Kamakhya Temple: भारत में देवी उपासना की अनेक परंपराएं हैं, लेकिन असम में स्थित कामाख्या देवी मंदिर एक ऐसा स्थान है, जो रहस्यों और आध्यात्मिक शक्तियों से भरा हुआ है। यह मंदिर ना केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि तांत्रिक क्रियाओं और शक्तिपीठों की महिमा का प्रतीक भी है।
यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां माता सती का योनि अंग गिरा था। यही वजह है कि इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक गुफा के भीतर स्थित प्राकृतिक योनिकुंड की पूजा की जाती है, जहां हमेशा एक दीपक जलता रहता है।
कामाख्या मंदिर की खासियतें और रहस्य
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यहां कोई भव्य मूर्ति नहीं, बल्कि एक गहरी गुफा में “योनि शक्ति” की पूजा होती है।
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मंदिर के भीतर जाने पर घना अंधेरा होता है, केवल एक दीया जलता है – यह स्त्री ऊर्जा और सृजन की प्रतीक मानी जाती है।
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मान्यता है कि इस मंदिर में बार-बार दर्शन नहीं किए जाते। भक्त यहां कुछ मर्यादाओं के साथ ही आते हैं।
अंबुबाची मेला: जब देवी होती हैं रजस्वला और मंदिर बंद रहता है
हर साल जून महीने में तीन दिनों तक कामाख्या मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। इन दिनों को “अंबुबाची पर्व” कहा जाता है।
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माना जाता है कि इन तीन दिनों में मां रजस्वला (menstruating) होती हैं।
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इस दौरान पूरे मंदिर परिसर में पूजा बंद हो जाती है, और प्रवेश निषेध रहता है।
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मंदिर में एक सफेद कपड़ा रखा जाता है, जो तीन दिन बाद लाल रंग में बदल जाता है – इसे भक्तों को प्रसाद स्वरूप दिया जाता है।
क्या ब्रह्मपुत्र का पानी सच में लाल हो जाता है?
एक अत्यंत रहस्यमय पहलू यह है कि अंबुबाची के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है। धार्मिक मान्यता कहती है कि यह देवी के रजस्वला होने का संकेत है। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रंग परिवर्तन संभवतः मिट्टी, लाल काई या आसपास के खनिज कारणों से हो सकता है।
फिर भी, श्रद्धालुओं के लिए यह एक ईश्वरीय संकेत होता है – शक्ति की शुद्धता और सृजन की प्रक्रिया का पवित्र प्रतीक।
तांत्रिकों और अघोरियों का आध्यात्मिक केंद्र
कामाख्या मंदिर न केवल आम श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्थल है, बल्कि यह तंत्र साधना का भी सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां साल भर तांत्रिक, साधक और अघोरी साधना करने आते हैं। मान्यता है कि यहां साधना करने से विशेष सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
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