सतना। भारत सांस्कृतिक रूप से एक बहुत ही समृद्ध देश है। गांव से लेकर शहर तक यहां त्योहार मनाए जाते हैं। लोग आपस में मिलते हैं और खुशियां बांटते हैं। कई जगहों पर मेले लगते हैं और लोग यहां पहुंचते हैं और त्योहार का आनंद लेते हैं। हम सबने बचपन से मेले तो बहुत देखे होंगे, लेकिन क्या कभी आपने गधों का मेला देखा है? जी हां, ये सच है। भारत का यह इकलौता ऐसा मेला है जहां गधों का मेला लगता है।
कहा लगता है यह मेला?
यह मेला मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी चित्रकूट में लगता है। वर्षों से यह ऐतिहासिक मेला लगता आ रहा है। यहां अलग-अलग राज्यों से व्यापारी गधे-खच्चर लेकर चित्रकूट पहुंचते हैं। यहां खरीदारों के साथ-साथ मेला देखने वालों की भी भारी भीड़ रहती है। दिवाली के दूसरे दिन पवित्र मंदाकिनी नदी के किनारे गधों का ऐतिहासिक मेला लगता है। इस बार मेले में करीब 15 हजार गधे आए थे। इनकी कीमत 10,000 रुपये से लेकर 1.50 लाख रुपये तक है।
किसने की थी मेले की शुरूआत?
बता दें कि इस मेले की शुरूआत मुगल बादशाह औरंगजेब ने की थी। तब से लेकर आज तक मेला परंपरागत लगता आ रहा है। यह मेला 3 दिनों तक चलता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि एक बार मुगल शासक औरंगजेब की सेना में असलहा और रसद ढोने वालों की कमी हो गई थी। ऐसे में शासक ने पूरे इलाके से गधों और खच्चरों के पालकों से इसी मैदान में एकत्र कर उनके गधे खरीद लिए थे। तब से लेकर आज तक व्यापार का यह सिलसिला हर साल आयोजित होता है।
दूर-दूर से आते हैं लोग
इस अनोखे मेले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां 3 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। 3 दिन के मेले में लाखों का कोरोबार किया जाता है। हालांकि कोरोना काल के चलते यहां 2 साल बाद मेले का आयोजन किया जा रहा है। व्यापारी बताते हैं कि पहले यहां राजोना हजारों गधे बचे जाते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे लोग आधुनिक होते जा रहे हैं माल ठुलाई के लिए गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। चित्रकूट नगर पंचायत द्वारा हर साल दीपावली के मौके पर गधा मेले का आयोजन किया जाता है। इसके एवज में गधा व्यापारियों से बकायदा राजस्व भी वसूला जाता है।