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Ujjain Land Pooling Scheme cancel: मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों के भारी विरोध और किसान संघ की नाराजगी के बाद आखिरकार उज्जैन लैंड पूलिंग योजना को रद्द कर दिया गया है। इस संबंध में मंगलवार,16 दिसंबर की देर रात शासन ने आदेश जारी कर दिया।
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यहां बता दें, 2028 के सिंहस्थ मेले की तैयारी के लिए प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण योजना (land acquisition scheme) का किसान, जनप्रतिनिधि और किसान संघ विरोध कर रहा था। सभी ने सरकार की इस योजना का अपने-अपने तरीके से विरोध किया। स्कीम के कैंसिल होने से किसानों को बड़ी राहत मिली है। अब उनकी जमीनें अधिग्रहित नहीं की जाएंगी, बल्कि तय नियमों के अनुसार पैसे देकर ली जाएंगी या पहले की तरह जमीनों को लीज पर लिया जाएगा। सरकार के इस आदेश से किसानों और सरकार के बीच चल रहा विवाद समाप्त हो गया है।
किसान संघ ने किया था आंदोलन का ऐलान
भारतीय किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष कमल सिंह आंजना ने कहा था कि 19 नवंबर को जारी आदेश केवल संशोधन था, निरस्तीकरण नहीं। इसके बाद प्रदेश के 18 जिलों के किसान प्रतिनिधियों की बैठक में एकमत होकर आंदोलन का निर्णय लिया गया। किसानों ने ऐलान किया था कि 26 दिसंबर से विक्रमादित्य प्रशासनिक भवन का घेराव कर अनिश्चितकालीन धरना दिया जाएगा। अब शासन द्वारा लैंड पूलिंग योजना को पूरी तरह निरस्त किए जाने को किसान संघ की बड़ी जीत माना जा रहा है।
क्या थी उज्जैन लैंड पूलिंग स्कीम ?
उज्जैन लैंड पूलिंग स्कीम, सिंहस्थ कुंभ 2028 को ध्यान में रखते हुए उज्जैन विकास प्राधिकरण (UDA) द्वारा प्रस्तावित एक शहरी विकास योजना थी। इसके तहत शहर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की बड़े क्षेत्र में किसानों की निजी जमीन को एक साथ पूल (एकत्र) कर सुनियोजित तरीके से विकसित करने का प्रस्ताव रखा गया था। यानी सरकार जमीनों को अधिग्रहित कर सड़क, सीवर, ड्रेनेज, बिजली, पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं का विकास करने की तैयारी में थी, जिससे सिंहस्थ के लिए स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर पहले से तैयार हो सके। साथ ही उज्जैन के विस्तार को मास्टर प्लान के तहत विकसित करना था।
जानें योजना में किसानों को क्या मिलना था ?
स्कीम के तहत किसानों से जमीन लेकर उसे विकसित करने के बाद डेवलप एरिया का एक हिस्सा (कम लेकिन अधिक मूल्य वाला) किसान को लौटाने का प्रावधान रखा गया था। शेष भूमि पर शासन और प्राधिकरण द्वारा शहरी विकास में उपयोग की प्लानिंग थी।
किसान संगठन इसलिए थे नाराज
भारतीय किसान संघ समेत अन्य किसान संगठनों को जमीन पर स्थायी नियंत्रण खत्म होने की आशंका थी। किसानों का कहना था कि एक बार जमीन लैंड पूलिंग में चली गई तो उस पर उनका अधिकार कमजोर हो जाएगा। कितनी जमीन लौटेगी, कब लौटेगी और किस कीमत पर, इस कोई भरोसा नहीं था।
किसानों का तर्क था कि यह अधिग्रहण जैसा ही है, लेकिन बिना सीधा मुआवजा दिए। इसमें सरकार पर आरोप लगे कि कई जगह किसानों की सहमति के बिना योजना लागू करने की तैयारी थी। किसान संगठनों का कहना था कि सिंहस्थ अस्थायी आयोजन है, लेकिन इसके नाम पर जमीन की स्थायी योजना बनाई जा रही थी।
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बीजेपी विधायक ने भी किया योजना का विरोध
उज्जैन उत्तर से बीजेपी विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा ने लैंड पूलिंग योजना को लेकर अपनी ही सरकार के फैसले पर विरोध जताया था। उन्होंने सीएम मोहन यादव को पत्र लिखकर कहा है कि यह योजना किसानों के हित में नहीं है और इसे तत्काल निरस्त किया जाना चाहिए। विधायक जैन ने लिखा कि 17 नवंबर को भोपाल में मुख्यमंत्री की मौजूदगी में हुई बैठक में योजना वापस लेने का निर्णय लिया गया था, जिसके बाद किसान संघ ने उत्सव रैली भी निकाली थी। इसके बावजूद योजना लागू मानी जा रही है और किसान 26 दिसंबर से आंदोलन करने को मजबूर हैं, तो वे खुद भी किसानों के समर्थन में आंदोलन में शामिल होंगे। विधायक के इस रुख से लैंड पूलिंग योजना को लेकर बीजेपी के भीतर मतभेद खुलकर सामने आ गए थे।
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