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नई दिल्ली। लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) देश के लिए एक धरोहर थी। यही कारण है कि उन्हें साल 2001 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा गया था। दुनियाभर में उनके करोड़ों चाहने वाले हैं और कई देश से लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। आज स्वर कोकिला शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन, अब पूरा देश उन्हें उनकी आवाज से याद रखेगा। मेलोडी क्वीन लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के निधन पर सरकार ने भी दो दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। साथ ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। ऐसे में आज हम जानेंगे कि देश में कब राष्ट्रीय शोक घोषित किया जाता है और इस घोषणा के बाद देश में क्या-क्या बदल जाता है?
पहले राष्ट्रीय शोक के क्या नियम थे?
बता दें कि राष्ट्रीय शोक घोषित करने का नियम पहले सीमित लोगों के लिए ही था। पहले देश में केवल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रह चुके लोगों के निधन पर ही राजकीय या राष्ट्रीय शोक की घोषणा की जाती थी। हालांकि, स्वतंत्र भारत में पहली बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था। अगर राष्ट्रपिता के शोक को छोड़ दिया जाए, तो पहले जो नियम थे उसके अनुसार पद पर रहते हुए किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के निधन के बाद या पूर्व प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के निधन के बाद राष्ट्रीय शोक की घोषणा की जाती थी।
समय के साथ बदले नियम
हालांकि, समय के साथ राष्ट्रीय शोक के नियम में भी बदलाव किए गए। नए नियम के अनुसार, गणमान्य व्यक्तियों के मामले में भी केंद्र को यह अधिकार दिया गया है कि विशेष निर्देश जारी कर सरकार राष्ट्रीय शोक का ऐलान कर सकती है। इतना ही नहीं देश में किसी बड़ी आपदा की घड़ी में भी 'राष्ट्रीय शोक' घोषित किया जा सकता है।
बता दें कि राष्ट्रीय या राजकीय शोक की घोषणा पहले केंद्र से होती थी। राष्ट्रपति केंद्र सरकार की सलाह पर इसकी घोषणा करते थे।
लेकिन, अब नए नियमों में राज्यों को भी यह अधिकार दे दिया गया है। अब राज्य खुद तय कर सकते हैं कि किसे राजकीय सम्मान देना है। अब केंद्र और राज्य सरकारें अलग-अलग राजकीय शोक घोषित करते हैं।
इस दौरान आधा झुका रहता है राष्ट्रीय ध्वज
फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के मुताबिक, राष्ट्रीय शोक के दौरान सचिवालय, विधानसभा समेत सभी महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों में लगे राष्ट्रीय ध्वज आधे झुके रहते हैं। इतना ही नहीं देश के बाहर भी भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों में राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया जाता है। इस दौरान किसी भी तरह के औपचारिक और सरकारी कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता है। राजकीय शोक की अवधि के दौरान समारोहों और आधिकारिक मनोरंजन की भी मनाही रहती है।
अब सार्वजिक छुट्टी अनिवार्य नहीं है
बता दें कि पहले राष्ट्रीय शोक के दौरान सरकारी कार्यालयों में अवकाश होती थी। लेकिन,केंद्र सरकार द्वारा 1997 में जारी किए गए नोटिफिकेशन के अनुसार अब सार्वजनिक छुट्टी अनिवार्य नहीं है। इसका प्रावधान खत्म कर दिया गया है। हालांकि, पद पर रहते हुए अगर किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का निधन हो जाए, तो छुट्टी होती है। वहीं सरकारों के पास किसी गणमान्य व्यक्ति के निधन के बाद सार्वजनिक अवकाश की घोषणा का अधिकार है। जैसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर कई राज्यों ने अपने यहां सार्वजनिक अवकाश और 7 दिन का राजकीय शोक घोषित किया था।
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