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Google AI Report: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हमारी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बनता जा रहा है। हम इस पर दिन पर दिन निर्भर होते जा रहे हैं। न्यूज़ लिखने से लेकर रिज़्यूमे बनाने, स्कूल प्रोजेक्ट से लेकर ऑफिस प्रेज़ेंटेशन तक हर जगह AI चैटबॉट्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि AI से मिलने वाला हर जवाब सही होता है? क्या AI से बनाया गया कंटेंट पूरी तरह भरोसेमंद है? और क्या AI आने के बाद वाकई इंसानों की नौकरियां खतरे में हैं? ये सभी सवाल हमारे जेहन में एक न एक बार तो जरूर आए होंगे। लेकिन अब इन सभी सवालों का जवाब हाल ही में गूगल की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने दिया है।
चौंकाने वाली गूगल की रिपोर्ट
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गूगल ने FACTS Benchmark Suite नाम का एक असेसमेंट जारी किया है। जिसमें उसने बताया कि, दुनिया के सबसे एडवांस AI मॉडल्स की फैक्चुअल एक्यूरेसी यानी तथ्यात्मक सटीकता को परखा गया। इस रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ताकतवर AI मॉडल भी 70% से ज्यादा सटीक नहीं हैं। जिसका अर्थ यह कि, AI चैटबॉट हर तीन में से एक जवाब गलत दे सकता है। यह उन लोगों के लिए खतरे की घंटी है, जो AI से मिले जवाबों को बिना जांचे-पड़ताले सच मान लेते हैं। और वो लोग भी जो यह सोचते हैं कि AI पर आप डिपेंड हो सकते हैं।
अब ग्राफिक से समझिए रिपोर्ट
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इस रिपोर्ट में Gemini 3 Pro सबसे आगे रहा। लेकिन फिर भी परफेक्ट नहीं है। गूगल के बेंचमार्क टेस्ट में Gemini 3 Pro को 69% एक्यूरेसी मिली है। वहीं Gemini 2.5 Pro और ChatGPT-5 62%, Claude 4.5 Opus 51%, Grok 4 (xAI) लगभग 54% और मल्टीमॉडल टास्क यानी चार्ट, इमेज, डायग्राम समझने वाले काम में तो अधिकतर AI मॉडल्स की सटीकता 50% से भी कम देखने को मिली है। इसका मतलब है कि AI अभी भी गलती करता है, वह इंसान की तरह सोच नहीं सकता।
क्या है FACTS Benchmark
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अब तक ज्यादातर AI टेस्ट यह देखते थे कि मॉडल कितना अच्छा लिखता है, कोड करता है या सारांश बनाता है। लेकिन FACTS Benchmark यह जांचता है कि AI बिना सर्च किए कितनी सही जानकारी आपको दे रहा है या देता है। इसके साथ ही यह सर्च करने पर उसकी जानकारी कितनी भरोसेमंद है। दिए गए डॉक्यूमेंट पर वह कितना सही निर्भर करता है। वहीं चार्ट, इमेज और डायग्राम को कितना यह समझ पाता है। यानी यह टेस्ट सीधे-सीधे AI की सच्चाई पकड़ने की क्षमता को मापता है।
AI से कंटेंट बनाना सुविधा या फिर खतरा?
आज बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं जो AI से न्यूज़ आर्टिकल, ब्लॉग, स्क्रिप्ट और सोशल मीडिया पोस्ट बनवा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि AI काम को तेज करता है और आपका काम आसान बनाता है, लेकिन खतरा तब पैदा होता है जब AI से बने कंटेंट को बिना फैक्ट-चेक पब्लिश कर दिया जाए, इतना ही नहीं मेडिकल, फाइनेंस या लीगल जानकारी सीधे AI पर छोड़ दी जाए या फिर न्यूज़ रिपोर्टिंग में AI को अंतिम स्रोत मान लिया जाए। AI कई बार गलत आंकड़े, आधी-अधूरी जानकारी या काल्पनिक तथ्य भी इसमें गढ़ देता है। जिसे टेक भाषा में 'Hallucination' कहा जाता है।
क्या AI आने से नौकरियां खत्म हो जाएंगी?
जब से AI आया है तब से कई बार ये चर्चा हो चुकी है कि यह 'AI आ गया है, अब नौकरी नहीं बचेगी' लेकिन हकीकत थोड़ी अलग है। AI उन कामों को प्रभावित कर रहा है जो रिपीटिटिव हैं यानी वो काम जो बिना सोच-विचार के किए जाते हैं। केवल डेटा कॉपी-पेस्ट पर आधारित हैं। लेकिन AI मानवीय समझ, अनुभव, संवेदनशीलता और निर्णय क्षमता की जगह नहीं ले सकता है।
जो लोग AI को एक टूल की तरह इस्तेमाल करना सीखेंगे, इसकी मदद से फैक्ट-चेक, क्रिएटिविटी और एनालिसिस में मजबूत होंगे, इसके साथ ही AI + Human Skill का सही कॉम्बिनेशन बनाएंगे उनकी नौकरियां कभी नहीं जाएंगी। बल्कि इससे उनके अवसर और बढ़ेंगे।
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AI पर आंख मूंदकर भरोसा क्यों नहीं करना?
AI एक टूल है, जिसमें इंसान की तरह नैतिक समझ नहीं है। यह आपको पुराने या अधूरे डेटा पर आधारित जवाब दे सकता है लेकिन सही नहीं। कई बार यह आपको आत्मविश्वास के साथ गलत जवाब देता है। इतना ही नहीं AI भी खुद यह नहीं जानता कि वह गलत है। इसलिए AI से मिले हर जवाब को एक बार क्रॉस-चेक जरूर करें। अपनी समझ और अनुभव से उसे परखें।
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