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पुलिस किसी भी घटना के बाद क्राइम सीन को फिर से क्यों रिक्रिएट करती है? ज्यादातर लोगों को इसका एक ही पहलू पता होगा!

पुलिस किसी भी घटना के बाद क्राइम सीन को फिर से क्यों रिक्रिएट करती है? ज्यादातर लोगों को इसका एक ही पहलू पता होगा! Why do the police recreate the crime scene after any incident? Most people will know only one side of it nkp

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Bansal Digital Desk
पुलिस किसी भी घटना के बाद क्राइम सीन को फिर से क्यों रिक्रिएट करती है? ज्यादातर लोगों को इसका एक ही पहलू पता होगा!

नई दिल्ली। किसी घटना के घटने के बाद आपने देखा होगा कि पुलिस उस वारदात के सीन को रीक्रिएट करती है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हाल ही में हुई घटना के बाद गुरुवार को पुलिस ने घटनास्थल को फिर से खंगाला और सीन को रीक्रिएट किया गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पुलिस ऐसा क्यों करती है और ये कैसे होता है? ज्यादातर लोगों को इसका एक पहलू पता होता है कि ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पुलिस समझ सके कि घटना कैसे हुई, लेकिन इसके तकनीकी पक्ष की जानकारी कम ही लोग रखते हैं।

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फॉरेंसिक के वैज्ञानिक करते हैं सीन रिक्रिएट

बतादें कि कई बार घटना जो दिख रही होती है, वैसी होती नहीं है। उदाहरण के लिए के सड़क दुर्घटना को लेते हैं। पुलिस इस घटना को शुरूआत में सड़क दुर्घटना मान कर चलती है। लेकिन बाद में मृतक के परिवार ने आरोप लगाया कि यह कोई सड़क दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या का मामला है। उनका कहना है कि पीड़ित की हत्या करके उसके शव को गाड़ी के नीचे डाला गया है ताकि ऐसा लगे कि मौत सड़क दुर्घटना में हुई है। ऐसी स्थिति में फॉरेंसिक साइंस लैबरेट्री के वैज्ञानिक क्राइम सीन को रिक्रिएट करते हैं और पता लगाते हैं कि वाकई में मामला हत्या का था या नहीं।

क्या होता है क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन?

सीन रिक्रिएट कर पुलिस पता लगाती है कि क्या हुआ था, कहां हुआ था, कैसे हुआ था, कब हुआ था, किसने किया और क्यों किया? इस प्रक्रिया में उपलब्ध भौतिक साक्ष्यों के आधार पर अपराध स्थल पर यह तय किया जाता है कि घटना कैसे हुई। इस प्रक्रिया में अपराध स्थल की वैज्ञानिक जांच की जाती है, घटनास्थल के साक्ष्यों की व्याख्या की जाती है, भौतिक साक्ष्य की लैब में जांच की जाती है, केस से जुड़ी सूचनाओं की चरणबद्ध स्टडी की जाती है और तर्कों के आधार पर एक थिओरी तैयार की जाती है।

कैसे होता है क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन?

क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन की शुरुआत पीड़ित से होती है। पीड़िता से घटना के बारे में पहले पूछताछ की जाती है। अगर पीड़ित की मौत हो जाती है तो उसके करीबी का इंटरव्यू लिया जाता है या फिर घटना में शामिल लोगों से पूछताछ की जाती है। अपराध स्थल और वहां के सभी चीजों की बहुत ही सावधानीपूर्वक फोटोग्राफी या विडियोग्राफी की जाती है। जांचकर्ताओं का मामले का खुले दिमाग और बारीकी से विश्लेषण करना अनिवार्य होता है।

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इसको यूं समझ सकते हैं। मान लीजिए किसी घटना में एक अपराधी किसी को गोली मार देता है। उस स्थिति में जांचकर्ता इस बात पर गौर करेगा कि अगर एक निर्धारित स्थान से और एक निर्धारित ऐंगल से गोली मारी जाती है, तो वह कहां जाकर लगेगी और असल में पीड़ित को कहां लगी है।

खून के धब्बे

हिंसक अपराध की स्थिति में क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन में खून के धब्बे भी अहम होते हैं। जब खून किसी जख्म, हथियार या किसी अन्य चीज से गिरते हैं तो एक खास पैटर्न बनता है। खून के छींटे इस बात को दिखाते हैं कि खून किस दिशा में गया। पीड़ित या आरोपी ने भागने की कोशिश की। इस दिशा में खून के धब्बे बहुत कुछ प्रकाश डालते हैं।

पैरों के निशान

क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन में पैरों के निशान भी काफी अहम होते हैं। अगर कोई संदिग्ध कहता है कि वह वहां मौजूद नहीं था और अगर उसके पैरों के निशान वहां मेल खा जाता है तो वह दोषी साबित होगा। हत्या, मारपीट, लूटपाट और रेप के मामले में पैरों के निशान काफी अहम साबित हुए हैं। जब कोई अपराध स्थल पर होता है तो उसकी चप्पलों या जूते के सोल के निशान छप जाते हैं जो नजर आ भी सकते हैं और नहीं भी।

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