/bansal-news/media/media_files/2025/12/17/mp-police-protection-2025-12-17-13-32-51.jpg)
MP Police Protection: मध्यप्रदेश में निजी व्यक्तियों को दी जा रही पुलिस सुरक्षा (Police Protection) एक बार फिर विवादों के घेरे में है।
ग्वालियर हाईकोर्ट ने अपात्र लोगों को सुरक्षा मुहैया कराए जाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि इस संबंध में चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब प्रस्तुत किया जाए।
जनहित याचिकाकर्ता नवल किशोर शर्मा की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता डीपी सिंह ने कोर्ट को बताया कि पूर्व में दिए गए न्यायिक आदेशों के बावजूद, पुलिस विभाग द्वारा निजी व्यक्तियों की सुरक्षा की समीक्षा नहीं की गई। याचिका में आरोप लगाया गया है कि एक तरफ पुलिस बल की भारी कमी है, वहीं दूसरी तरफ अपात्र लोगों की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों पर सरकारी खजाने से लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।
पुलिस सुरक्षा में वसूली के पांच आपराधिक केस
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता डीपी सिंह ने विनय सिंह नामक व्यक्ति का उदाहरण देते हुए बताया गया कि पुलिस सुरक्षा में रहने के दौरान ही उनके खिलाफ वसूली सहित पांच आपराधिक मामले दर्ज हुए। यह स्पष्ट रूप से सुरक्षा कवच के दुरुपयोग और संबंधित पुलिसकर्मियों की संदिग्ध भूमिका को दर्शाता है।
RTI में हुआ चौंकाने वाला खुलासा, ये अपात्र
याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार (RTI) से प्राप्त आंकड़े पेश करते हुए बताया कि वर्तमान में 19 निजी व्यक्तियों की सुरक्षा में 33 पुलिसकर्मी तैनात हैं। समीक्षा में इनमें से अधिकांश व्यक्ति सुरक्षा के लिए अपात्र पाए गए हैं। इससे पहले कोर्ट ने दिलीप और संजय शर्मा नामक दो भाइयों को दी गई, सुरक्षा पर कड़ी टिप्पणी करते हुए उनसे सुरक्षा खर्च की वसूली के आदेश दिए थे।
हाईकोर्ट के कड़े दिशा-निर्देश और सुझाव
न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि पुलिस सुरक्षा केवल ठोस आधार और जान के वास्तविक खतरे की स्थिति में ही दी जानी चाहिए। कोर्ट ने जोर दिया कि किसी भी "तुच्छ" या अपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को सरकारी सुरक्षा न मिले। यदि किसी परिवार के पास लाइसेंसी हथियार हैं या व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के कारण खतरा है, तो उन्हें पुलिस के बजाय निजी गार्ड (Private Security) रखने चाहिए।
मध्यप्रदेश में पुलिस सुरक्षा के नियम और प्रावधान
मध्यप्रदेश में किसी भी निजी व्यक्ति को पुलिस सुरक्षा की प्रोसेस 'मध्यप्रदेश पुलिस रेगुलेशन' और गृह विभाग द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के तहत संचालित होती है।
1. किन लोगों को मिलती है पुलिस सुरक्षा ?
पुलिस सुरक्षा अधिकार के तौर पर नहीं, बल्कि वास्तविक खतरे (Threat Perception) के आधार पर दी जाती है। मुख्य रूप से ये कैटेगरी पात्र होती हैं।
संवैधानिक पद धारक: मुख्यमंत्री, मंत्री, न्यायाधीश और अन्य उच्चाधिकारी।
गवाह (Witness Protection): गंभीर अपराधों के ऐसे गवाह जिनकी जान को खतरा हो।
खतरे की जद में आए नागरिक: वे व्यक्ति जिन्हें अपनी सामाजिक, राजनीतिक सक्रियता या किसी विशेष घटना के कारण असामाजिक तत्वों से गंभीर और वास्तविक खतरा हो।
2. सुरक्षा की समय सीमा और अनुमति का अधिकार
पुलिस अधीक्षक (SP): तत्काल खतरे को देखते हुए अधिकतम 2 दिन तक सुरक्षा दे सकते हैं।
पुलिस महानिरीक्षक (IG): खतरे की समीक्षा कर अधिकतम 7 दिन तक सुरक्षा बढ़ा सकते हैं।
लॉन्ग टर्म सुरक्षा (7 दिन से अधिक): यदि सुरक्षा 7 दिन से ज्यादा चाहिए, तो मामला राज्य स्तरीय 'थ्रेट परसेप्शन कमेटी' के पास जाता है। इसमें प्रमुख सचिव (गृह), प्रमुख सचिव (विधि) और पुलिस महानिदेशक (DGP) शामिल होते हैं।
3. सुरक्षा के लिए शुल्क (Charges)
पुलिस सुरक्षा के लिए शुल्क का निर्धारण व्यक्ति की श्रेणी और खतरे के प्रकार पर निर्भर करता है।
निःशुल्क सुरक्षा: यदि खतरा सार्वजनिक कर्तव्य निभाने (जैसे गवाही देना या सरकारी काम) के कारण है, तो सुरक्षा मुफ्त दी जा सकती है।
सशुल्क सुरक्षा (Paid Security): यदि कोई संपन्न व्यक्ति या व्यापारी अपनी निजी सुरक्षा के लिए पुलिस मांगता है, तो उसे शासन द्वारा निर्धारित वर्दीधारी पुलिसकर्मी का वेतन, भत्ता और अन्य खर्च जमा करना होता है। ग्वालियर मामले में यही विवाद है कि अपात्र लोग सरकारी खर्च पर सुरक्षा ले रहे हैं।
4. सुरक्षा का स्तर और पुलिसकर्मियों की संख्या
एक पात्र व्यक्ति को कितने सुरक्षाकर्मी मिलेंगे, यह खतरे के स्तर (X, Y, Y+, Z, Z+ श्रेणी) पर निर्भर करता है।
सामान्यतः निजी व्यक्तियों को 1 से 2 गनर (आरक्षक या प्रधान आरक्षक स्तर) दिए जाते हैं।
खतरा बहुत अधिक होने पर सुरक्षा का स्तर बढ़ाया जा सकता है, जिसमें विशेष सशस्त्र बल (SAF) के जवान भी शामिल हो सकते हैं।
5. कितनी बार ली जा सकती है सुरक्षा ?
इसकी कोई तय संख्या नहीं है। जब तक व्यक्ति की जान को वास्तविक खतरा बना रहता है, वह सुरक्षा के लिए आवेदन कर सकता है। हालांकि, हर 3 या 6 महीने में स्थानीय इंटेलिजेंस द्वारा खतरे की समीक्षा की जाती है। यदि खतरा समाप्त पाया जाता है, तो सुरक्षा वापस ले ली जाती है।
पुलिस सुरक्षा के लिए आवेदन की प्रोसेस-जरूरी दस्तावेज
भारत में पुलिस सुरक्षा के लिए आवेदन आमतौर पर स्थानीय पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police - SP) या पुलिस आयुक्त (Commissioner of Police) के कार्यालय में किया जाता है।
1. आवेदन पत्र (Application Letter)
यह सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसे आवेदक को स्थानीय पुलिस प्रमुख के नाम पर लिखना होता है। आवेदन पत्र में जरूरी जानकारी स्पष्ट रूप से दर्ज होनी चाहिए।
आवेदक का विवरण:
पूरा नाम, पता और संपर्क विवरण।
व्यवसाय/पेशा।
खतरे का विवरण (Threat Details):
खतरा किससे है (व्यक्ति/समूह का नाम या पहचान, यदि ज्ञात हो)।
खतरे का कारण क्या है (जैसे: गवाही देना, संपत्ति विवाद, सामाजिक सक्रियता, राजनीतिक दुश्मनी)।
खतरा किस प्रकार का है (जान से मारने की धमकी, हमला, अपहरण, संपत्ति को नुकसान)।
क्या पहले कोई घटना हुई है (हां/नहीं, यदि हाँ तो तारीख और विवरण)।
खतरे की गंभीरता का आकलन (क्या खतरा तात्कालिक है या संभावित)।
अपेक्षित सुरक्षा:
कितने सुरक्षाकर्मी चाहिए।
कितने समय के लिए सुरक्षा चाहिए।
2. ये जरूरी सहायक दस्तावेज
आवेदन को मजबूत बनाने और पुलिस को खतरे की गंभीरता समझाने के लिए ये दस्तावेज चाहिए
| क्रम | दस्तावेज़ का नाम | विवरण |
| 1. | पहचान प्रमाण | आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, या पासपोर्ट की प्रति। |
| 2. | पता प्रमाण | वर्तमान निवास प्रमाण पत्र (बिजली बिल, रेंट एग्रीमेंट)। |
| 3. | FIR या शिकायत की प्रति | यदि खतरे के संबंध में पहले कोई FIR दर्ज कराई गई है, या पुलिस में शिकायत की गई है। |
| 4. | धमकी के प्रमाण | धमकी भरे कॉल रिकॉर्डिंग, SMS, ईमेल या लिखित नोट की प्रति। |
| 5. | कोर्ट का आदेश (यदि हो) | यदि किसी कानूनी मामले (जैसे गवाह संरक्षण) के संदर्भ में सुरक्षा मांगी जा रही है, तो संबंधित कोर्ट के आदेश की प्रति। |
| 6. | शपथ पत्र (Affidavit) | एक नोटरीकृत शपथ पत्र जिसमें आवेदक पुष्टि करता है कि उसके द्वारा दी गई जानकारी सत्य है और वह सुरक्षा के नियमों का पालन करेगा। |
3. पुलिस द्वारा जांच (Threat Perception Review)
आवेदन प्राप्त होने के बाद, ये कदम उठाए जाते हैं।
इंटेलिजेंस इनपुट: स्थानीय इंटेलिजेंस यूनिट (LIU) या विशेष शाखा गुप्त रूप से आवेदक और खतरे के स्रोतों की जांच करती है।
खतरे का आकलन: पुलिस अधिकारी यह तय करते हैं कि खतरा वास्तविक (Genuine) है या सिर्फ मनगढ़ंत/तुच्छ (Frivolous) है।
सुरक्षा निर्णय:
यदि खतरा तात्कालिक है, तो SP या IG अपने अधिकार क्षेत्र के तहत (2 से 7 दिन के लिए) सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।
यदि सुरक्षा दीर्घकालिक चाहिए, तो मामला राज्य स्तरीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति के पास भेजा जाता है।
/bansal-news/media/agency_attachments/2025/12/01/2025-12-01t081847077z-new-bansal-logo-2025-12-01-13-48-47.png)
Follow Us
चैनल से जुड़ें