नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने शुक्रवार को केदारनाथ (Kedarnath) में श्री आदि शंकराचार्य (Shri Adi Shankaracharya) की मूर्ति का अनावरण किया। केदारनाथ धाम में शंकराचार्य की 12 फीट लंबी और 35 टन वजनी प्रतिमा स्थापित की गई है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर आदि शंकराचार्य कौन थे।
8 साल की उम्र में बन गए थे संन्यासी
शंकर आचार्य का जन्म 507-50 ई. पूर्व में केरल में कालपी ‘काषल’ नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरू भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था। दोनों ने लंबे समय तक भगवान शंकर की पूजा की और पुत्र रत्न प्राप्त किया। ऐसे में माता-पिता ने बेटे का नाम शंकर रखा। जब शंकर 3 वर्ष के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। हालांकि शंकर बचपन से ही मेधावी और प्रतिभाशाली थे। महज 6 साल की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ साल की अवस्था में इन्होंने संन्यास भी ग्रहण कर लिया था।
इन्हें शंकर का अवतार माना जाता है
श्री आदि शंकराचार्य ने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी, जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी ‘शंकराचार्य’ कहे जाते हैं। ये चारों स्थान हैं- 1. ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, 2. श्रृंगेरी पीठ, 3. द्वारिका शारदा पीठ, 4. पुरी गोवर्धन पीठ। शंकराचार्य ने अनेक विधर्मियों को भी अपने धर्म में दीक्षित किया था। इन्हें शंकर का अवतार माना जाता है। इन्होंने ब्रह्मसूत्रों की बड़ी ही विशद और रोचक व्याख्या की है। आदि शंकरचार्य ने सनातन धर्म के वैभव को बचाने के लिए और सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रधानमंत्री की सहमति के बाद मूर्ती का चयन
बतादें कि केदारनाथ धाम में शंकराचार्य की प्रतिमा निर्माण के विए अलग-अलग मूर्तिकारों ने कई मॉडल दिए थे। लेकिन जो मूर्ति स्थापित की गई है, उसका चयन करीब 18 मॉडलों को खारिज कर किया गया है। इस प्रतिमा का चयन प्रधानमंत्री की सहमति के बाद ही किया गया था। मालूम हो कि इस मूर्ति को मैसुरू के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरूण योगीराज ने तैयार किया है। इस काम में अरुण की पांच पीढ़ियां लगी हुई हैं। अरुण ने इस मूर्ति को अपने 8 अन्य साथियों के साथ मिलकर तैयार किया है।
मूर्ति को लगभग 1 साल में तैयार किया गया है
मूर्ति को तराशने का काम सितंबर 2020 में शुरू किया गया था जो तकरीबन एक साल तक लगातार चलता रहा और इस साल सितंबर महीने में मूर्ति को मैसुर से चिनूक हेलीकॉफ्टर के जरिए उत्तराखंड पहुंचाया गया था। प्रतिमा निर्माण के दौरान शिला पर नारियल पानी का इस्तेमाल किया गया है। ताकि इससे प्रतिमा की सतह चमकदार हो और आदि शंकरचार्य के तेज का प्रतिनिधित्व कर सके।
प्रतिमा पर नहीं होगा इनका असर
प्रतिमा निर्माण के लिए लगभग 130 टन की एक शिला का चयन किया गया था। शिला को तराशने और काटने- छांटने के बाद प्रतिमा का वजन लगभग 35 टन रह गया। इस प्रतिमा पर आग, पानी, बारिश, हवा के थपेड़ों का कोई असर नहीं होगा। बतादें कि साल 2013 में आई आपदा में आदि शंकराचार्य की समाधि पूरी तरह तबाह हो गई थी। इसके बाद ही यहां जीर्णोद्धार का काम शुरू किया गया है।