Political Kisse : उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है। अब दूसरे चरण के मतदान की तैयारियां शुरू हो गईं हैं। यूपी का चुनाव देश की दिशा और दशा तय करता है, क्योंकि देश की सत्ता यूपी से होकर जाती है। इसलिए राजनैतिक दल चुनाव को लेकर कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहते है। चुनाव से पहले नेताओं ने खुले मंच पर जुबानी जंग को अंजाम दिया, तो अब मतदान के दौरान सोशल मीडिया पर जुबानी जंग देने से पीछे नहीं है। ऐसे में राजनीति के पुरानी किस्से सामने आ जाते है। ऐसा ही एक किस्सा आज हम आपको बताने जा रहे है।
ऐसा मुख्यमंत्री जो खुद को बताता था चोर
यूपी की राज गद्दी पर एक ऐसे मुख्यमंत्री भी रहे जो अपने आप को चोर कहते थे। जी हां सुनकर आपको भी हैरानी हो रही होगी, लेकिन यह सच है। वह मुख्यमंत्री चंद्रभानु गप्ता थे, जो यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। जब वह मुख्यमंत्री रहे तब उनपर विरोधियों द्वारा करप्शन का आरोप लगा। लेकिन वह अपने सभी आरोपों को हवा में उड़ा दिया करते थे. और मजाक-मजाक में कहते थे कि “गली गली में शोर है चंद्रभानु गुप्ता चोर है” जबकि जब उनकी मौत हुई तो उनके खाते मेंं मात्र 2 हजार रूपये ही मिले थे।
आजीवन ब्रह्मचर्य रहे चंद्रभानु गुप्ता
चंद्रभानु गुप्ता का जन्म 14 जुलाई 1902 को अलीगढ़ के बिजौली में हुआ था। उनके पिता का नाम हीरालाल था जो एक समाजसेवी थे। चंद्रभानु गुप्ता भी समाजसेवा का काम करते थे। वह आजीवन ब्रह्मचर्य रहे. चंद्रभानु गुप्ता ने अपनी शिक्षा की शुरुआत लखीमपुर खीरी से की थी। इसके बाद वह लखनऊ में वकालत करने लगे थे।
1960 में बने मुख्यमंत्री
चंद्रभानु गुप्ता पहली बार 1960 में पहली बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वह वर्ष 1960 से 1963 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद साल 1967 में चुनाव जीतने के बाद दूसरी बार मुख्यमंत्री चुने गए, लेकिन इस बार उनका कार्यकाल 19 दिनों तक ही चला। इसके बाद साल 1969 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। 11 मार्च 1980 को चंद्रभानु गुप्ता को अलविदा कह दिया।
ऐसा मुख्यमंत्री जो जेब से भरता था चाय-नाश्ते का पैसा
यूपी की सियासत में एक ऐसा भी मुख्यमंत्री रहा, जो खुद अपनी जेब से चाय नाश्ते के पैसे भरता था। वह पंडित गोविंद बल्लभ पंत थे। उनपर भी मुख्यमंत्रियों रहते पैसे गबन करने के आरोप लगा था। बताया जाता है कि एक बार जब पंत सरकारी बैठक कर रहे थे, उस दौरान बैठक में चाय-नाश्ते का बिल आता तो उन्होंने उसे पास करने से साफ मना कर दिया और कहा की सरकारी बैठकों में सिर्फ चाय मंगवाने का नियम है, इसलिए सभी को नाश्ते का बिल खुद देना होगा।
1921 में आए थे राजनीति में
गोविन्द बल्लभ पंत ने अपनी राजनीति की शुरूआत 1921 से की थी। 1932 में पंत पंडित नेहरू के साथ आंदोलन के दौरान जेलों में बंद रहे, तब उनकी नेहरू से अच्छी दोस्ती हो गई थी। इसके बाद पंत से प्रभावित होकर नेहरू ने पंत जी को मुख्यमंत्री बनाया। पंत 1946 से दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।