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Comfort Watching Habit
Ek Hi Movie Bar Bar Dekhne Ka Man Kyu Karta Hai:क्या आप भी एक ही मूवी को बार-बार देखते हैं? हर सीन, हर डायलॉग रटा है, फिर भी उसे देखने का मन करता है.. अगर आपके साथ भी ऐसा होता है तो क्या आपने कभी सोचा ऐसा क्यों होता है? इसके पीछे क्या साइकोलॉजी है।
जब भी हमारा दिन खराब जाता है, हम वही पुरानी फ़िल्में या शो देखने बैठ जाते हैं, जिन्हें हम दसियों बार देख चुके होते हैं। Stranger Things, हम साथ-साथ हैं, हम आपके हैं कौन, Friends हो या हमारी पसंदीदा फैमिली ड्रामा। इनके हर डायलॉग ज़बानी याद होते हैं, फिर भी इन्हें देखना अच्छा लगता है। क्यों? क्यों हमारा दिमाग इन्हीं पुरानी फिल्मों में सुकून खोजता है? तो आइए जानते हैं मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का क्या कहना है।
बार-बार एक ही फिल्म क्यों देखते हैं?
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कंफर्ट वॉचिंग की साइकोलॉजीृ
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डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि दिमाग को प्रीडिक्टिबिलिटी (Predictability) पसंद होती है। यानी हमें पता हो कि आगे क्या होने वाला है। जब कहानी, सीन और डायलॉग पहले से मालूम हो, तो हमारा दिमाग रिलैक्स होता है और एंग्ज़ायटी कम होती है। जिस तरह पुराने दोस्तों के साथ बैठने से अपनेपन का एहसास होता है, वैसे ही पुरानी फिल्में इमोशनल सेफ्टी ज़ोन बना देती हैं। इसीलिए हम साथ-साथ हैं की फैमिली बॉन्डिंग, हम आपके हैं कौन का संगीत और हंसी, या DDLJ की प्यारभरी कहानी।ये सब हमें सुरक्षित और खुश महसूस करवाती हैं।
रीवॉचिंग के पीछे दो बड़ी वजहें
कंट्रोल का एहसास
जब जीवन में स्ट्रेस या अनिश्चितता ज्यादा होती है, तो दिमाग उन चीज़ों को पकड़ता है जहाँ वो कुछ कंट्रोल महसूस करे। पुरानी फिल्में वही कंट्रोल देती हैं क्योंकि हम जानते हैं आगे क्या होने वाला है।
कनेक्शन या भावनात्मक जुड़ाव
कई फिल्में हमें हमारी किसी याद से जोड़ देती हैं बचपन, कॉलेज, शादी का शुरुआती समय, फैमिली टाइम इसीलिए हम आपके हैं कौन देखने पर त्योहारों का माहौल याद आता है, और हम साथ-साथ हैं देखने पर परिवार की गर्माहट महसूस होती है।
कौन लोग ज़्यादा करते हैं रीवॉचिंग?
डॉ. त्रिवेदी के अनुसार जिन्हें एंग्ज़ायटी ज्यादा होती है, जो बदलाव से डरते हैं, शांत स्वभाव या इंट्रोवर्ट लोग, जो रोज़मर्रा की लाइफ से थके होते हैं वे ज़्यादा रीवॉचिंग करते हैं। क्योंकि इससे उन्हें मूड रिलैक्स होता है।
कब ध्यान देना जरूरी है?
रीवॉचिंग में कोई बुराई नहीं। पर समस्या तब होती है जब आप नई फिल्में/शो शुरू ही नहीं कर पाते, स्ट्रेस से बचने के लिए सिर्फ यही तरीका रह जाए, आप लगातार रिएलिटी से भागने लगें, तब यह इमोशनल ओवरलोड की ओर इशारा करता है।
इस लूप से कैसे बाहर निकलें?
डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कुछ आसान तरीके बताते हैं किसी दोस्त/परिवार के साथ नई मूवी शुरू करें। छोटे या फनी शो से शुरुआत करें, तनाव कम करने के एक्टिविटी करें जैसे टहलना, संगीत सुनना, जर्नलिंग अगर परेशानी बढ़े तो प्रोफेशनल से बात करें।
एक ही फिल्म या शो बार-बार देखना गलत नहीं है। ये आपके दिमाग का तरीका है खुद को शांत और सुरक्षित महसूस कराने का। लेकिन सवाल यह है आप बार-बार वही फिल्में कंफर्ट के लिए देख रहे हैं या रिएलिटी से भागने के लिए? इस फर्क को समझना जरूरी है।
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