नई दिल्ली। मालवनेयर्स से हैकिंग का खतरा हमेशा स्मार्टफोन यूजर्स के साथ बना रहता है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भारत को लेकर दावा किया है कि ‘पेगासस’ (Pegasus) स्पाइवेयर का इस्तेमाल करके यूजर्स की जासूसी की जा रही थी। आपको बता दें कि Pegasus स्पाइवेयर साल 2019 में चर्चा में आई थी। उस वक्त WhatsApp ने पेगासस स्पाइवेयर को लेकर इजरायली स्पाइवेयर निर्माता एनएसओ ग्रुप पर मुकदमा दायर किया था।
कई देशों की सरकार कर रही है इस्तेमाल
इस स्पाइवेयर की मदद से पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, वकीलों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की जासूसी की जा रही थी। वहीं अब एक बार फिर से Pegasus चर्चा में है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस स्पाइवेयर को कई देशों की सरकार यूज कर रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये ‘पेगासस’ है क्या और ये कैसे काम करता है?
यूजर्स को पता नहीं चलता कि उसका फोन हैक हुआ है
मालूम हो कि पेगासस एक स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है। यानी इसकी मदद से किसी की भी जासूसी की जा सकती है। इस स्पाइवेयर (spyware) को इजरायल की एक कंपनी NSO Group ने तैयार किया है। कंपनी साइबर वेपन्स बनाने में माहिर मानी जाती है। इजरायली कंपनी का कहना है कि वो सिर्फ सरकार को ये टूल बेचती है और इसके मिसयूज के लिए कंपनी जिम्मेदार नहीं है। बतादें कि इस स्पाइवेयर की मदद से फोन हैक करने पर यूजर्स को पता भी नहीं चलता कि उसका फोन हैक हुआ है। यही कारण है कि कई देश की सरकार जासूसी के लिए इस स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर (spyware software) का इस्तेमाल करती है।
किसी फोन में कैसे पहुंचता है स्पाइवेयर
हैकर सबसे पहले उस फोन को निशाना बनाता है जिसे हैक किया जाना है। इसके बाद हैकर यूजर को malicious वेबसाइट की लिंक सेंड करता है। यूजर जैसे ही लिंक पर क्लिक करता है उसके फोन में स्पाइवेयर पेगासस (spyware pegasus) इंस्टॉल हो जाता है। इसके अलावा इसे वॉट्सऐप वॉयस कॉल के जरिए भी कई बार इंस्टॉल कर दिया जाता है। पेगासस इतना एडवांस सॉफ्टवेयर है कि इसे बस एक मिसकॉल के जरिए भी यूजर के फोने में इंस्टॉल किया जा सकता है।
इंस्टॉल होते ही काम शुरू कर देता है
फोन में इंस्टॉल होते ही स्पाइवेयर अपना काम शुरू कर देता है। सबसे पहले कॉल लॉग हिस्ट्री को डिलीट कर देता है। ताकि यूजर को मिस्ड कॉल के बारे में पता भी नहीं चल सके। इसके बाद यह आपके फोन पर पूरी तरह से नजर रखता है। यहां तक कि ये वॉट्सऐप एन्क्रिप्टेड चैट्स को भी डिकोड कर देता है। पेगासस यूजर्स के मैसेज को पढ़ने के अलावा, कॉल को ट्रैक, यूजर की एक्टिविटी आदि को भी ट्रैक कर सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, Pegasus लोकेशन डेटा, फोन के वीडियो कैमरा का एक्सेस, माइक्रोफोन का एक्सेस भी ले सकता है। इससे वो किसी की बातचीत को भी आसानी से सुन सकता है। जानकारों कि माने तो पेगासस, ब्राउजर हिस्ट्री, कॉन्टैक्ट डिटेल्स, मेल पढ़ने, स्क्रीनशॉट लेने आदी में भी सक्षम है।
यह एक एडवांस टूल है
यह एक अल्टीमेट और काफी स्मार्ट, एडवांस सर्विलांस टूल है। अगर इसका संपर्क कमांड और कंट्रोल सर्वर से 60 दिन तक नहीं हो पता है तो यह अपने आप को खुद ही नष्ट कर देता है। इसे लगता है कि यह गलत डिवाइस में इंस्टॉल हो गया है। इस सॉफ्टवेयर को लेकर खास बात ये है कि इसे हर कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता है क्योंकि यह काफी महंगा सॉफ्टवेयर है। इसकी कीमत लाखों डॉलर में है। साथ ही इसे बनाने वाली कंपनी पहले ही दावा कर चुकी है कि इसे वह सिर्फ सरकार को ही बेचती है। आम आदमी को इस सॉफ्टवेयर से डरने की जरूरत नहीं है। क्यों कि इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लेकिन फिर भी सतर्क रहने की जरूरत है। आपको ऐसे किसी भी लिंक पर क्लिक करने से बचना चाहिए जो आपको किसी विश्वसनीय स्रोत से नहीं भेजा गया है।