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CG News: परिवार ने छेड़छाड़ के डर से बेटी को 20 साल अंधेरी कोठरी में कैद रखा, बचपन और जवानी तो गई, आंखों की रोशनी भी छीन ली

CG News: बस्तर में एक युवती को उसके परिवार ने छेड़छाड़ के डर से पूरे 20 साल अंधेरी कोठरी में बंद रखा। रोशनी, हवा और दुनिया से दूर यह कैद उसके बचपन, जवानी और आंखों की रोशनी तक छीन ले गई।

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Harsh Verma
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रिपोर्ट - रजत वाजपेयी

CG News: छत्तीसगढ़ के बस्तर से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने हर किसी की रूह कांप दी है। एक युवती को उसके ही परिवार ने 20 वर्षों तक अंधेरी कोठरी में बंद रखा, केवल इस शक में कि बाहर जाने पर उसके साथ छेड़छाड़ हो सकती है।

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सुरक्षा के नाम पर कैद, प्यार के नाम पर एक पूरा जीवन दफन, और नतीजा अंधेरा जिसने केवल कमरे को नहीं बल्कि उसकी दृष्टि, मन और भविष्य को भी निगल लिया।

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कैसे बंद हुई जिंदगी एक कोठरी में?

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यह कहानी है लीसा की, जो बकावंड ब्लॉक की एक बस्ती की रहने वाली है। परिजनों को गांव के ही एक युवक पर शक था कि वह लीसा को परेशान कर सकता है। इस भय ने गलती की जगह निर्णय का रूप ले लिया और परिवार ने अपनी बेटी को सुरक्षित रखने का मतलब उसकी पूरी स्वतंत्रता छीन लेना समझ लिया।

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वर्षों बीतते गए, गांव बदला, समाज बदल गया—पर लीसा की जिंदगी वहीं अंधेरे में कैद रह गई।

न रोशनी, न धूप, न हवा, न बाहर की दुनिया का कोई अस्तित्व। इस बंधन ने मज़बूरी को इतना गहरा कर दिया कि समय के साथ उसकी आंखों की रोशनी भी चली गई।

रेस्क्यू कैसे हुआ?

सूचना मिलते ही समाज कल्याण विभाग ने टीम भेजी और लड़की को कोठरी से निकालकर मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टरों की जांच में पता चला कि अंधेरे में रहने के कारण उसकी दृष्टि वापस आने की संभावना बेहद कम है।

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अब उसे कोलचूर स्थित आश्रम में रखा गया है जहां नियमित चिकित्सा, काउंसलिंग, मनोवैज्ञानिक पुनर्वास, सुरक्षित वातावरण की व्यवस्था है। उसकी देखभाल, भाषा पुनर्विकास और सामाजिक संपर्क की शुरुआत धीरे-धीरे कराई जा रही है।

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प्रशासन की कार्रवाई और समाज से सवाल

प्रशासन ने परिवार से पूछताछ शुरू कर दी है और संबंधित धाराओं में कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। यह मामला केवल कानून का नहीं, बल्कि समाज की सोच पर गंभीर चोट है।

20 साल जो उम्र सपनों, पढ़ाई, दोस्ती, दुनिया देखने और जीवन बनाने की होती है, वह लीसा के लिए अंधेरे, अकेलेपन और खामोशी में बीत गई।

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यह कहानी केवल एक लड़की की नहीं है

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यह सवाल हर परिवार, हर गांव और हर समाज से है, क्या सुरक्षा का मतलब कैद है? क्या डर के नाम पर किसी की जिंदगी रोकी जा सकती है? क्या समाज की नजरों से बचाने के लिए किसी के जीवन पर ताला लगा देना न्याय है?

यह घटना हमें याद दिलाती है डर और सामाजिक सोच के नाम पर किसी इंसान की आज़ादी छीनी नहीं जा सकती। इंसान को सुरक्षा मिलनी चाहिए, कैद नहीं।

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