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Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ की न्यायिक व्यवस्था से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला सामने आया है। बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को 21 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दे दी है। यह मामला न केवल कानून और महिला सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि पीड़िता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उसके शरीर पर अधिकार से भी संबंधित है। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने यह फैसला मेडिकल रिपोर्ट, डॉक्टरों की राय और कानून में मौजूद प्रावधानों के आधार पर दिया है।
कोर्ट ने साफ कहा कि गर्भपात करना या न करना पीड़िता की निजी इच्छा है। अगर उसे गर्भ जारी रखने के लिए मजबूर किया जाता, तो यह उसकी शारीरिक और मानसिक स्वतंत्रता पर हमला होता। कोर्ट ने आदेश में कहा कि अनचाहा गर्भ जारी रखना पीड़िता के स्वास्थ्य के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है। इससे उसकी जिंदगी पर बड़ा खतरा हो सकता है और उसे मानसिक आघात का सामना करना पड़ेगा।
कोर्ट ने मेडिकल सुपरविजन में गर्भपात का आदेश दिया
सीएमएचओ और विशेषज्ञ डॉक्टरों की रिपोर्ट के बाद अदालत ने पाया कि गर्भपात से कोई बड़ा जोखिम नहीं है। इसी आधार पर मेडिकल सुपरविजन में गर्भपात कराने का निर्णय लिया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि डॉक्टरों की टीम गर्भपात की पूरी प्रक्रिया में मौजूद रहे और सभी सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए जाएं।
एमटीपी एक्ट की धारा 3 के तहत गर्भपात की अनुमति
हाईकोर्ट ने यह आदेश मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (Medical Termination of Pregnancy Act) की धारा 3 के आधार पर दिया। इस एक्ट में यह प्रावधान है कि अगर गर्भ पीड़िता के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता हो तो गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है। जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू ने कहा कि इस मामले में कोई संदेह नहीं है कि पीड़िता जबरन यौन शोषण और बलात्कार की शिकार है। वह बलात्कार करने वाले के बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती, और यह उसके मौलिक अधिकारों का हिस्सा है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया गया
कोर्ट ने कहा कि गर्भपात करना या न करना महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। यह वही बात है जो सुप्रीम कोर्ट ने सुचिता श्रीवास्तव बनाम भारत संघ के केस में कही थी। अदालत ने साफ कहा कि गर्भ जारी रखने से न केवल पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा है बल्कि यह उसके पूरे भविष्य पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है।
पीड़िता की इच्छा का सम्मान होना जरूरी
कोर्ट ने कहा कि न्यायालय का दायित्व है कि किसी महिला, खासकर नाबालिग पीड़िता की इच्छा और सुरक्षा का सम्मान किया जाए। इसलिए गर्भपात की अनुमति देना आवश्यक था।
इस फैसले ने यह संदेश दिया है कि कानून के तहत महिला की इजाजत और उसके शरीर पर उसका अधिकार सर्वोपरि है।
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