Aaj Ka Mudda: “कांग्रेस में किसी की पटरी किसी के साथ नहीं बैठती” जवाब छोटासा है लेकिन सिंधिया बात बहुत बड़ी बोल गए. कांग्रेस का वो जख्म जो कई दशकों से पार्टी को परेशान किए हुए है. उसे सिंधिया ने एक बार फिर कुरेद दिया है.
सिंधिया ने कुरेदा कांग्रेस का जख्म
कांग्रेस में नेताओं के बीच पटरी नहीं बैठने का इतिहास काफी पुराना है या यूं कहें कि शुरू से ही है अस्सी के दशक से शुरू करें तो अर्जुन सिंह और शुक्ल बंधुओं को बीच हमेशा खींचतान रही है. अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी के बीच विंध्य की अदावत की चर्चा आज भी होती है.
उसके बाद दिग्विजय सिंह और माधवराव सिंधिया के बीच सियासी वर्चस्व की लड़ाई चलती रही. दिग्विजय सिंह और सुभाष यादव के बीच तनातनी की खबरें रहीं और 2020 में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तनातनी में जिस तरह से कांग्रेस की सरकार गिरी वो सबने देखा. हालांकि सिंधिया की बात से कांग्रेस इत्तेफाक नहीं रखती है.
सियासत में पटरी बैठाने का वक्त
खींचतान और महत्वाकांक्षी प्रतिस्पर्धा सत्ता का मूल चरित्र होता है और करीब 20 साल से सूबे की सत्ता पर काबिज बीजेपी में भी अब समन्वय की जरूरत महसूस की जाने लगी है. एक महीने में अमित शाह के तीन दौरों को इसी जरूरत से जोड़ कर देखा जा रहा है. हालांकि बीजेपी ऐसा नहीं मानती.
दोनों पार्टी में समन्वय बड़ी चुनौती
जाहिर है ज्योतिरादित्य सिंधिया जब पटरी नहीं बैठने की बात करते हैं तो नजरें बीजेपी की तरफ भी उठती हैं और कम से कम इस चुनाव में तो समन्वय का सूत्र साधना दोनों ही पार्टियों के लिए एक चुनौती है.
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