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UP High Court: बहराइच में मसूद गाजी की दरगाह पर मेला आयोजन पर रोक जारी, प्रबंध समिति को हाईकोर्ट से भी नहीं मिली राहत

UP High Court: बहराइच में मसूद गाजी की दरगाह पर मेला आयोजन पर हाईकोर्ट से भी नहीं मिली राहत, 19 मई को अगली सुनवाई। जानिए कोर्ट में क्या हुआ और किस फैसले का है इंतजार।

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Shashank Kumar
UP High Court

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UP High Court: बहराइच जिले में सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल लगने वाला ज्येष्ठ मेला इस बार कानूनी उलझनों में फंसा हुआ है। जिला प्रशासन द्वारा मेले की अनुमति नहीं दिए जाने के फैसले को हाईकोर्ट (UP High Court) में चुनौती दी गई, लेकिन शुक्रवार को हुई सुनवाई में याचियों को तत्काल कोई राहत नहीं मिली। अब इस मामले की अगली सुनवाई 19 मई को होगी, जब तय होगा कि इस बार मेला लग सकेगा या नहीं।

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दरगाह प्रबंध समिति ने की जल्द सुनवाई की मांग

इलाहाबाद हाईकोर्ट (UP High Court) की लखनऊ पीठ में शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की खंडपीठ ने याचियों की अर्जी को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने की अनुमति दी। दरगाह शरीफ प्रबंध समिति की ओर से चेयरमैन समेत छह लोगों ने मेला आयोजित करने की अनुमति को लेकर याचिका दायर की थी। याचियों की तरफ से अधिवक्ता डॉ. एलपी मिश्रा ने दलील दी कि 18 मई से मेला शुरू होना है, इसलिए तत्काल सुनवाई जरूरी है।

डीएम ने 26 अप्रैल को जारी किया था मना करने वाला आदेश

दरगाह प्रबंध समिति की याचिका में बहराइच के जिलाधिकारी द्वारा 26 अप्रैल को जारी उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें दरगाह पर मेला लगाने की अनुमति से इनकार किया गया था। याचियों का तर्क है कि यह आदेश धार्मिक परंपराओं और कानून की भावना के विपरीत है। उन्होंने अदालत से अपील की कि उन्हें इस ऐतिहासिक मेले के आयोजन की अनुमति दी जाए, जो वर्षों से लगातार होता आया है।

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राज्य सरकार ने पेश किया जवाब

इस मामले में राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेन्द्र कुमार सिंह ने प्रशासनिक आदेश का बचाव किया। इससे पहले 8 मई को भी अदालत ने कहा था कि जब तक सभी पक्षों का जवाब नहीं आ जाता, अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती। अब सरकार और याचियों दोनों ने अपने जवाब कोर्ट में दाखिल कर दिए हैं, जिन पर अगली सुनवाई में विचार किया जाएगा।

सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर लगने वाला यह मेला केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है। हर साल इस मेले में हजारों श्रद्धालु जुटते हैं। ऐसे में इस पर रोक से न सिर्फ स्थानीय लोगों की भावनाएं प्रभावित हो रही हैं, बल्कि यह एक संवेदनशील प्रशासनिक और सामाजिक मुद्दा भी बन गया है।

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