशल विकास भी अधूरे
नई शिक्षा नीति के तहत स्कूलों और कॉलेजों में सुधार, नए संस्थानों की स्थापना और स्किल डेवलपमेंट सेंटर खोलने की योजनाएँ 2025 में पूरी तरह लागू होने की उम्मीद थी। लेकिन शिक्षक भर्ती, इंफ्रास्ट्रक्चर और फंडिंग से जुड़ी समस्याओं के कारण कई योजनाएँ धीमी रहीं। इससे ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का लक्ष्य अधूरा रह गया।
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छत्तीसगढ़ को किन चीजों की थी उम्मीद?
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साल 2025 छत्तीसगढ़ (CG Development Update) के लिए बड़े वादों और नई उम्मीदों का वर्ष माना जा रहा था। सरकार ने राज्य के औद्योगिक विस्तार, ग्रामीण विकास, खनिज आधारित अर्थव्यवस्था, रोजगार और बुनियादी ढांचे को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की रफ्तार बढ़ाने से लेकर शहरी सुविधाओं के विस्तार तक, लोगों को लगा था कि 2025 बदलाव का साल बनेगा। लेकिन साल बीतते-बीतते यह साफ हो गया कि कई अहम योजनाएँ तय समयसीमा में पूरी नहीं हो सकीं और उनके नतीजे ज़मीन पर सीमित रहे।
- नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास
2025 में यह उम्मीद थी कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों (Left Wing Extremism Areas) में विकास योजनाएँ तेज़ी से आगे बढ़ेंगी। स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, सड़कें और मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ाने की बात कही गई थी।
हालाँकि, नक्सलियों का खात्मे का सरकारी वादों का कुछ हदतक सही दिखीं, लेकिन सुरक्षा चुनौतियाँ और प्रशासनिक सीमाएँ अब भी बड़ी बाधा बनी रहीं। कई योजनाएँ कागज़ों में तो पूरी दिखीं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनका प्रभाव सीमित रहा। इससे इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मुख्यधारा से जुड़ने की प्रक्रिया धीमी पड़ी।
- औद्योगिक निवेश और रोजगार
छत्तीसगढ़ को 2025 में स्टील, पावर और माइनिंग आधारित इंडस्ट्रियल हब (Industrial Hub) के रूप में आगे बढ़ाने की योजना थी। इन्वेस्टर मीट और नई औद्योगिक नीतियों के ज़रिए बड़े निवेश प्रस्ताव सामने आए। रायपुर, दुर्ग-भिलाई और कोरबा जैसे क्षेत्रों में औद्योगिक विस्तार से युवाओं को रोजगार मिलने की उम्मीद थी।
हालाँकि, निवेश प्रस्तावों और वास्तविक उत्पादन के बीच बड़ा अंतर देखने को मिला। कई फैक्ट्रियाँ अब भी पर्यावरणीय मंजूरी, भूमि अधिग्रहण और वित्तीय क्लोज़र की प्रक्रिया में अटकी रहीं। इससे रोजगार सृजन की रफ्तार धीमी रही और युवाओं की उम्मीदें पूरी नहीं हो सकीं।
- कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था अधूरी
छत्तीसगढ़ की बड़ी आबादी कृषि और वनोपज (Agriculture & Forest Produce) पर निर्भर है। 2025 में किसानों के लिए MSP, सिंचाई परियोजनाओं और ग्रामीण रोजगार योजनाओं से बड़ी राहत की उम्मीद थी।
हालाँकि, सिंचाई परियोजनाओं की धीमी प्रगति, मौसम की अनिश्चितता और बाज़ार तक पहुँच की कमी के कारण किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल सका। वनोपज के संग्रह और प्रसंस्करण से जुड़ी योजनाएँ भी पूरी क्षमता से लागू नहीं हो सकीं।
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देश-विदेश के लिए कैसा रहा साल?
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कई योजनाएँ समय पर पूरी नहीं हो सकीं, कई परियोजनाएँ अदालतों, प्रशासनिक अड़चनों और वित्तीय दबावों में उलझ गईं, और आम लोगों की उम्मीदें अधूरी रह गईं। यह रिपोर्ट 2025 (India Development Report 2025) की उन बड़ी उम्मीदों की पड़ताल करती है, जो कागज़ों से ज़मीन तक पूरी तरह नहीं उतर सकीं, और यह भी समझने की कोशिश करती है कि इसके पीछे असली वजहें क्या रहीं।
- इंफ्रास्ट्रक्चर की रफ्तार धीमी
2025 के बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure Growth) को विकास की रीढ़ बताया गया था। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे जैसे प्रोजेक्ट को भारत की आर्थिक धुरी माना गया, जो लॉजिस्टिक्स लागत घटाने और निवेश बढ़ाने में मदद करता। लक्ष्य था कि 2025 तक इस 1,386 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेसवे का लगभग 75 प्रतिशत काम पूरा हो जाएगा।
लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट रही। गुजरात के कुछ हिस्सों में काम की प्रगति 5 प्रतिशत से भी कम रही। जिन ठेकेदारों को काम सौंपा गया, वे तय समयसीमा और गुणवत्ता दोनों में असफल रहे। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को कई जगह ठेके रद्द करने और नोटिस जारी करने पड़े। इसका सीधा असर परियोजना की समग्र समयसीमा पर पड़ा और अब इसके 2028 के बाद पूरा होने की आशंका जताई जा रही है।
इसी तरह, मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना (Bullet Train Project), जिसे भारत की हाई-स्पीड रेल क्रांति का प्रतीक माना गया था, 2025 में भी विवादों में फंसी रही। भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय नियमों और अदालतों के हस्तक्षेप ने इसकी रफ्तार बार-बार रोकी। मुंबई के बीकेसी इलाके में वायु प्रदूषण नियमों के उल्लंघन पर काम रोकने का नोटिस इस बात का संकेत है कि बड़े प्रोजेक्ट्स में पर्यावरणीय अनुपालन अब अनदेखा नहीं किया जा सकता।
इन दोनों परियोजनाओं की देरी ने यह साफ कर दिया कि केवल बड़ी घोषणाएँ ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि प्रशासनिक क्षमता और समन्वय उतना ही ज़रूरी है।
- घर का सपना अब भी अधूरा
गरीब और मध्यम वर्ग के लिए सस्ते आवास (Affordable Housing) को लेकर 2025 में बड़ी उम्मीदें थीं। SWAMIH Fund और उसके विस्तार SWAMIH-2 को उन लोगों के लिए राहत माना जा रहा था, जो सालों से EMI और किराया दोनों चुका रहे थे।
हालाँकि सरकार ने SWAMIH-2 कोष के लिए 15,000 करोड़ रुपये की योजना बनाई और बजट में शुरुआती पूंजी भी रखी, लेकिन साल भर यह कोष प्रक्रियात्मक देरी में फंसा रहा। नतीजा यह हुआ कि करीब एक लाख से अधिक अटकी हुई आवासीय इकाइयों के खरीदारों को 2025 में भी अपने घर की चाबी नहीं मिल सकी।
रियल एस्टेट सेक्टर (Real Estate Sector) के जानकार मानते हैं कि इससे न केवल खरीदारों का भरोसा कमजोर हुआ, बल्कि निर्माण उद्योग और उससे जुड़े रोजगार पर भी असर पड़ा।
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- रोज़गार सृजन में विफल
2025 में रोजगार (Employment Generation) को लेकर बड़े दावे किए गए थे, खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग के ज़रिए। लेकिन वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, निजी निवेश की धीमी रफ्तार और MSME सेक्टर की चुनौतियों ने रोजगार सृजन को सीमित कर दिया।
माइक्रो-फाइनेंस और स्टार्टअप सपोर्ट योजनाएँ समय पर ज़मीनी असर नहीं दिखा सकीं। कई छोटे उद्यमियों तक फंडिंग पहुँची ही नहीं या इतनी देर से पहुँची कि वे अपने कारोबार को बचा नहीं पाए। इसका असर खासकर शहरी युवाओं और अर्ध-शहरी इलाकों में दिखा, जहाँ बेरोज़गारी की चिंता बनी रही।
- कृषि और ग्रामीण विकास की योजनाओं के परिणाम सीमित
कृषि सुधार (Agricultural Reforms) और किसानों की आय बढ़ाने की योजनाएँ 2025 में भी अपेक्षित नतीजे नहीं दे पाईं। कई राज्यों में संसाधनों की कमी, मौसम की मार और नीतिगत तालमेल की कमी ने इन योजनाओं के असर को सीमित कर दिया।
ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं और अस्पतालों के विस्तार की योजनाएँ भी धीमी रहीं। कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों का निर्माण समय पर पूरा नहीं हो सका, जिससे ग्रामीण आबादी को अब भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ा।
- रक्षा और तकनीक की सुस्त चाल
रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण (Defense Indigenization) को लेकर 2025 अहम माना जा रहा था। तेजस Mk1A की डिलीवरी और आगे के ऑर्डर्स को लेकर बड़ी उम्मीदें थीं। लेकिन भारतीय वायुसेना ने साफ किया कि फिलहाल और Mk1A ऑर्डर नहीं दिए जाएंगे और फोकस अधिक सक्षम तेजस Mk2 पर रहेगा।
इससे यह संदेश गया कि तकनीकी आत्मनिर्भरता एक लंबी प्रक्रिया है और इसमें देरी स्वाभाविक है, लेकिन इससे रक्षा उत्पादन से जुड़े उद्योगों की योजनाएँ प्रभावित हुईं।
- वित्तीय दबाव और बजट की सीमाएँ
2025-26 के दौरान सरकार को राजकोषीय गणित (Fiscal Math) में भी दबाव का सामना करना पड़ा। कर राजस्व उम्मीद से कम रहा और GDP ग्रोथ के अनुमान कमजोर पड़े। इसके चलते पूंजीगत व्यय में कटौती की आशंका बनी रही।
उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने अनुपूरक बजट के ज़रिए इंफ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक विकास को गति देने की कोशिश की, लेकिन कुल मिलाकर यह साफ दिखा कि वित्तीय संसाधन सीमित हैं और हर योजना को समान गति देना आसान नहीं है।
2025 से आगे किन चीजों पर देना है ध्यान?
2025 ने यह सिखाया कि विकास केवल घोषणाओं से नहीं होता। समयबद्ध क्रियान्वयन, पारदर्शिता, पर्यावरणीय संतुलन और वित्तीय अनुशासन- ये सभी उतने ही ज़रूरी हैं। जो उम्मीदें पूरी नहीं हो सकीं, वे पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं, लेकिन उनके लिए 2026 और आगे के सालों में ज़्यादा ठोस रणनीति की ज़रूरत होगी। 2025 भले ही अधूरी उम्मीदों का साल रहा हो, लेकिन यह भविष्य के लिए एक चेतावनी भी है कि विकास की रफ्तार केवल सपनों से नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत से तय होती है। Year Ender 2025
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