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हाइलाइट्स
वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे
सादगी में है असली खुशी
बाजारवाद और पूंजीवाद ने छीनी शांति
World Mental Health Day: आपके जीवन की असली खुशी क्या है ? अगर आप दौलत-शोहरत को जीवन का सुख मानते हैं तो ये पूरी तरह सच नहीं है। हालांकि हर किसी के लिए खुशी के पैमाने अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन असली खुशी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ अपनों का होना है। अच्छी फिजिकल और मेंटल हेल्थ आपके जीवन का सुख है, लेकिन इसके बाद भी आपका मन अशांत क्यों रहता है ? इसकी वजह क्या है ? परिवार में माता-पिता और बच्चों के बीच समस्याएं क्यों होती हैं ? पुरानी और नई पीढ़ी के बीच टकराव क्यों हो रहा है ? एक तनावमुक्त जीवन कैसे जिया जा सकता है ?
वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे पर बंसल हॉस्पिटल भोपाल के जाने-माने सीनियर साइकेट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी ने बताया कि कैसे आप टेंशन फ्री लाइफ जी सकते हैं। डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी से बंसल न्यूज डिजिटल के एडिटर सुनील शुक्ला ने खास बातचीत की।
मन की बेचैनी क्यों बढ़ रही है?
आधुनिक समाज में मान्यता (Recognition) की भूख ने इंसान को अस्थिर बना दिया है। हमें खुद नहीं पता कि हम क्या चाहते हैं। सोशल मीडिया और लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने इस बेचैनी को और गहरा कर दिया है। लोगों के पास बात करने वाला कोई नहीं है, इसलिए वर्चुअल साथियों का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन यह राहत नहीं, बल्कि एक नया जाल (Trap) बन चुका है।
बाजारवाद और पूंजीवाद का असर
सीनियर साइकेट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि शांत और आत्मनिर्भर मन बाजारवाद और पूंजीवाद के लिए सबसे बड़ा खतरा एक है। आज इंसान अपनी प्राथमिकताएँ तय नहीं कर पा रहा, इसी कारण बीमारियों का शिकार हो रहा है। हमारा दिमाग हाईजैक किया जा चुका है अब हम खुद नहीं सोचते, बल्कि हमें सोचने पर मजबूर किया जा रहा है।
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खास बातचीत के दौरान बंसल न्यूज डिजिटल के एडिटर सुनील शुक्ला और सीनियर साइकेट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी[/caption]
सफलता के मायने बदल गए हैं
समाज ने सफलता को केवल मानकों (Standards) में बाँध दिया है। पुराने पूंजीवादी विचारों में फँसे लोग "CHASING " के चक्कर में असली सुख से दूर हो गए हैं। डॉ. सत्यकांत द्विवेदी के अनुसार, असली सुख नियमित जीवन, स्वस्थ शरीर, संतुलित भोजन और पर्याप्त नींद में है लेकिन आज का इंसान दिखावटी सफलता के पीछे भाग रहा है।
इस जाल से कैसे निकलें ?
असली खुशी कोई लक्ष्य नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा है। सीमाएँ तय करें कितना सोना है, परिवार को कितना समय देना है, क्या खाना है। दुख हर किसी के जीवन का हिस्सा है, फर्क इतना है कि हम उसे कैसे संभालते हैं। अपनों से जुड़ना, बातचीत करना और वास्तविकता में जीना ही मानसिक स्वास्थ्य की असली नींव है।
भारतीय परिवारों में बढ़ती दूरियाँ
भारत में परिवार को केवल जैविक रिश्तों तक सीमित कर दिया गया है। आंकड़ों के अनुसार, 42 प्रतिशत आत्महत्याओं के पीछे पारिवारिक समस्याएँ होती हैं। परिवारों में सामंजस्य और स्नेह जरूरी है। जिन रिश्तों में संगति नहीं है, वहाँ स्वस्थ अलगाव (Healthy Separation) अपनाना अब “New Normal” माना जा रहा है।
पीढ़ियों के बीच संवाद की कमी
- माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है।
- हमारे समाज में उम्र को रिश्तों से ज़्यादा महत्व दिया गया है।
- नई पीढ़ी का दृष्टिकोण अलग है, अहंकार नहीं।
- वरिष्ठों और युवाओं दोनों को व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
- जब बच्चों से सामाजिक दायरा छीन लिया जाता है, तो उनसे मिलनसार होने की उम्मीद रखना अनुचित है।
मन की शांति क्या है और कैसे पाएँ ?
- मन की शांति का अर्थ है हर परिस्थिति में स्थिर रहना।
- अगर भीतर से खुशी नहीं है, तो बाहरी चीज़ें सुकून नहीं दे सकतीं।
- नकारात्मक विचारों की जड़ पहचानें, तुलना और ईर्ष्या छोड़ें।
- हर इच्छा पूरी नहीं होगी इसे स्वीकार करना ही मानसिक शांति का पहला कदम है।
- करुणा और सम्मान पर आधारित समाज ही हमें सच्चे अर्थों में मानसिक रूप से स्वस्थ बना सकता है।
भोपाल में हुई दुनिया की पहली रेसीप्रोकल सर्जरी, 440 किमी दूर बैठे डॉक्टरों ने किया सफल ऑपरेशन
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Bhopal Reciprocal Surgery: क्या आपने कभी सोचा है कि डॉक्टर एक शहर में बैठे हों और सर्जरी सैकड़ों किलोमीटर दूर किसी दूसरे शहर में हो रही हो? सुनने में यह साइंस फिक्शन लगता है, लेकिन भारत में यह हकीकत बन चुका है। भोपाल और आगरा में एक साथ हुई “रेसीप्रोकल सर्जरी” ने मेडिकल साइंस में नया अध्याय जोड़ दिया है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें...
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