/bansal-news/media/media_files/2025/12/11/nilesh-adivasi-suicide-case-update-2025-12-11-22-16-58.jpg)
Nilesh Adivasi Suicide Case Update: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Order) ने 27 वर्षीय नीलेश आदिवासी सुसाइड केस की निष्पक्ष जांच के लिए तत्काल विशेष जांच टीम (SIT) के गठन का आदेश दिया है।
कोर्ट ने मामले की जटिलता और परस्पर विरोधी बयानों को देखते हुए मध्यप्रदेश के राजनीतिक कार्यकर्ता गोविंद सिंह राजपूत (Govind Singh Rajput) की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगा दी है।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) को दो दिनों के अंदर तीन सदस्यीय SIT गठित करने का निर्देश दिए। SIT को तुरंत काम शुरू कर युवक की मौत के हर पहलू की जांच करने को कहा गया, जिसमें वे पहलू भी शामिल हों जो वर्तमान पुलिस जांच का हिस्सा नहीं हैं। जांच एक महीने के भीतर पूरी करनी होगी।
SIT में कौन अधिकारी करेंगे जांच ?
SIT में मध्यप्रदेश के बाहर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल करने का आदेश दिया गया है, जिसमें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (सीधी भर्ती वाला और जिनका MP से कोई संबंध न हो) राज्य के बाहर से एक युवा IPS अधिकारी और पुलिस उप अधीक्षक रैंक की एक महिला अधिकारी शामिल होंगी।
गोविंद सिंह को अंतरिम सुरक्षा
गिरफ्तारी पर रोक: कोर्ट ने राजनीतिक कार्यकर्ता गोविंद सिंह राजपूत को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की।
ये शर्त रखी: यदि SIT को कोई आपत्तिजनक सामग्री मिलती है, तो वे हिरासत में पूछताछ के लिए सर्वोच्च न्यायालय से अनुमति मांग सकती है।
केस से जुड़े गवाहों की सुरक्षा
सुरक्षा उपाय: न्यायालय ने गवाहों, विशेषकर आदिवासी गवाहों, की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उन्हें किसी भी दबाव से बचाने के लिए उपाय लागू करने का निर्देश दिया।
मृतक के भाई को सुरक्षा: मृतक के भाई के खिलाफ भी जांच में शामिल होने पर कोई दंडात्मक कार्रवाई न करने का आदेश दिया गया।
जानें क्या है पूरा मामला
पहली शिकायत (1 जुलाई 2025): नीलेश आदिवासी ने सबसे पहले राजपूतों के खिलाफ SC/ST अधिनियम के तहत जाति आधारित दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी।
शिकायत वापसी: कुछ दिनों बाद, आदिवासी ने शपथ पत्र में दावा किया कि यह शिकायत झूठी थी, और इसे नशे की हालत में स्थानीय राजनेता से जुड़े लोगों के दबाव में दर्ज कराया गया था।
आत्महत्या (25 जुलाई 2025): शिकायत वापस लेने के कुछ ही समय बाद नीलेश आदिवासी ने अपने आवास पर आत्महत्या कर ली।
पत्नी की शिकायतें: आदिवासी की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी ने तीन अलग-अलग लिखित शिकायतें दर्ज कीं, लेकिन उन्होंने राजनीतिक कार्यकर्ता राजपूत को नामजद नहीं किया। उन्होंने आरोप लगाया कि अन्य लोगों ने उनके पति को पहली शिकायत दर्ज करने के लिए मजबूर किया था और उन्हें लगातार धमका रहे थे।
ये भी पढ़ें: भोपाल में ब्राह्मण समाज का ऐलान, 14 दिसंबर को CM आवास का घेराव, IAS के खिलाफ एक्शन न लेने से बढ़ा आक्रोश
FIR दर्ज (4 सितंबर 2025): पत्नी के बयानों को नजरअंदाज करते हुए, पुलिस ने आत्महत्या के एक महीने से अधिक समय बाद, राजनीतिक कार्यकर्ता राजपूत को नामजद करते हुए आत्महत्या के लिए उकसाने और SC/ST अधिनियम के तहत एक नया मामला दर्ज किया।
राजपूत का तर्क: राजनीतिक कार्यकर्ता राजपूत ने अग्रिम जमानत याचिका (जो हाई कोर्ट से खारिज हो गई थी) में तर्क दिया था कि यह मामला राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का परिणाम है और मृतक एवं उसकी पत्नी के पहले के बयानों को अनदेखा किया गया है।
हाई कोर्ट को निर्देश: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट से आदिवासी की पत्नी द्वारा दायर लंबित रिट याचिका पर आज जारी निर्देशों के आलोक में फैसला करने का अनुरोध किया है, जिसमें उन्होंने स्थानीय पुलिस की निष्क्रियता का आरोप लगाया था।
ये भी पढ़ें: 36 साल बाद मध्यप्रदेश नक्सलवाद मुक्त, एमपी के रजिस्टर्ड आखिरी नक्सली का सरेंडर, CM यादव ने कहा- लाल सलाम का अंत हुआ
/bansal-news/media/agency_attachments/2025/12/01/2025-12-01t081847077z-new-bansal-logo-2025-12-01-13-48-47.png)
Follow Us
चैनल से जुड़ें