MP Orchha Temple History: भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जो अपने आप में अनूठी कथाएं समेटे हुए हैं। ये मंदिर भारत की शान तो कहे ही जाते हैं, साथ ही साथ मंदिरों से जुड़ी कुछ ऐसी एतिहासिक कथाएं भी प्रचलित हैं, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं। एक ऐसा मंदिर ओरछा का है, जहां रानी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम प्रकट हुए थे।
अयोध्या के रामलला की वास्तविक प्रतिमा ओरछा में है विराजमान
ओरछा का यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां श्रीराम भगवान और राजा दोनों ही रूपों में पूजे जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार, अयोध्या के रामलला की वास्तविक प्रतिमा ओरछा में ही विराजमान है। इसी वजह से, कि भले ही ओरछा का महत्व अयोध्या समान न हो, लेकिन कम भी नहीं है।
ओरछा में राजा रामचन्द्र की स्थापना के पीछे का प्रमुख कारण बुन्देल शासक मधुकर शाह की महारानी कुंवरि गणेश थी, जो श्रीराम की सच्चे मन से उपासना करती थी। रानी ने उनके पति की चुनौती को स्वीकार करके भगवान श्रीराम को यहां लेकर आई थीं।
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यहां राजा राम को मिलती है हर दिन पुलिस की सलामी
स्थानीय लोग बताते हैं, कि अगर कोई VIP मंदिर प्रांगण आता है, तो उन्हें पुलिस सुरक्षा के साथ बाकी सभी चीजें बाहर ही छोड़नी पड़ती है।
मान्यता है, कि मुख्यमंत्री, राज्यपाल हो या कोई दूसरे VIP यहां आने पर उन्हें पुलिस-प्रशासन की ओर से सुरक्षा बल नहीं दिया जाएगा। क्योंकि यहां इसके हकदार सिर्फ राम राजा सरकार माने जाते हैं।
ओरछा के मंदिर में भगवान को आरती नहीं बल्कि पुलिस सलामी देती है। ओरछा में प्रभु श्रीराम को भगवान की तरह नहीं बल्कि एक राजा की तरह माना जाता है।
ओरछा मंदिर की स्थापना के का राज़
एतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, कि उस समय के तात्कालीन ओरछा के राजा मधुकर शाह जो कि भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे। तो वहीं उनकी पत्नी महारानी कुंवरि गणेश भगवान श्रीराम की उपासनक थीं। राजा मधुकर हमेशा रानी को भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने को कहते थे, लेकिन रानी श्रीराम के नाम का सुमिरन सच्चे मन से किया करती थीं।
एक बार रानी ने मन बना लिया, कि वे भगवान श्रीराम की स्थापना ओरछा में करेंगी। जिसके लिए रानी ने अयोध्या जाकर भगवान श्रीराम की उपासना करने का मन बनाया। उपासना के लिए एक दिन रानी, राजा को बिना बताए अयोध्या के लिए निकल गईं।
अयोध्या प्रस्थान से पहले उन्होंने अपने नौकरों को आदेश दिया कि, वे चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाएं। जहां वे भगवान श्रीराम की स्थापना की करेंगी। रानी ने अयोध्या पहुंचकर भगवान श्रीराम के कई दिनी तक उपवास रख भक्ति की। भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम प्रकट हुए। रानी ने भगवान से ओरछा आने का आग्रह किया।
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भगवान श्री राम ने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए 3 शर्ते रखीं। पहली शर्त भगवान श्रीराम ने कहा कि वे ओरछा बाल स्वरूप में आएंगे। दूसरी शर्त ओरछा पहुंचने के बाद वहां न तो कोई राजा होगा और न कोई रानी। तीसरा शर्त उनकी स्थापना पुरुष नक्षत्र में हीगी।
भगवान श्रीराम की तीनों शर्तों को मान लिया। 8 महिने 28 दिनों तक पैदल चलने हुए विक्रम संवत 1631 (सन् 1574) में चैत्र शुक्ल की नवमी को रानी भगवान को ओरछा लेकर आईं थी।
जब रानी भगवान श्रीराम को बालरूप में लेकर ओरछा पहुंचीं, तो राजा धूमधाम से स्वागत से स्वागत करने का मन बनाया। लेकिन रानी ने अस्वीकार कर दिया। रानी ने भगवान श्रीराम की स्थापना करने का शुभ मुहूर्त बनाया, लेकिन भगवान राम ने कहा कि वे अपनी मां को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।
भगवान श्रीराम महल से बाहर नहीं गए और उनकी स्थापना वहीं हो गई। जिसके बाद रानी का महल मंदिर के रूप में विश्व विख्यात हो गया। जो आज पूरे विश्व में राम राजा के नाम से विख्यात है।
ओरछा कैसे पहुँचें?
यदि आप भी ओरछा के राजा राम मंदिर जाना चाहते हैं और बाकई जाने का मन बना लिया है, तो हम आपको ओरछा जाने के सरल रास्ते बताएंगे। जिनके द्वारा आप आसानी से ओरछा पहुंच सकते हैं।
अगर आप हवाई मार्ग से जाना चाहते हैं, तो नजदीकी एयरपोर्ट खजुराहो में है, जो करीब 163 किमी की दूरी पर है। जहां से एयरपोर्ट से दिल्ली, मुंबई, वाराणसी और बेंगलुरु जैसे शहरों के लिए उड़ानें उपलब्ध हैं।
अगर आप ट्रेन से जाना पसंद करेंगे तो नजदीकी रेल मुख्यालय झाँसी है। झाँसी से आप आसानी से ओरछा पहुंच सकते हैं, पैसेंजर ट्रेनें भी उपलब्ध है।
अगर आप सड़क मार्ग से जाना पसंद करते हैं तो ओरछा, झाँसी-खजुराहो सड़क मार्ग पर है। झाँसी और खजुराहो से आप ओरछा के लिए अपने वाहन या बस से भी जा सकते हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश के अन्य शहरों से भी सड़क रास्ते से ओरछा पहुंचा जा सकता है।
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