Wrestlers vs WFI Chief: पिछले 1 महीनें से दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहलवानों का जमावड़ा लगा हुआ है। पहलवानों की मांग है कि रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (WFI Chief) के अध्यक्ष और यौन उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी हो। अपने ऊपर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों के बीच बीजेपी सांसद सिंह ने एक बड़ा बयान देते हुए वह नार्को टेस्ट कराने को तैयार हैं लेकिन एक शर्त पर।
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नार्को टेस्ट कराने के लिए तैयार
WFI Chief का कहना है कि वह नार्को टेस्ट कराने के लिए तैयार है, लेकिन इस शर्त पर कि दोनों पहलवान विनेश फोगट और बजरंग पुनिया का भी नार्को टेस्ट हो। आखिर क्या होता है नार्को टेस्ट, जिसको लेकर पहलवानों और बृजभूषण शरण सिंह के बीच यह ताजा मुद्दा बन गया है।
क्या होता है नार्को टेस्ट?
नार्को टेस्ट को लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है। इस टेस्ट में किसी इंसान को दवा देकर लगभग बेहोशी की हालत में डाल दिया जाता है। इस काम के लिए सीरम के रूप में सोडियम पेंटोथल, सोडियम थायोपेंटल, स्कोपोलामाइन या सोडियम एमाइटल किया जाता है। बता दें कि सीरम बहुत जल्दी और एनिस्थिसिया के लिए कम मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है।
टेस्ट के दौरान इंसान के साथ क्या किया जाता है?
दवाओं के सेवन के बाद कोई इंसान अपनी सोचने की ज्यादा क्षमता खो देता है। ऐसे में ज्यादा जानकारी देने की संभावना बढ़ जाती है। टेस्ट के दौरान घटना के बारे में सच्चाई बताने के लिए कहा जाता है। डॉक्टरों की मौजूदगी में उनसे पूछताछ की जाती है और उनके द्वारा किए गए खुलासे वीडियो में रिकॉर्ड किए जाते हैं। जिसके बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है।
बता दें कि नार्को टेस्ट कराने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत होती है। लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने के लिए आरोपी/ उसके संबंधी की सहमति की जरूरत होती है। इसके अलावा उनके पास एक वकील की पहुंच होनी चाहिए।
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क्या भारत की अदालतों में मान्य है नार्को टेस्ट?
सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के अनुसार, , ऐसे टेस्ट के परिणामों को सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। हालांकि, इस तरह के परीक्षण के बाद होने वाले खुलासे या जानकारी को जांच में इस्तेमाल किया जा सकता है।