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Dihuli Massacre: 44 साल पुराने दिहुली नरसंहार मामले में बड़ा फैसला, तीन दोषी करार, सजा का ऐलान बाकी

Uttar Pradesh Mainpuri Dihuli Massacre Update; मैनपुरी की अदालत ने 44 साल पुराने दिहुली नरसंहार मामले में तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है। यह मामला 18 नवंबर 1981 का है, जब जसराना के दिहुली गांव में डकैत

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Dihuli Massacre: 44 साल पुराने दिहुली नरसंहार मामले में बड़ा फैसला, तीन दोषी करार, सजा का ऐलान बाकी

(रिपोर्ट- रंचित पांडे, मैनपुरी)

हाइलाइट्स

  • 44 साल पुराने दिहुली नरसंहार मामले में बड़ा फैसला
  • तीन दोषी करार, सजा का ऐलान बाकी
  • नरसंहार के बाद गांव में रह रहे सिर्फ तीन परिवार
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Dihuli Massacre: मैनपुरी की अदालत ने 44 साल पुराने दिहुली नरसंहार मामले में तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है। यह मामला 18 नवंबर 1981 का है, जब जसराना के दिहुली गांव में डकैत राधेश्याम उर्फ राधे और संतोष उर्फ संतोषा ने अपने 22 साथियों के साथ दलित समुदाय के 25 लोगों की हत्या कर दी थी। इस नरसंहार में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे।

मुखबिरी को लेकर शुरू हुए जातीय संघर्ष

यह हत्याकांड मुखबिरी को लेकर शुरू हुए जातीय संघर्ष का नतीजा था। आरोपियों ने 'मारो-भून डालो' का नारा लगाते हुए यह जघन्य अपराध किया था। इस मामले की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद गांव का दौरा किया था। घटना के एक साल बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था।

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24 आरोपियों में से 21 की मुकदमे के दौरान मौत

कुल 24 आरोपियों में से 21 की मुकदमे के दौरान मौत हो चुकी है। इनमें मुख्य आरोपी राधे और संतोषा भी शामिल हैं। मामले में एफआईआर 19 नवंबर 1981 को दर्ज की गई थी। पीड़ित परिवार अब दोषियों के लिए फांसी की सजा की मांग कर रहे हैं।

नरसंहार के बाद गांव में रह रहे सिर्फ तीन परिवार

नरसंहार में कई परिवारों ने अपने परिजनों को खो दिया था। उसके बाद गांव में रहने में लोगों को अपने परिजनों की याद सताने लगी। कई परिवारों ने गांव को छोड़ दिया। गांव में रहने वाले ज्ञान सिंह ने बताया कि उनका परिवार तो गांव में रह रहा है, लेकिन कई परिवार अब गांव के बाहर रह रहे हैं।

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नरसंहार के समय एक वर्ष का था- पीड़ित

नरसंहार के दौरान अपने बाबा ज्वाला प्रसाद, पिता भूरे लाल और चाचा मुन्नेश कुमार को गंवाने वाले ज्ञान सिंह ने बताया कि जब गांव में दबंगों ने नरसंहार किया था, उस समय उनकी उम्र सिर्फ एक वर्ष थी। गांव में उस समय क्या हुआ, इसके बारे में उन्हें परिजनों और ग्रामीणों ने बताया। उन्होंने कहा कि जब वह इस घटना के बारे में सुनते हैं, तो उनके आंसू बह निकलते हैं।

न्याय की उम्मीद, लेकिन सूख गए हैं आंसू

महिला मीना देवी ने बताया कि नरसंहार के दौरान उनके परिवार के लीलाधर और गीतम सिंह की मौत हुई थी। परिजनों के अनुसार, गांव में आए 24 लोगों ने तांडव मचाया था। उन्होंने कहा कि अब फैसला आया तो है, लेकिन अब तो आंसू भी सूख चुके हैं। अदालत ने तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है, लेकिन सजा का ऐलान अभी बाकी है। पीड़ित परिवारों को न्याय मिलने की उम्मीद है, लेकिन इस लंबी कानूनी लड़ाई ने उन्हें भावनात्मक रूप से काफी प्रभावित किया है।

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