(रिपोर्ट- रवि प्रताप सिंह)
UP Land Scam: फतेहपुर शहर के खंभापुर क्षेत्र में सरकारी जमीन की अवैध बिक्री और कब्जे का एक बड़ा मामला सामने आया है। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, पूर्व सभासद ने एक सरकारी बाबू के साथ मिलकर पशुचारण (पशुचर) की सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा किया और उसे प्लॉट्स में बेचकर लाखों रुपये की उगाही की। इस घोटाले में स्थानीय राजस्व अधिकारियों की चुप्पी और निष्क्रियता ने भी सवाल खड़े किए हैं, जिससे इस मामले में उनकी संलिप्तता की आशंका जताई जा रही है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, खंभापुर में पशुचारण के लिए आरक्षित सरकारी जमीन को पूर्व सभासद ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर प्लॉट्स में तब्दील कर दिया। इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड एक सरकारी बाबू बताया जा रहा है, जिसने डील को अंतिम रूप दिया। स्थानीय लोगों ने बताया कि पूर्व सभासद और बाबू के बीच प्रति प्लॉट 2 लाख रुपये की डील तय हुई थी, लेकिन इन प्लॉट्स की बिक्री 6 से 8 लाख रुपये तक की गई। इस तरह, दोनों ने मिलकर खुद तो भारी मुनाफा कमाया, लेकिन सरकारी राजस्व को बड़ी छती पहुंचाने का काम किया है।
पूर्व सभासद की पृष्ठभूमि
सूत्रों के मुताबिक, पूर्व सभासद अपने सजातीय वर्ग में प्रभावशाली नेता के रूप में जाना जाता है और एक विशेष सामाजिक संगठन में सक्रिय भूमिका निभाता है। उसने अपने रसूख का फायदा उठाकर इस अवैध कारोबार को अंजाम दिया। स्थानीय निवासियों का कहना है कि सभासद ने अपने प्रभाव के बल पर कई लोगों को भरोसा दिलाया कि जमीन की बिक्री वैध है। जब उन लोगों ने भरोसा कर लिया तो ये मामला सामने आया ।
मामले में सरकारी बाबू की अहम है भूमिका ?
सूत्रों ने बताया कि सरकारी बाबू ने इस घोटाले में केंद्रीय भूमिका निभाई। उसने न केवल डील को सुगम बनाया, बल्कि राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी कर जमीन को बेचने में मदद भी की। यह भी खुलासा हुआ कि बाबू ने मोटी रकम लेकर कई अन्य अवैध निर्माणों को भी हरी झंडी दी है। अब ऐसे में सरकारी कर्मचारी का संरक्षण भी शासन की मंशा पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
लेखपाल और अधिकारियों की निष्क्रियता
मामला उजागर होने के बाद सामने आया है कि खंभापुर में 10 से ज्यादा मकानों का निर्माण हो चुका है, लेकिन क्षेत्र के लेखपाल ने इसकी कोई रिपोर्ट अपने वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं दी। स्थानीय मीडिया में इस मामले की खबरें बार-बार प्रकाशित होने के बावजूद, राजस्व विभाग के अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। सूत्रों का कहना है कि कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के बिना इतना बड़ा घोटाला संभव नहीं था। ऐसे में दोषियों पर किसी तरह की कार्रवाई न होना वरिष्ठ अधिकारियों की मंशा पर भी सवाल उठाता है ।
यूपी सरकार की नीति पर सवाल
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के तहत आला अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं। इसके बावजूद, फतेहपुर में राजस्व अधिकारी सरकारी जमीन पर कब्जे और अवैध निर्माण को रोकने में नाकाम रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि कुछ अधिकारी इस घोटाले में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल हो सकते हैं, जिसकी वजह से कार्रवाई में देरी हो रही है। अब मामले में जितना देरी हो रही है उतना ही संशय आम जनमानस में बढ़ता जा रहा है ।
स्थानीय लोगों का आक्रोश
खंभापुर के निवासियों में इस घोटाले को लेकर भारी नाराजगी जताई है। मामले में एक स्थानीय निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यहां सरकारी जमीन को बेचकर मकान बनाए जा रहे हैं, लेकिन प्रशासन चुप है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो और जमीनें कब्जे में चली जाएंगी। मामला उजागर होने के बाद सभी अधिकारियों और घोटालेबाजी में शामिल लोगों में अंदर ही अंदर भय का माहौल है। सभी अपनी अपनी संलिप्तता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं ।
सवालों के घेरे में प्रशासन की चुप्पी
जिला प्रशासन और राजस्व विभाग ने इस मामले में अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। सूत्रों का कहना है कि उच्च अधिकारियों तक यह मामला पहुंच चुका है, लेकिन कार्रवाई में देरी से संदेह पैदा हो रहा है। ऐसे में प्रशासन और राजस्व विभाग की लचर कार्रवाई से स्थानीय जनता और कई सामाजिक कार्यकर्ता इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि इस घोटाले की एक एक परते खोलने और मामले के खुलासे के विशेष जांच समिति (SIT) गठित करने की जरूरत है ताकि दोषियों को सजा मिले और सरकारी जमीन को कब्जे से मुक्त कराया जा सके।
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