हाइलाइट्स
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विश्व अंगदान दिवस
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भारत में सबसे कम होता है अंगदान
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भारत में ऑर्गन की डिमांड ज्यादा, सप्लाई कम
World Organ Donation Day: ऋषि दधिचि ने देवताओं की असुरों से रक्षा के लिए अपना शरीर दान कर दिया था। उनकी हड्डियों की भस्म से एक हथियार बनाया गया था, जिससे वृतासुर नाम के राक्षस का वध हुआ था। ऋषि दधिचि की बात इसलिए की जा रही है क्योंकि 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है। अंगदान सबसे बड़ा दान है क्योंकि ये जीवन बचाता है।
हमारे देश भारत में अंगदान का प्रतिशत पूरी दुनिया में सबसे कम है। भारत में अंगदान का आंकड़ा 10 प्रतिशत से भी कम है। अंगदान का प्रतिशत कम होने की वजह क्या हैं, अंगदान ज्यादा से ज्यादा होना क्यों जरूरी है, इससे कितने लोगों की जान बचाई जा सकती है। अंगदान का प्रसार होना क्यों जरूरी है। भोपाल के बंसल हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने दिया हर सवाल का जवाब…
ऑर्गन की डिमांड और सप्लाई में इतना गैप क्यों, ये कितनी गंभीर स्थिति है ?
बंसल हॉस्पिटल में नेफ्रोलॉजिस्ट और किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. विद्यानंद त्रिपाठी ने कहा कि देश में लगातार किडनी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इसका मुख्य कारण डायबिटीज है। भारत डायबिटीज का कैपिटल माना जाता है। अनकंट्रोल डायबिटीज आपकी किडनी को खराब करता है। इसके साथ ही लाइफस्टाइल खराब होना। मोटापा बढ़ना, अपने मन से दवाइयां खाना, किडनी फेलियर की समस्या बढ़ा रही है। हम सभी जानते हैं कि किसी को एक बार क्रोनिक किडनी डिजीज हो जाए तो उसका कोई क्योर नहीं है, इलाज नहीं है। उसे आगे डायलिलिस पर जाना पड़ेगा। एक समय के बाद उसे ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ेगी।
3 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत, हुए सिर्फ 13 हजार
डॉ. विद्यानंद त्रिपाठी ने बताया कि भारत में 2 से 3 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत है, लेकिन सिर्फ 13 हजार किडनी ट्रांसप्लांट हुए हैं। इसमें 11 हजार लिविंग डोनर थे और 2 हजार कैडेवर थे।
लिविंग डोनर – परिवार का व्यक्ति या रिश्तेदार ऑर्गन डोनेट करे।
कैडेवर – जब किसी ब्रेन डेड मरीज के अंगों का ट्रांसप्लांट किया जाए।
हमारे देश में कैडेवर ट्रांसप्लांट 10 प्रतिशत से भी कम
डॉ. विद्यानंद त्रिपाठी ने कहा कि विकसित देशों में कैडेवर ट्रांसप्लांट का नंबर ज्यादा है, जिससे वे डिमांड सप्लाई के नंबर को पूरा कर पाते हैं। हमारे देश में कैडेवर ट्रांसप्लांट का नंबर 10 प्रतिशत से भी कम है। अधिकांश किडनी लिविंग डोनर से मिलती हैं। इसमें कई समस्या हैं। परिवार में दूसरे व्यक्ति को भी डायबिटीज है। परिवार के लोग तैयार नहीं हैं किडनी डोनेट करने के लिए। अधिकांश लोगों की ट्रांसप्लांट की वेटिंग लिस्ट में मृत्यु हो जाती है। कुछ डायलिसिस में बने रहते हैं जिसमें दिनचर्या सामान्य नहीं होती। इस चीज से निपटने के लिए ट्रांसप्लांट नंबर बढ़ाने की जरूरत है। डोनर्स बढ़ाने की जरूरत है। लोगों में भ्रांतियां हैं उनको दूर करने की जरूरत है जिससे लोग किडनी डोनेट करने के लिए तैयार हों।
भ्रांतियां दूर करने की जरूरत
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि एक व्यक्ति जो ब्रेन डेड है उसके ऑर्गन को वेस्ट होने से कैसे बचाया जाए। उससे कितने लोगों की जिंदगी बच सकती है। इस चीज को प्रमोट करना सबसे जरूरी है। दुनिया का कोई भी धर्म किसी की जान बचाने के लिए मना नहीं करता। हर धर्म में दूसरे की जान बचाने को सबसे बड़ा काम माना गया है। सरकार धार्मिक गुरुओं को शामिल करे। लोगों को सलाह दें कि ऑर्गन डोनेट करने से आपकी आत्मा नहीं भटकेगी। आपकी आगे की जिंदगी खराब नहीं होगी। लोगों में डर है कि अस्पताल ऑर्गन के लिए डेड डिक्लेयर कर रहा है। उन्हें बताया जाए कि ये गर्वमेंट की प्रोसेस है जो पूरे तरीके से ईमानदारी से की जाती है। किसी भी जीवित व्यक्ति के ऑर्गन नहीं निकाले जाते हैं। सरकार कुछ ऐसा प्लान करे कि जिस परिवार ने किडनी डोनेट की है। उसे मेडिकल उपचार, मेडिकल इंश्योरेंस दे। नौकरी में आरक्षण दे।
भारत में डोनेशन की संख्या कम क्यों ?
ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. संतोष अग्रवाल ने कहा कि भारत में डोनेशन की संख्या इसलिए कम है। क्योंकि लोगों में जागरूकता नहीं है। मरीज ब्रेन डेड हो जाता है तो कई बार हम परेशानी देखते हैं कि ICU में हार्ट चल रहा होता है, लेकिन ब्रेन डेड हो गया है। ऐसे में परिजन को ये समझाना बड़ा मु्किल होता है कि ब्रेन डेड हो गया है। कई बार किडनी डोनेशन की बारी आती है तो सारे रिश्तेदार भाग जाते हैं। ऑर्गन डोनेशन के बारे में व्यापक स्तर पर इस बात का प्रसार जरूरी है कि अंगदान करना चाहिए। इससे जरूरतमंदों को राहत मिल सकेगी।
ब्रेन डेड डिक्लेयर करना एक लीगल प्रोसेस
डॉ. संतोष अग्रवाल ने बताया कि ब्रेन डेड सर्टिफिकेशन लीगल प्रक्रिया है। 4 डॉक्टर की टीम होती है। चारों डॉक्टर अलग-अलग सर्टिफाइड करते हैं तब मरीज को ब्रेन डेड माना जाता है। इसे एपनिया टेस्ट कहा जाता है। 6 घंटे बाद दूसरा एपनिया टेस्ट किया जाता है। अगर मरीज को वेंटिलेटर पर छोड़ते हैं तो 24 घंटे से लेकर 6-7 दिन में डेथ हो जाती है। अगर परिजन पेशेंट को घर नहीं ले जाते हैं तो अस्पताल का खर्च बढ़ता जाता है। फिर ये लांछन लगाया जाता है कि पेशेंट को वेंटिलेटर पर रखा गया। ब्रेन डेड का मतलब डेथ है। ऐसा आज तक दुनिया में नहीं हुआ कि किसी मरीज को ब्रेन डेड घोषित किया गया हो और वो दोबारा जीवित हो गया हो।
ऑर्गन डोनेशन के बाद क्या आगे की लाइफ मुश्किल होती है ?
ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अमित झा ने कहा कि किडनी या ऑर्गन ट्रांसप्लांट हो ये एक वॉलेंटियर प्रक्रिया होती है। किसी को इसके लिए फोर्स नहीं किया जा सकता। हम तो सिर्फ रास्ता दिखाते हैं। बहुत सारे लोग किडनी डोनेट तो करना चाहते हैं, लेकिन मन में डर रहता है कि मैं अगर किडनी डोनेट करूंगा तो क्या मेरे जीवन में कोई समस्या तो नहीं आएगी। किडनी डोनेशन से पहले व्यापक प्रक्रिया होती है। बहुत डीटेल में सारी जांच होती हैं। किडनी डोनेट करने वाला मरीज सबसे फिट होता है। पहले किडनी डोनेशन में लंबा चीरा लगाया जाता था, लेकिन अब बंसल हॉस्पिटल में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के जरिए किडनी डोनेशन होता है। इसमें सिर्फ 4-5 छोटे-छोटे होल होते हैं, इससे रिकवरी भी फास्ट होती है।
किडनी डोनर कितने दिन में फिट हो जाता है ?
डॉ. अमित झा ने बताया कि किडनी डोनेट करने वाला शख्स अगले ही दिन चलने-फिरने और नॉर्मल सेल्फ केयर की एक्टिविटी कर पाता है। डेस्क जॉब या कोई भी सिटिंग जॉब वो अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद ही कर सकता है। अगर कोई लेबर है या भारी वजन उठाने का काम है तो फिर हम उसे कहते हैं कि 1-2 महीने के बाद ही वो भारी काम करे।
डायलिसिस और ट्रांसप्लांट में क्या फर्क है ?
नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. हर्षिता शर्मा ने कहा कि जब एडवांस किडनी डिजीज हो चुकी होती है तो उस स्टेज पर पेशेंट के पास ऑप्शन होता है कि दवाई के साथ किडनी का कार्य किसी मशीन के द्वारा कराया जाता है उसको डायलिसिस बोलते हैं। डायलिसिस उस स्टेज में होता है जब किडनी इतनी सक्षम नहीं होती है कि वो विषाक्त पदार्थ सीधे बाहर निकाल सके। मशीन के जरिए खून की सफाई कराई जाती है।
ऐसे पेशेंट जिनको डायलिसिस की सलाह दी जा रही है या जो पहले से ही डायलिसिस पर हैं उनके लिए दूसरा ऑप्शन होता है कि किडनी ट्रांसप्लांट किया जाए। ट्रांसप्लांट के बाद पेशेंट को कुछ दवाइयां खानी होती हैं, लेकिन डायलिसिस जैसी लंबी प्रोसेस से नहीं गुजरना होता है। लॉन्ग टर्म डायलिसिस पर रहने वाले पेशेंट को ट्रांसप्लांट की सलाह दी जाती है। ट्रांसप्लांट एक उम्मीद की किरण है जो किडनी फेलियर के बाद भी आपको नई जिंदगी दे सकता है। अगर किसी कारण से परिवार के लोगों से किडनी नहीं मिल पाती है तो उन्हें कैडेवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी जाती है।
सही जानकारी होना बेहद जरूरी
डॉ. हर्षिता शर्मा ने कहा कि कैडेवर ट्रांसप्लांट के लिए सही जानकारी होना बेहद जरूरी है। एक्सपर्ट्स से सलाह जरूर लेनी चाहिए। सही नॉलेज के साथ काउंसलिंग होना जरूरी है। इसी तरीके से हम अपने देश में लाइव डोनर और कैडेवर डोनेशन को बढ़ा सकते हैं।
अंगदान से बड़ा दान कोई हो नहीं सकता। किसी का जीवन बचाने से बड़ा काम कोई नहीं हो सकता। इसलिए अंगदान को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है।