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Analog Paneer
Analog Paneer : प्रदेश के होटल, ढाबों और रेस्तरां में पनीर के नाम पर एक अजीब खेल सामने आ रहा है। ग्राहकों को जहां छह सौ रुपये किलो तक बिकने वाले असली पनीर का स्वाद मिलने की उम्मीद होती है, वहां उन्हें दो सौ रुपये किलो वाला एनालॉग पनीर (What is analog paneer) परोसा जा रहा है। यह पनीर देखने में भले ही असली जैसा लगे, लेकिन स्वाद, पोषण और सेहत के लिहाज से यह पूरी तरह अलग और नुकसानदेह है।
नियम मौजूद, लेकिन जमीनी हकीकत अलग
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खास बात यह है कि खाद्य एवं औषधि प्रशासन जिन इकाइयों को लाइसेंस देता है, उन्हीं उत्पादों को लेकर छापेमारी भी कर रहा है। बावजूद इसके, होटल और ढाबों में परोसे जा रहे खाद्य पदार्थों की नियमित जांच नहीं हो पा रही है। नतीजा यह है कि ग्राहक अनजाने में नकली पनीर से बने व्यंजन खा रहे हैं और उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं दी जाती।
दूध से नहीं, पाम ऑयल से बनता है एनालॉग पनीर
खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, एनालॉग पनीर दूध से नहीं, बल्कि पाम ऑयल और मिल्क पाउडर को मिलाकर तैयार किया जाता है। इसमें असली पनीर की तुलना में सैचुरेटेड फैट ज्यादा होता है, जबकि जरूरी प्रोटीन और पोषक तत्व बेहद कम या न के बराबर होते हैं। यही वजह है कि इसका स्वाद चिपचिपा और बनावट रबर जैसी महसूस होती है।
पहचान आसान, फिर भी उपभोक्ता अनजान
विशेषज्ञों के मुताबिक असली पनीर मुलायम, स्पंजी और दूधिया खुशबू वाला होता है, जबकि एनालॉग पनीर सख्त, चिकनाईयुक्त और पाम ऑयल जैसी महक देता है। पानी में डालने पर असली पनीर रंग नहीं बदलता, वहीं एनालॉग पनीर में मौजूद स्टार्च के कारण पानी नीला या काला पड़ सकता है। इसके बावजूद होटल में परोसे जाने पर आम ग्राहक इसकी पहचान नहीं कर पाता।
सेहत पर पड़ सकता है गंभीर असर
आहार विशेषज्ञ शिल्पी गोयल का कहना है कि एनालॉग पनीर में प्रोटीन की कमी होती है, इसलिए यह शरीर के लिए फायदेमंद नहीं है। वहीं डायटिशियन डॉ. अरुणा पल्टा के अनुसार कृत्रिम तत्वों और खराब वसा से बनी चीजें लंबे समय में पाचन, हृदय और लिवर पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं। लगातार सेवन से कब्ज, पेट फूलना, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना और मधुमेह जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।
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FSSAI सख्त, लेकिन अमल जरूरी
स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को देखते हुए एफएसएसएआई (FSSAI) लगातार नियमों में बदलाव कर रहा है। अब एनालॉग पनीर की पैकिंग, लेबलिंग और बिक्री को लेकर और सख्ती की तैयारी है। इसके बावजूद सबसे बड़ा सवाल यही है कि नियमों का पालन जमीनी स्तर पर कब और कैसे सुनिश्चित होगा, ताकि उपभोक्ताओं की थाली में असली और सुरक्षित भोजन पहुंच सके।
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