Subhas Chandra Bose: हर साल 23 जनवरी के दिन को नेता सुभाष चंद्र बोस की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
नेताजी का जन्म ओडिशा के कटक में 23 जनवरी 1897 को हुआ था। नेताजी ने अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजाद कराने के लिए कई संघर्ष किए।
हर साल 18 अगस्त के दिन को उनकी पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है। आज हम आपको उन्ही मृत्यु और उनसे जुड़े कुछ रहस्य के बारे में बताएंगे.
मृत्यु बना जीवन का बड़ा रहस्य
उनमें संप्रभु भारत को देखने का उत्साह और जुनून था। वह स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेताओं में शुमार थे जिस वजह से ही वह ‘नेताजी’ कहलाए.
लेकिन देश के पराक्रम स्वतंत्रा सेनानी नेताजी का जीवन और खासकर उनकी मृत्यु किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. लेकिन आज भी उनकी मृत्यु हर किसी के लिए रहस्य बना हुआ है.
भारत के सरकारी दस्तावेजों में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु विमान क्रेश में बताई जाती है. बताया जाता है कि जापान जाते समय नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का विमान क्रेश हो गया था.
हादसे में नेताजी बुरी तरह जल गए और ताइहोकू के सैन्य अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई. लेकिन नेताजी का शव नहीं मिला था. इसलिए आज भी उनकी मौत एक बड़ा रहस्य है.
जांच के लिए बनी थी 3 कमिटी
विमान क्रेश के कारण हुई मृत्यु की बात की जांच के लिए 3 कमिटी बनायीं गई थी.जिसमें दो कमेटियों ने मन की उनकी मृत्यु प्लेन क्रेश में हुई है.
लेकिन 1999 में तीसरे कमिटी ने चौकाने वाली रिपोर्ट समिट की थी.जिसमें कहा गया की किसी भी प्रकार का विमान हादसा हुआ ही नहीं है.
उन्होंने कहा था कि ऐसा कोई घटना का रिकॉर्ड ही नहीं है. लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को गलत बता दिया था.
नेताजी और गुमनामी बाबा का सच
इस रिपोर्ट के बाद उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में नेताजी को देखे जाने की खबर सामने आई। जिसमें कहा गया है कि फैजाबाद में रह रहे गुमनामी बाबा ही सुभाषचंद्र बोस हैं।
इस तरह से गुमनामी बाबा की खबरें और कहानियां मशहूर होने लगीं। गुमनामी बाबा के सुभाष चंद्र बोस होने की खबर पर लोगों का विश्वास इसलिए भी और बढ़ गया.
क्योंकि गुमनामी बाबा की मौत के बाद उनके कमरे से जो सामान बरामद हुए तो लोग कहने लगे कि गुमनामी बाबा और कोई नहीं बल्कि नेताजी ही थे।
नेताजी होने का सच संदूक में रहा
गुमनामी बाबा के संदूक से नेताजी के जन्मदिन की तस्वीरें, लीला रॉय के मौत की शोक सभा की तस्वीरें, गोल फ्रेम वाली कई चश्मे, 555 सिगरेट, विदेशी शराब, नेताजी के परिवार की निजी तस्वीरें, रोलेक्स की जेब घड़ी और आजाद हिंद फौज की यूनिफॉर्म जैसे सामान मिले थे।
इसके अलावा जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की कई किताबें भी थी। सरकार ने इस मामले की जांच के लिए मुखर्जी आयोग का गठन किया, लेकिन फिर भी यह साबित नहीं हो पाया कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे।
सरकार ने 1956 में बनाई शाहनवाज समिति
नेताजी के बारे में अफवाहों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से, 1956 में भारत की संप्रभु सरकार ने शाहनवाज खान की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की गई थी.
इस समिति के अन्य अहम सदस्यों में पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से नामित एक सिविल सेवक और नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस भी थे। इस समिति को ‘नेताजी जांच समिति’ भी कहा जाता है।
अप्रैल से जुलाई 1956 के बीच इस समिति ने भारत, जापान, थाईलैंड और वियतनाम में 67 गवाहों का बयान लिया गया। विशेष रूप से वे जो उस विमान दुर्घटना में बच गए थे और दुर्घटना से उनकी चोटों के निशान थे।
गवाहों में ताइहोकू सैन्य अस्पताल के सर्जन डॉ. योशिमी शामिल थे, जिन्होंने अपने अंतिम घंटों में बोस का इलाज किया था.
दो-तिहाई समिति, यानी खान और मैत्रा ने कुछ मामूली विसंगतियों के बावजूद, निष्कर्ष निकाला कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त, 1945 को ताइहोकू में विमान दुर्घटना में हुई थी।
नेताजी के भाई ने अस्वीकार की अंतिम रिपोर्ट
सुरेश चंद्र बोस ने अंतिम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया. उन्होंने दावा करते हुए असहमति का एक नोट लिखा था.
जिसमें कहा गया कि शाहनवाज समिति के अन्य सदस्यों और कर्मचारियों ने जानबूझकर कुछ महत्वपूर्ण सबूतों को रोक दिया था.
यह कि समिति को नेहरू द्वारा विमान दुर्घटना से मृत्यु का अनुमान लगाने के लिए निर्देशित किया गया था.
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