Ratan Tata Stories: प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा का निधन 86 वर्ष की आयु में हुआ। वह कुछ दिनों से बीमार थे और मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका इस तरह से दुनिया को अलविदा कहना सभी को दुखी कर रहा है।
रतन टाटा को एक सफल उद्योगपति के रूप में याद किया जाएगा, लेकिन उनके जीवन में सेवा भाव ने उन्हें अमर बना दिया है। आज जब उनकी यादें ताजा की जा रही हैं, तो उनकी बड़ी डीलों और संपत्ति से अधिक चर्चा उनके सरल, सच्चे और सहज व्यवहार की हो रही है।
जब टाटा के पेट डॉग्स हुए बीमार…
रतन टाटा ने ऐसा काम किया कि पूरी दुनिया उनके प्रशंसक बन गई। उन्हें अपने जीवन में कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिसमें एक पुरस्कार ब्रिटिश राजघराने से भी मिलने वाला था। 2018 में यह तय हुआ था कि रतन टाटा को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा, जिसे प्रिंस चार्ल्स उन्हें देने वाले थे। इसके लिए बकिंघम पैलेस में एक समारोह आयोजित किया जाना था।
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बिजनेसमैन सुहैल सेठ ने एक इंटरव्यू में इस घटना को याद करते हुए बताया कि जब वह लंदन पहुंचे, तो उन्हें रतन टाटा की 11 मिस्ड कॉल मिलीं। जब उन्होंने तुरंत फोन किया, तो टाटा ने बताया कि वह अवॉर्ड समारोह में नहीं आ रहे हैं। सुहैल हैरान थे, लेकिन जानते थे कि रतन टाटा बिना कारण ऐसा निर्णय नहीं लेते।
जब उन्होंने कारण जानने की कोशिश की, तो बताया गया कि टाटा के पालतू कुत्तों की तबीयत ठीक नहीं थी और वह उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकते थे। जब यह बात प्रिंस चार्ल्स को पता चली, तो उन्होंने रतन टाटा की बहुत प्रशंसा की और उन्हें एक महान इंसान बताया।
जब गैंगस्टर से भिड़ गए रतन टाटा…
1980 में एक गैंगस्टर ने टाटा के कर्मचारियों को काफी परेशान किया। उसने कई कर्मचारियों के साथ मारपीट की और रंगदारी मांगी। उसका मकसद था कि किसी तरह वह टाटा यूनियन पर नियंत्रण हासिल कर ले और टाटा ग्रुप को नुकसान पहुंचाए।
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रतन टाटा (Ratan Tata Stories) अपने कर्मचारियों के प्रति बहुत स्नेही थे। उनके लिए, असली परिवार वही कर्मचारी थे, जिनकी मेहनत से उनकी कंपनी इतनी बड़ी बनी। जब कर्मचारियों में डर फैलने लगा और वे काम पर आने से हिचकिचाने लगे, तो रतन टाटा स्वयं एक टाटा प्लांट पर पहुंचे और कई दिनों तक वहां रहे।
उन्होंने नायक की तरह उस गैंगस्टर की चुनौती का सामना किया, अपने कर्मचारियों को डरने नहीं दिया और उनका हौसला बढ़ाया। इसका परिणाम यह हुआ कि न केवल कर्मचारी भयमुक्त हुए, बल्कि गैंगस्टर की भी गिरफ्तारी हो गई।
जब खुद खुद प्लेन उड़ाने को हुए तैयार…
कम ही लोग जानते हैं कि रतन टाटा एक प्रशिक्षित पायलट थे और उनके पास विमान उड़ाने का लाइसेंस भी था। 2004 में, जब उनके एक कर्मचारी की तबीयत बिगड़ गई और उसे तत्काल इलाज की आवश्यकता थी, तो टाटा खुद प्लेन उड़ाने को तैयार हो गए।
यह घटना तब हुई जब पुणे में टाटा मोटर्स के MD प्रकाश एम तेलंग की तबीयत खराब हुई और उन्हें तुरंत मुंबई रेफर किया गया। सड़क मार्ग से पुणे से मुंबई पहुंचने में काफी समय लग सकता था, इसलिए एयर एंबुलेंस का इंतजाम करने की कोशिश की गई। लेकिन उस दिन रविवार होने के कारण, एयर एंबुलेंस का इंतजाम नहीं हो पाया।
इस स्थिति में, रतन टाटा ने तुरंत कहा कि वह खुद प्लेन उड़ाएंगे। सभी लोग हैरान थे, लेकिन टाटा पूरी तरह से तैयार थे क्योंकि उनके लिए अपने कर्मचारी की जान बचाना सबसे महत्वपूर्ण था। जैसे ही वह प्लेन उड़ाने की तैयारी कर रहे थे, उन्हें सूचना मिली कि एयर एंबुलेंस का इंतजाम हो गया है। इस तरह, उन्होंने प्लेन नहीं उड़ाया, लेकिन अंततः उस कर्मचारी की जान बचा ली।
जब अपना रिज्यूमे जेआरडी टाटा को भेजा…
रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के साथ कई दशकों तक काम किया, लेकिन उनकी पहली नौकरी टाटा ग्रुप में नहीं थी। वे अमेरिका में बसने का मन बना चुके थे, लेकिन 1962 में उनकी दादी की तबीयत खराब होने पर किस्मत ने उन्हें भारत बुला लिया। उस समय, उन्होंने बड़ी कंपनी आईबीएम में नौकरी शुरू की थी।
जेआरडी टाटा चाहते थे कि रतन टाटा टाटा ग्रुप में शामिल हों। इस दौरान, रतन टाटा से उनका रिज्यूमे मांगा गया। दिलचस्प यह है कि उन्होंने आईबीएम के दफ्तर में बैठे-बैठे, एक पुराने टाइपराइटर का उपयोग करके टाटा ग्रुप के लिए अपना रिज्यूमे तैयार किया। इसके बाद, उन्होंने वह रिज्यूमे जेआरडी टाटा को भेजा, और इसी के साथ उनका टाटा ग्रुप के साथ सफर शुरू हुआ।
फोर्ड कंपनी का गुरुर ऐसे तोड़ा…
रतन टाटा अपने इरादों के प्रति बहुत दृढ़ थे। एक बार निर्णय लेने के बाद, वे पीछे नहीं हटते थे। लेकिन 1998 में जब टाटा मोटर्स ने इंडिका गाड़ी लॉन्च की, तो उन्हें अपने जीवन का एक बड़ा झटका लगा। उन्होंने सपने देखे थे कि यह कार पैसेंजर सेगमेंट में नंबर 1 बनेगी, लेकिन लोगों का फीडबैक इसके विपरीत आया। गाड़ी की बिक्री बहुत कम हुई, जिससे कंपनी को नुकसान हुआ और करोड़ों का घाटा हुआ।
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इस स्थिति में, टाटा के बोर्ड के सदस्यों ने उन्हें सलाह दी कि कंपनी बेच देनी चाहिए। हालांकि, रतन टाटा ऐसा नहीं चाहते थे, लेकिन लगातार नुकसान के चलते कर्मचारियों पर भी प्रभाव पड़ सकता था। अंततः, उन्होंने टाटा मोटर्स को बेचने का निर्णय लिया और अमेरिकी कंपनी फोर्ड के पास प्रस्ताव लेकर गए।
वहां फोर्ड के मालिक बिल फोर्ड के साथ उनकी मीटिंग हुई, जिसमें रतन टाटा को अपमान का सामना करना पड़ा। बिल फोर्ड ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिस व्यापार की जानकारी आपको नहीं है, आपने इतना पैसा कैसे लगाया। इस मीटिंग के बाद फोर्ड के साथ डील रद्द कर दी गई।
हालांकि, रतन टाटा ने कठिन मेहनत की और टाटा मोटर्स को फिर से खड़ा किया। किस्मत ने फिर पलटी मारी, और 2008 में उन्होंने जेएलआर कंपनी को खरीद लिया, जो फोर्ड का हिस्सा थी और लैंड रोवर जैसी गाड़ियां बनाती थी।
जब दूसरी कंपनियों को दे डाली नसीहत…
रतन टाटा केवल अपनी कंपनी की चिंता नहीं करते थे, बल्कि वे पूरे उद्योग जगत में सक्रिय रहते थे और जानते थे कि कहां क्या हो रहा है। कोरोना काल में जब सैकड़ों लोगों की नौकरियां गईं और कंपनियां छंटनी कर रही थीं, तब रतन टाटा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए अपनी बात रखी, जो सुर्खियों में रही।
उन्होंने उन कंपनियों को चेतावनी दी जो लगातार अपने कर्मचारियों को बाहर निकाल रही थीं। रतन टाटा ने कहा कि इस तरह का कदम कंपनियों का एक तात्कालिक प्रतिक्रिया है। व्यापार में नुकसान होने का मतलब यह नहीं है कि लोगों को निकाला जाए। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या ऐसा करने से व्यवसाय फिर से ठीक हो जाएगा।
टाटा ने यह भी कहा कि भविष्य में अगर ऐसी कोई आपदा आए, तो कंपनियों को खुद को बेहतर तरीके से तैयार करने की आवश्यकता है और कर्मचारियों को निकालने की जरूरत नहीं है।
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