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हाइलाइट्स
- विशेष हालात में वसीयत को कोर्ट में दी जा सकती है चुनौती
- जालसाजी, दबाव और मानसिक असमर्थता बनते हैं आधार
- वसीयत रद्द कराने की जिम्मेदारी होती है चुनौतीकर्ता पर
India Property Rules: भारत में संपत्ति को लेकर विवाद आम बात है। कई बार यह घर-परिवार में कलह और टूट का बड़ा कारण बनता हैं। कई बार किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो संपत्ति को लेकर विवाद खड़ा हो जाता है। ऐसे मामलों में वसीयत (Will) की भूमिका अहम होती है। वसीयत में व्यक्ति अपनी स्व अर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी दान कर सकता है। हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में वसीयत को अदालत में चुनौती दी जा सकती है और रद्द भी कराया जा सकता है।
वसीयत रद्द भी हो सकती है
वसीयत से जुड़े मामले भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act, 1925) के अंतर्गत आते हैं। इस अधिनियम का मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति की वसी.त में उसके साथ अन्याय हुआ है या किसी तरह की कोई गड़बड़ी हुई है तो वह इसे अदालत में चुनौती दे सकता है।
किस आधार पर वसीयत हो सकती है रद्द
धोखाधड़ी और जालसाजी
अगर कोई व्यक्ति किसी के साथ वसीयत को लेकर धोखाधड़ी या फर्जीवाड़ा करता है तो वसीयत रद्द हो सकती है। इसमें अगर कोई यह साबित कर दे कि वसीयत में मृतक के फर्जी हस्ताक्षर हैं या दस्तावेज में छेड़छाड़ की गई है, तो वसीयत को अमान्य घोषित किया जा सकता है।
धमकी देकर या बलपूर्वक वसीयत बनवाना
अगर किसी व्यक्ति को डरा-धमका कर या मानसिक दबाव डालकर वसीयत बनवाई गई हो तो वसीयत को अदालत रद्द कर सकती है। हालांकि, ऐसे मामलों में कोर्ट में परिस्थिति और सबूतों के आधार पर निर्णय लिया जाता है।
मानसिक स्थिति ठीक न होना
अगर किसी व्यक्ति ने अपनी वसीयत बनवाई है लेकिन उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी तो ऐसी वसीयत कोर्ट में चुनौती देने लायक बन जाती है। इसके लिए डॉक्टर की रिपोर्ट और मेडिकल दस्तावेज पेश करने होते हैं।
कानूनी प्रक्रिया का पालन न होना
वसीयत बनाने की एक कानूनी प्रक्रिया होती है, जिसमें गवाहों की मौजूदगी, स्पष्टता, और लिखित रूप से संपत्ति के बंटवारे की बात शामिल होती है। यदि यह प्रक्रिया पूरी तरह नहीं अपनाई गई हो, या वसीयत संदेहास्पद परिस्थितियों में बनाई गई हो, तो उसे अवैध घोषित किया जा सकता है।
सबूतों की जिम्मेदारी किस पर होती है?
कानून के अनुसार, जो व्यक्ति वसीयत को चुनौती दे रहा होता है, उसी पर यह जिम्मेदारी होती है कि वह अपने आरोपों को कोर्ट में साबित करे। चाहे वह जालसाजी हो, दबाव का मामला हो या मानसिक स्थिति का मुद्दा — हर बात का कानूनी प्रमाण देना अनिवार्य होता है।
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