Uniform Civil Code: लोकसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं। राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ सभी क्षेत्रीय पार्टियां इस लड़ाई की तैयारी में हैं।
कल्याणकारी योजनाओं से मतदाताओं को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे वक्त में जब सियासी पारा चढ़ रहा है, भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी सनसनीखेज है।
उनके द्वारा ”समान नागरिक संहिता” के जिक्र ने राजनीति में एक और मोड़ ला दिया है।
ये कोई नई बात नहीं है लेकिन इतने दिनों से सिर्फ केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री ही कई मौकों पर यूसीसी की बात कर रहे हैं।
बीजेपी ने यूसीसी पर किया है फोकस
कई बीजेपी शासित राज्यों में इसके क्रियान्वयन के लिए विशेष समितियां भी बनाई गई हैं।
हालांकि अब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का जिक्र किया है तो इस पर बड़े पैमाने पर बहस चल रही है। इस कोड का उद्देश्य सभी के लिए एक कानून बनाना है।
पीएम मोदी सीधे पूछ रहे हैं एक ही देश में अलग-अलग कानून क्यों? इस बार बीजेपी ने अपना सियासी हथियार निकाल लिया है।
अपने पहले एजेंडे में धारा 370 को हटाने और राम जन्मभूमि को पूरा करने वाली बीजेपी ने अब यूसीसी पर फोकस किया है।
यह एक चुनावी हथियार बनता जा रहा है, जो यह संकेत दे रहा है कि इसे हर हाल में लागू किया जाएगा।
जारी है गरमागरम बहस
भले ही ये बहस कई दिनों से चल रही हो लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के ऐलान के बाद ये और तेज हो गई है।
खासकर मुस्लिम समुदाय इसका कड़ा विरोध कर रहा है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी की टिप्पणियाँ तो यही बताती हैं।
कांग्रेस भी इसका पुरजोर विरोध कर रही है। इसमें कहा गया, ”यह सिर्फ एक चुनावी स्टंट है।”
पीएम मोदी ने परोक्ष रूप से कहा, “कुछ लोग इस पर आपत्ति जता रहे हैं। कुछ लोगों को गुमराह कियाजा रहा है। यूसीसी (Uniform Civil Code) से उनका क्या नुकसान है? इतना विरोध क्यों कर रहे हैं?”
बीजेपी का हथियार
बीजेपी के एजेंडे में यूसीसी का जिक्र हमेशा से रहा है। पार्टी ने 2014 में सत्ता में आने पर यूसीसी को लागू करने का वादा किया है।
इसमें कहा गया है कि राम मंदिर और अनुच्छेद 370 के मुद्दों को सुलझा लिया गया है, बिना यह बताए कि यूसीसी अब उसका लक्ष्य है।
भारत में समान नागरिक संहिता विधेयक 2020 को निजी सदस्य के बिल के हिस्से के रूप में राज्यसभा में पारित किया गया है।
हालांकि कांग्रेस और टीएमसी समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया। वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
पक्ष में 63 और विपक्ष में 23 वोट पड़े और यह प्रस्ताव पारित हो गया। इसके बाद से ही प्रशासन इसे बीजेपी शासित राज्यों में लागू करने की कोशिश कर रहा है।
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