Parakram Diwas 2024: भारत के इतिहास में साहसी और शूरवीरों की गाथाएं आज भी चर्चित हैं। जिनके किस्से अंग्रेजी हुकुमत से जुड़े होते हैं। सुभाष चंद्र बोस के भी बहादुरी और साहस के किस्से हमें पढ़ने को मिलते हैं, जो हमें सीख देते हैं, कि हमें किस तरह से अपने जीवन में साहसी बनना है।
पराक्रम दिवस का महत्व
पराक्रम का अर्थ है शौर्य… पराक्रम दिवस को शौर्य दिवस के नाम से भी जाना जाता है। साहस और शौर्य के प्रतीक नेताजी सुभाष चंद्र बोस को माना जाता है। भारत सरकार ने इसीलिए उनकी जयंती को पराक्रम दिवस का नाम दिया और आज के दिन उनकी जयंती को पराक्रम दिवस के नाम से मनाया जाने लगा।
बता दें, कि सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद जी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। जबकि उनके भीतर राजनीतिक प्रतिभा चितरंजन दास द्वारा उभरी थी, जिसकी वजह से वह चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
भारत की आजादी से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य दर्शाते हैं, कि सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज की बढ़ती शक्ति से अंग्रेज़ी हुकूमत घबराती थी। सुभाष चंद्र बोस की आज 127वीं जयंती हैं। इस अवसर पर जानते हैं, ‘पराक्रम दिवस’ (Parakram Diwas 2024) कब और क्यों मनाया जाता है।
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देश के प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने की थी पराक्रम दिवस की शुरुआत
देशभर में हर साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस (Parakram Diwas 2024) मनाया जाता है। जिसकी घोषणा देश के प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने साल 2021 में की थी। इस मौके पर कई कार्यक्रम किए जाते हैं, जिनमें बताया जाता है, कि आज का दिन साहस और सलामी का होता है।
आज ही के दिन क्यों मनाते हैं, पराक्रम दिवस
23 जनवरी यानि कि सुभाष चन्द्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस (Parakram Diwas 2024) के रूप में मनाया जाता है, बता दें, कि इसी दिन महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। यह दिन बेहद खास माना जाता है। आज के दिन सुभाष चन्द्र का जन्म हुआ था। इस दिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में
साल 1897 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक में एक बंगाली परिवार में हुआ था। नेताजी के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती था। नेताजी के पिता कटक के मशहूर वकील थे।
नेताजी बचपन से ही पढ़ने-लिखने में काफी आगे थे और हमेशा दिलचस्पी से पढ़ते थे। नेताजी ने देश सेवा की भावना से नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए।
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