आगरा। दुनिया में हाल ही में इजिप्ट में मिली एक ममी के बारे में खूब चर्चा हो रही है। यह ममी मिस्र की रानी हत्शेपसट की मानी जा रही है। इसके बाद अब मुमताज को ताजमहल में दफनाने वाली चर्चा ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। कई मुगल इतिहासकारों का कहना है कि मुमताज की बॉडी को ममीफाइड नहीं किया गया था। मुगल बादशाह शाहजहां ने 17वीं सदी में अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल का निर्माण कराया था। मुमताज का निधन महाराष्ट्र के बुरहानपुर कस्बे में 14वें बच्चे को जन्म देते समय हो गया था। मुमताज को पहले बुरहानपुर में ही दफनाया गया था। हालांकि इसके बाद मुमताज के ताबूत (Coffin) को बुरहानपुर से निकालकर आगरा ले जाया गया। यहां 12 साल तक मुमताज का ताबूत ताजमहल की जगह रखा गया। इसके 12 साल बाद मुमताज के ताबूत को ताजमहल के फाउंडेशन में दफनाया गया। अब इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलने के कारण सवाल खड़े हो रहे हैं कि 12 साल तक शव को कैसे सुरक्षित रखा गया था। इनमें से एक बात तो यह कही जा रही है कि शव बुरहानपुर में दफनाया गया था। वहां की कब्र में ही बॉडी डीकंपोज्ड हो गई थी। इसके बाद उस कब्र से केवल प्रतीकात्मक अवशेष आगरा लाए गए थे। जिन्हें दफनाया गया था। वहीं दूसरी बात यह कही जा रही है कि शव पूरी तरह से मिट्टी हो गया था। इनमें से केवल कुछ हड्डियां और कुछ शरीर का ढांचा बचा था। जिसे लाकर आगरा में दफनाया गया था।
क्या कहते हैं जानकार…
मुगल इतिहासकार आर नाथ बताते हैं कि चूंकि ताबूत को लाते समय उसे खोलकर नहीं देखा गया था। अगर ऐसा होता तो हम जरूर बता पाते कि शव किस स्थिति में था। लेकिन इस बात से भी क्या फर्क पड़ता है कि शव किस स्थिति में था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहासकार अफजल खान बताते हैं कि यह संभव है कि मुमताज का शरीर डी कंपोज्ड हो गया हो। क्योंकि एक लंबे समय तक वह बुरहानपुर में दफन रहीं और इसके बाद आगरा लाया गया। दक्षिण भारत से आगरा की दूरी तय में भी समय लगा होगा। तो ऐसा हो सकता है कि उनका शरीर डी कंपोज्ड हो गया हो। लेकिन हम केवल इन बातों का अंदाजा लगा सकते हैं। ताजमहल के 75 वर्षीय सीनियर गाइड एसके त्रिपाठी बताते हैं कि माना जाता है कि मुमताज के शव को कांच और तांवे के ताबूत में रखा गया था। यह ताबूत एयरटाइट और सील्ड था। ताजमहल में यह ताबूत 12 साल तक रखा रहा। इसके बाद इसे ताजमहल के बेसमेंट में हमेशा के लिए दफना दिया गया। इसके बाद से यहां किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारी बताते हैं कि हमें याद भी नहीं कि आखिरी बार किसने बेसमेंट में करीब से देखा था। सीढ़ियों के पास मार्बल के बने एक स्थान को करीब एक शतक पहले ही सील कर दिया गया था। यहां चारों तरफ ईंटों की दीवार बना दी गई है। यहां पास जाने का कोई भी तरीका नहीं है।
बुरहानपुर में दफनाया गया था शव
इतिहासकार आरसी शर्मा बताते हैं कि मुमताज को बुरहानपुर में ही दफना दिया गया था। आगरा जो भी आया था वह केवल अवशेष थे। जिन्हें ताजमहल में दफनाया गया था। सेंट जोन्स कॉलेज के इतिहास के शिक्षक अमित मुखर्जी बताते हैं कि इतिहास के हिसाब से मुमताज को तीन अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया था। ज्यादातर लोगों को नहीं पता कि पहले ताजमहल को बुरहानपुर में बनाने का विचार किया गया था। हालांकि राजस्थान से संगमरर को बुरहानपुर तक लाना काफी मंहगा पड़ता, इस कारण आगरा में ताजमहल को बनाने का फैसला लिया गया। इतिहासकारों की इन सब बातों के बाद भी शव को इतने सालों तक सुरक्षित रखने वाले सवाल का जवाब नहीं मिला। मुगल इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले मीडिया रसर्चर अफसर अहमद बताते हैं कि यह भी संभव है कि मुमताज का शव आज भी ताजमहल में बिल्कुल वैसा ही दफन हो जैसे उनका इंतकाल हुआ था।
मुमताज को उनकी मौत के 6 महीने बाद दफनाया गया था। मुमताज का निधन जून 1631 में हुआ था। वहीं उन्हें जनवरी 1632 में दफनाया गया था। अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि 6 महीने तक उनके शव को कैसे डी कंपोज्ड होने से बचाया गया। इसके जवाब में खुद ही अहमद बताते हैं कि जामिया हमदर्ज यूनिवर्सिटी के म्यूजियम क्यूरेटर अरमानुल हक की मानें तो मुमताज का शरीर यूनानी चिकित्सा टेक्नीक की मदद से सुरक्षित रखा गया। अहमद बताते हैं कि मुमताज के कोफीन को एयरटाइट कर टीन का बनवाया गया था। इसमें हवा जाने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई। इसके साथ ही इसमें बाबुल पेड़ की राख, मेंहदी, कपूर के टुकड़े समेत कुछ अन्य जरूरी चीजों की पर्तें बनाईं गई। इन पर्तों में उनका शरीर डीकंपोज्ड होने से बचाया गया। अब क्या यूनानी टेक्नीक के इस तरीके को भी ममीफिकेशन कहा जा सकता है?