Dacoit Gabbar Singh : कितने आदमी थे… सरदार तीन… फीर भी लौटकर आ गए…, दूर-दूर जब गांव में जब कोई बच्चा रहता है, तो मां कहती है, सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा.. आपने ये डायलॉग तो सुने ही होंगे। यह फिल्म शोले के डाकू गब्बर सिंह के डायलॉग है। जब फिल्म शोले सिनेमा घरों में आई थी तब हाल ऐसा था कि गब्बर सिंह के डायलॉग आते है पूरा सिनेमा हाल तालियों से गूंज उठता था। फिल्म में दिखने वाला गब्बर सिंह तो कुछ भी नहीं था। असली गब्बर सिंह फिल्म वाले गब्बर से काफी खतरनाक था। असली गब्बर सिंह को एक अंधविश्वास ने उसे इतना क्रिरोधी बना दिया था कि वह चंबल में आतंक का पर्याय बन गया था।
1970 में रिलीज हुई फिल्म शोले थ्री-डी प्रिंट रिलीज होने तक जेहन में बसी हुई है। इसके साथ ही चंबल के बीहड़ में शांत हो चुके 1950 के दशक की दहशत की यादें ताजा हो चुकी है। जिस गब्बर सिंह को लोग काल्पनिक पात्र समझे आए है लेकिन वह हकीकत में एक चरित्र पात्र था। आतंक का पर्याय बन चुके गब्बर पर मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकार ने 50-50 हजार रुपये का इनाम रखा था। वही राजस्थान सरकार ने 10 हजार रुपये का इनाम रखा था।
अंधविश्वास में फंस गया था गब्बर
मध्यप्रदेश के भिंड जिले के डांग गाव में जन्मा गब्बर सिंह बचपन से ही कुख्यात था। गब्बर को अंधविश्वास ने और क्रूर बना दिया था। कहा जाता है कि गब्बर सिंह को एक तांत्रिक ने कह दिया था कि अगर वह 106 व्यक्तियों की नाक काट कर अपनी इष्ट देवी को चढ़ाएगा तो पुलिस उसका एंकाउंटर नहीं कर सकेगी। तांत्रिक की बात के बाद से इलाके के गांवों में हत्याओं के अलावा नाक काटने की घटनाएं होने लगीं थी। जब नाक कटने वाले पीड़ित भोपाल पहुंचे तो विरोधी दल के नेताओं ने हंगामा खड़ा कर दिया। उस समय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू थे।
गब्बर ने मारी 21 बच्चों को गोली
तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू के लिए गब्बर सिंह गले की फांस बन चुका था। सरकार कुछ करती इससे पहले ही गब्बर सिंह ने मुखबिरी को लेकर एक गांव में 21 बच्चों की लाइन लगवाकर हत्या कर दी। इस घटना ने प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की सरकार को हिले के रख दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मप्र के तत्कालीन पुलिस प्रमुख को बुलाकर कहा कि गब्बर सिंह और उसकी गैंग का सफाया जल्द से जल्द किया जाए। बताया जाता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री काटजू गब्बर सिंह की हरकतों इतना परेशान हो गए थे कि जब भी वह पुलिस अधिकारियों से मिलते तो एक ही बात कहते कि श्मुझे गब्बर चाहिए। चाहे मरा या जिंदा।
रुस्तमजी ने किया था गब्बर का एनकाउंटर
गब्बर सिंह को एक पुलिस वाले की हत्या करना महंगा पड़ गया। इस घटना के बाद से वह पुलिस के निशाने पर आ गया था। गब्बर सिंह के खात्मे का जिम्मा मध्य प्रदेश पुलिस के महानिरीक्षक केएफ रुस्तमजी ने लिया था। इसके लिए सबसे मुश्किल काम बीहड़ में मुखबिर तंत्र खड़ा करना, क्योंकि गब्बर के डर से लोग पुलिस से बचते थे। उसी समय एक घटना घटी, गांव के एक मकान में आग लग गई। शेखर नाम का एक बच्चा भी उसमें फंस गया। केएफ रुस्तमजी को सूचना मिली, तो वह पहुंचे और आग से घिरे घर में घुसकर शेखर को सुरक्षित निकाल लाए। इसके बाद से गांव वालों में उनकी छवि एक बहादुर इंसान की बन गई। देखते ही देखते ग्रामीण उनके करीब आ गए। इसके बाद ग्रामीणों की मदद से 1959 में स्पेशल आर्म फोर्स ने गब्बर सिंह का घेरकर एनकाउंटर कर दिया। इसके अलावा 9 अन्य डकैतों को भी मार गिराया।
चंबल में नहीं हुई शोले फिल्म की शूटिंग
गब्बर सिंह पर बनी फिल्म शोले की शूटिंग चंबल में नहीं की गई। बल्कि फिल्म की शूटिंग बेंगलुरू के रामगढ़ गांव में की गइ। क्योंकि उस समय बीहड़ अशांत था। उस समय मान सिंह, पुतली बाई जैसे दुर्दात डकैतों की गैंग इलाकों में साक्रिय थी। ऐसे में फिल्म की शूटिंग करना संभव नहीं था।