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Kanpur Medical College: इलाज के बदले मौत, 16 घंटे तक पड़ा रहा शव, बदबू से भागे मरीज, मौत के बाद भी नहीं ले गए शव

Kanpur Medical College: शनिवार दोपहर करीब 2:15 बजे कुछ लोग 25 वर्षीय युवक सुंदर को बेहोशी की हालत में छोड़कर चले गए। पहचान अधूरी थी, हालत गंभीर थी। डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया लेकिन रात 1 बजे तक उसकी सांसें थम गईं।

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anurag dubey
Kanpur Medical College: इलाज के बदले मौत, 16 घंटे तक पड़ा रहा शव, बदबू से भागे मरीज, मौत के बाद भी नहीं ले गए शव

हाइलाइट्स 

  • 16 घंटे अस्पताल परिसर में पड़ा रहा शव
  • मरीज को नहीं मिली एंबुलेंस
  • एक दूसरे के मथ्थे खेलते रहे अधिकारी
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Kanpur Medical College:  कानपुर देहात के अकबरपुर में बने मेडिकल कॉलेज में हुई एक घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है – क्या हमारी संवेदनाएं भी सरकारी फाइलों की तरह धूल खा रही हैं? शनिवार को भर्ती एक लावारिस मरीज ने इलाज के इंतजार में दम तोड़ दिया, और मौत के बाद भी उसका शव करीब 16 घंटे तक वार्ड के बेड पर पड़ा रहा। बदबू से परेशान मरीज और तीमारदार वार्ड छोड़कर बाहर चले गए, मगर सिस्टम की नींद में कोई खलल नहीं पड़ा।

16 घंटे अस्पताल परिसर में पड़ा रहा शव 

शनिवार दोपहर करीब 2:15 बजे कुछ लोग 25 वर्षीय युवक सुंदर को बेहोशी की हालत में छोड़कर चले गए। पहचान अधूरी थी, हालत गंभीर थी। डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया लेकिन रात 1 बजे तक उसकी सांसें थम गईं। इसके बाद जो हुआ, वह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि मानवता पर कलंक था – शव बेड पर पड़ा रहा, मानो जिंदगी और मौत दोनों का अस्पताल में कोई मोल न हो।

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मरीज को नहीं मिली एंबुलेंस

ड्यूटी पर मौजूद नर्सिंग अधिकारी ने आउटसोर्सिंग स्टाफ को बुलाकर शव को मोर्चरी भेजा और वार्ड की सफाई कराई। इस बीच, वार्ड में बदबू ऐसी फैली कि जिन मरीजों को यहां उम्मीद की सांस लेनी थी, वे घुटन से बचने के लिए बाहर निकल गए। मामला अधिकारियों तक पहुंचा तो वही पुरानी स्क्रिप्ट – जिलाधिकारी की “कड़ी नाराजगी”, प्राचार्य की “जांच के बाद कार्रवाई” और स्वास्थ्यकर्मियों के “सुविधा न मिलने” के बहाने। युवक को रेफर करना था लेकिन एंबुलेंस नहीं मिली – यह तर्क बता देता है कि हम किस हालात में अपने नागरिकों का इलाज कर रहे हैं।

जीवन की कीमत कागज़ पर दर्ज

यह सिर्फ एक मरीज की कहानी नहीं है, यह उस व्यवस्था का आईना है जहां जीवन की कीमत कागज़ पर दर्ज नोटिंग से भी कम है। जहां मौत के बाद भी सम्मान नहीं मिलता, और लापरवाही इतनी आम हो जाती है कि किसी के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती। सरकारी अस्पतालों में संवेदना, जिम्मेदारी और समय पर कार्रवाई का जो दिवालियापन दिखा, वह सवाल छोड़ जाता है – क्या हम सच में इंसानों का इलाज कर रहे हैं, या बस आंकड़ों में मौतें दर्ज कर रहे हैं।

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