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Sukma Naxalites Surrender: हिड़मा की मौत के बाद डरे नक्सली! कमांडर एर्रा समेत 37 माओवादी आज तेलंगाना DGP के सामने करेंगे सरेंडर

Sukma Naxalites Surrender: दक्षिण बस्तर से जुड़ी सबसे बड़ी खबर सामने आई है, जहां कुल 37 नक्सलियों ने आज हैदराबाद में आत्मसमर्पण करेंगे। इन सभी ने तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक (DGP) के सामने सरेंडर करेंगे।

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Shashank Kumar
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Sukma Naxalites Surrender

37 नक्सलियों ने आज हैदराबाद में आत्मसमर्पण कर दिया

Sukma Naxalites Surrender: नक्सल मोर्चे पर सुरक्षा एजेंसियों को बड़ी कामयाबी मिलने जा रही है। दक्षिण बस्तर से जुड़ी सबसे बड़ी खबर सामने आई है, जहां कुल 37 नक्सलियों ने आज हैदराबाद में आत्मसमर्पण (CG Naxalites Surrender) कर दिया है। इन सभी ने तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक (DGP) के सामने सरेंडर किया है। हालांकि, दोपहर 3 बजे तेलंगाना DGP प्रेस कॉन्फ्रेंस (Telangana DGP Press Conference) कर इसकी आधिकारिक जानकारी साझा देंगे।

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केंद्रीय कमेटी सदस्य भी करेगा सरेंडर

आत्मसमर्पण करने वालों में नक्सल संगठन की केंद्रीय कमेटी का सदस्य आज़ाद उर्फ अप्पासी नारायण (Appasi Narayan surrender) भी शामिल है। यह नाम लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियों की सूची में शीर्ष पर रहा है और नक्सल संगठन की आंतरिक रणनीतियों में इसकी भूमिका बेहद प्रभावशाली मानी जाती है। अप्पासी नारायण का सरेंडर नक्सली संगठन के लिए बड़ा वैचारिक और संचालन स्तर का झटका माना जा रहा है।

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हिड़मा का करीबी कमांडर एर्रा ने भी छोड़ेगा हथियार

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुख्यात नक्सली कमांडर हिड़मा का बेहद करीबी (Commander Hidma's associate surrenders) साथी एर्रा भी सरेंडर (Erra surrender) करने वालों में शामिल है। एर्रा कई हाई-प्रोफाइल हमलों का आरोपी रहा है और लंबे समय से सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द बना हुआ था। हिड़मा की मौत (Hidma Death) के बाद एर्रा की सक्रियता कम हो गई थी, और अब उसने जंगल छोड़ ‘मुख्यधारा में लौटने’ का फैसला कर लिया है।

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जंगलों से ‘घर वापसी’ की सबसे बड़ी सामूहिक प्रक्रिया

सूत्रों के अनुसार, यह सरेंडर अभियान दक्षिण बस्तर के इतिहास में सबसे बड़े सामूहिक आत्मसमर्पणों में से एक है। कई मध्यम और बड़े रैंक के नक्सल सदस्य भी इसमें शामिल हैं, जिनके आत्मसमर्पण से सुकमा-बीजापुर-छत्तीसगढ़ सीमा के नक्सल नेटवर्क को बड़ा नुकसान पहुंचने वाला है। सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि नक्सल संगठन के भीतर लगातार चरमराती व्यवस्था, कम होती जनसमर्थन शक्ति और हालिया शीर्ष नेताओं के खोने से संगठन में मनोबल टूट रहा है।

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