भोपाल। ग्वालियर राजघराने की राजमाता और भारतीय जनता पार्टी (BJP)के संस्थापक सदस्यों में से एक विजया राजे सिंधिया (Vijaya raje Scindia) की आज जयंती है। इस मौके पर कई लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भी ट्विट कर कहा कि “राजमाता विजया राजे सिंधिया जी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि। उनका जीवन पूरी तरह से जन सेवा के लिए समर्पित था। वह निडर और दयालु थीं। अगर भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिस पर लोगों को भरोसा है, तो इसका कारण यह है कि हमारे पास राजमाता जी जैसे दिग्गज थे, जिन्होंने लोगों के बीच काम किया और पार्टी को मजबूत किया”।
मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़ा कद
बता दें कि मध्य प्रदेश की राजनीति में राजमाता विजया राजे सिंधिया का नाम हमेशा बड़े सम्मान से लिया जाता है। एक राजनीतिज्ञ के रूप में उनका कद काफी बड़ा था। हालांकि, फिर भी उन्हें कई बार कुछ ऐसी चीजों का सामना करना पड़ा, जिसका उन्हें खुद अंदाजा भी नहीं था। ऐसा ही एक किस्सा है, जब मध्यप्रदेश के एक सीएम ने उनकी फाइल पर “ऐसी की तैसी” लिख दिया था। आइए जानते हैं क्या था पूरा मामला।
अपना का बदला लेने के लिए जाना जाता है
गौरतलब है कि विजया राजे सिंधिया को अपने अपमान का बदला लेने के लिए भी जाना जाता है। विजया राजे सिंधिया ने अपने राजनीति की शुरूआत कांग्रेस से की थी। हालांकि, 10 साल बाद कांग्रेस से मोह भंग हो गया और उन्होंने कांग्रेस छोड़, निर्दलीय चुनाव के मैदान में उतर गईं। चुनाव के बाद उनके साथ 36 विधायकों ने भी कांग्रेस को छोड़ दिया और राजमाता के साथ हो लिए। अब सवाल यह है कि उन्होंने कांग्रेस क्यों छोड़ी?
क्यों छोड़ी कांग्रेस?
दरअसल, तब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और डीपी मिश्रा मुख्यमंत्री थे। ग्वालियर में हुए छात्र आंदोलन को लेकर मुख्यमंत्री और राजमाता में अनबन हो गई। एक मीटिंग में राजमाता को सीएम ने काफी देर तक इंतजार करवाया। विजयाराजे सिंधिया ने इस वाक्ये को अपमान माना और कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गईं। चुनाव जीतने के बाद उनके साथ कांग्रेस के 36 विधायक साथ आ गए। ऐसे में उनके समर्थन से राजमाता ने गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया।
डीपी मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ा था
बतादें कि तब मध्य प्रदेश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी और डीपी मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ था। हालांकि, राजमाता ने जिन्हें अपने दम पर मुख्यमंत्री बनवाया था यानी गोविंदनारयण सिंह से भी उनकी उतनी नहीं बनी। वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब राजनीतिनामा मध्य प्रदेश के अुनसार गोविंद नारायण सिंह का काल भारी अनियमितताओं के लिए जाना जाता है। इस सरकार में विजयाराजे सिंधिया सीधे सरकार में तो नहीं थीं, लेकिन उनका हस्तक्षेप जरूर था। क्योंकि राजमता संयुक्त विधायक दल की नेता थी और सरकार पर नजर रखने के लिए उन्होंने अपने सबसे खास सरदार आंद्रे को मध्यस्थ बना रखा था।
गोविंद नारायण तंग आ गए थे
बकौल दीपक तिवारी शुरूआत में तो गोविंद नारायण सिंह, राजमाता के सभी आदेशों को मान लेते थे। लेकिन बाद में वो इससे तंग आ गए। क्योंकि राजमाता के नाम पर अधिकारियों की नियुक्ति और तबादला किया जा रहा था। गोविंद नारायण सिंह के पास जैसे ही राजमाता की फाइल आती उसे ज्यों का त्यों पास कर दिया जाता था। लेकिन एक दिन इससे तंग आकर गोविंद नारायण ने फाइल पर लिख दिया “ऐसी की तैरी”। फिर क्या था बवाल मच गया। लोग कहने लगे कि मुख्यमंत्री ने राजमाता की फाइल पर गाली लिख दी है। लेकिन बाद में गोविंद नारायण ने बवाल मचते देख लोगों को समझाया कि उन्होंने ऐसा नहीं किया है। इसका मतलब होता है ‘एज प्रपोज्ड’ यानि आपने जैसे लिखा मैंने वैसे ही माना। हालांकि, गोविंद नारायण की सरकार भी ज्यादा दिन तक नहीं चली और उन्हें भी 2 साल के अंदर कुर्सी छोड़नी पड़ी।