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Bilaspur High Court: लिव-इन में रहे युवक को दुष्कर्म के आरोप से राहत, हाईकोर्ट ने नाबालिग होने का प्रमाण न मिलने पर राज्य की अपील की खारिज

Bilaspur High Court: बिलासपुर हाईकोर्ट ने रायगढ़ की एक युवती द्वारा लगाए गए दुष्कर्म के आरोप मामले में स्पेशल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम साबित नहीं हो पाई

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Harsh Verma
Bilaspur High Court

Bilaspur High Court:छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में दुष्कर्म के मामले में आरोपी को बरी किए जाने के फैसले को बरकरार रखते हुए राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। रायगढ़ जिले में वर्ष 2016 में दर्ज हुए इस केस में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने शादी का वादा कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में शादी से इंकार कर दिया। युवती का दावा था कि आरोपी उसे 1 फरवरी 2016 से लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) में रखता था।

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मामले की सुनवाई जस्टिस संजय एस. अग्रवाल (Justice Sanjay S. Agrawal) एवं जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल (Justice Radhakishan Agrawal) की डिवीजन बेंच (Division Bench) के समक्ष हुई। पुलिस ने शिकायत के आधार पर आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत अपराध दर्ज किया था।

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मेडिकल रिपोर्ट में जबरदस्ती के संकेत नहीं

चिकित्सकीय परीक्षण रिपोर्ट (Medical Examination Report) में लड़की के शरीर पर न तो चोट के निशान पाए गए और न ही जबरन संबंध बनाने के सबूत मिले। रिपोर्ट में स्पष्ट बताया गया कि इंटरकोर्स के दौरान किसी तरह की मजबूरी या हिंसा के प्रमाण नहीं थे।

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उम्र साबित न होने से बदल गया केस का आधार

मामले में एक बड़ा सवाल यह था कि कथित पीड़िता नाबालिग थी या नहीं। कोर्ट के सामने उम्र साबित करने के लिए वर्ष 2011 का स्कूल प्रोग्रेस कार्ड (School Progress Card) पेश किया गया, परंतु दस्तावेजों के आधार पर उम्र 18 वर्ष से कम होने का ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सका। इस आधार पर स्पेशल कोर्ट (Special Court) ने आरोपी को दोषमुक्त कर दिया था।

हाईकोर्ट ने सरकार की अपील खारिज की

राज्य शासन ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की, मगर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने माना कि पीड़िता की उम्र नाबालिग साबित नहीं हुई। साथ ही उसने यह स्वीकार भी किया कि वह आरोपी के साथ अपनी इच्छा से लिव-इन में रह रही थी। ऐसे में अदालत ने पाया कि यह दुष्कर्म का नहीं, बल्कि सहमति-आधारित संबंध का मामला प्रतीत होता है। इसी वजह से हाईकोर्ट ने स्पेशल कोर्ट का फैसला सही मानते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी।

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