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Clean Note Policy: RBI की ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ क्या है? जानिए विस्तार से सब कुछ...

आइए जानते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) की ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ यानी ‘स्वच्छ नोट नीति’ आखिर में है क्या?

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Shyam Nandan
Clean Note Policy: RBI की ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ क्या है? जानिए विस्तार से सब कुछ...

What is Clean Note Policy: आज से दो दिन पहले 19 मई की शाम को भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) ने 2000 रूपये के नोट को वापस लेने की आधिकारिक घोषणा की। आरबीआई (RBI) की घोषणा के अनुसार, दो हजार रूपये के ये नोट ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ तहत वापस लिए जा रहे हैं।

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बहस गरम है!

दो हजार रूपये के इन नोटों को वापस लेने के आरबीआई (RBI) के फैसले पर शासन और सियासत में बहस गर्म है। विपक्ष हावी होकर सरकार की घोर आलोचना में जुटी है कि यदि 2000 के नोट कालाधन और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लाया गया था, तो क्या वह उद्देश्य पूरा हो गया है। यदि पूरा नहीं हुआ है, तो फिर इन नोटों को वापस क्यों लिया जा रहा है।

बहरहाल, राजनीति और बयानबाजी से परे आइए जानते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) की ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ यानी ‘स्वच्छ नोट नीति’ आखिर में है क्या?

क्लीन नोट पॉलिसी क्या है - What is the Clean Note Policy

‘क्लीन नोट पॉलिसी’ यानी ‘स्वच्छ नोट नीति’ करेंसी नोटों और सिक्कों से जुड़ी एक ऐसी नीति है, जिसके तहत आरबीआई (RBI) पुराने, गंदे, जाली और नकली नोटों के प्रचलन को रोकती है। यह कालाधन को रोकने के एक उपाय के रूप में भी काम करता है। यह वित्तीय भ्रष्टाचार और नोटों की जमाखोरी को रोकने और हतोत्साह करने के लिए भी लागू किया जाता है।

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क्लीन नोट पॉलिसीका उद्देश्य

‘क्लीन नोट पॉलिसी’ यानी ‘स्वच्छ नोट नीति’ का प्रमुख उद्देश्य गंदे नोटों को चलन से बाहर कर देश की जनता, बैंकों और करेंसी लेनदेन से जुड़े ग्राहकों को अच्छी क्वालिटी के करेंसी नोट और सिक्के देना है। जनता को केवल अच्छी गुणवत्ता स्वच्छ नोट प्रदान करना और काउंटर पर प्राप्त गंदे नोटों को रिसाइकिल करने से बचाना है।

क्लीन नोट पॉलिसी का दूसरा अहम उद्देश्य कालेधन पर रोक लगाना है। कालेधन के कारण देश में एक ‘समांतर अर्थव्यवस्था’ खड़ी हो जाती है। जो देश की अर्थव्यवस्था को अग्रगामी होने की बजाय पश्चगामी बना देती है।

साल 1999 में शुरू हुआ था क्लीन नोट पॉलिसी

बता दें, पहली बार साल 1999 में भारतीय रिजर्व बैंक ने ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ को शुरू किया था। यह पॉलिसी लाने का उद्देश्य था- देश में नकली मुद्रा के प्रचलन को रोकना। इस नीति के तहत 2001 और 2003 में कदम उठाए गए थे। आइए जानते हैं, जब यह पॉलिसी लाया गया था, तब देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ा था।

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क्या असर हुआ था क्लीन नोट पॉलिसी का – Impact of Clean Note Policy

इस पॉलिसी ने लोगों को अपने पुराने नोट जमा करने और नए नोट लेने के लिए मजबूर किया था। लिहाजा, बाजार में नकदी यानी कैश-फ्लो की कमी हो गई थी। रियल एस्टेट, रिटेल यानी खुदरा बाजार और यहां तक कि पर्यटन जैसे कई क्षेत्र इससे प्रभावित हुए थे।

इस बार की 'क्लीन नोट पॉलिसी' का देश के अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा, इस पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन आम जनता को इससे कुछ भी बड़ा फर्क नहीं पड़ने वाला है, यह तो तय है. क्योंकि, आम जनता के पास पहले से ही 2000 के नोट नहीं थे।

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