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नई दिल्ली। रविवार को उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने (Glacier Breakdown) से इलाके में भारी तबाही हुई है। ग्लेशियर की वजह से धौली गंगा नदी (Dhauli Ganga River) में बाढ़ आ गई। इससे हिमालय के कई इलाकों में बड़े पैमाने पर तबाही हुई है। वहीं 170 से ज्यादा लोग गायब बताए जा रहे हैं। वहीं ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के प्रभारी ने आशंका जताया है कि प्रोजेक्ट पर काम कर रहे 120 से ज्यादा मजदूरों की मौत हो गई है। ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर ग्लेशियर क्यों टूटा और यह ग्लेशियर होता क्या है?
वैज्ञानिकों ने 2019 में ही बता दिया था
दरअसल, ग्लेशियर टूटने से कई महिनों पहले ही कुछ भू-वैज्ञानिकों ने इसे भांप लिया था। उन्होंने अपने रिसर्च के माध्यम से ग्लेशियर टूटने की आशंका को लेकर चेताया भी था। उत्तराखंड के वाडिया जियोलॉजिकल इंस्टिट्यूट (Wadia Institute of Himalayan Geology) के वैज्ञानिकों ने साल 2019 में जून-जुलाई के महीने में एक रिसर्च किया था। इस रिसर्च में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदियों के प्रवाह को रोकने और उससे बनने वली झील के खतरे को लेकर लगभग 6 महीने पहले ही आगाह कर दिया था। अक्टूबर 2020 में इस संबंध में हिंदुस्तान टाइम्स में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई थी।
ये है पहला कारण
इस प्रकाशन से पहले सितंबर 2019 में इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल के 180 वें अंक में 17 पेज की एक डिटेल्ड रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई थी। वैज्ञानिकों ने इसमें 146 लेक आउटबस्ट के खतरे के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि हिमालय क्षेत्र के लगभग सभी ग्लेशियर (Glacier) पिघल रहे हैं, इसे अगर अभी नहीं रोका गया तो भारी तबाही मचा सकते हैं। खासकर काराकोरम क्षेत्र के ग्लेशियरों में बर्फ की मात्रा काफी बढ़ गई है। जिससे नदियों का बहाव रूक सा गया है और वो एक झील में तब्दील होते जा रही है।
रिपोर्ट में 1920 की घटना का भी जिक्र किया गया था। जिसमें ग्लेशियर ने नदी का रास्ता कई बार रोका था, इससे नदियां झील बन गई थी और फिर उसके अचानक टूटने या फटने से पीओके समेत भारत के कश्मीर वाले इलाके में कई बार भारी जान-माल का नुकसान हुआ था।
दूसरा कारण
वहीं एक दूसरी रिसर्च स्टडी के अनुसार क्लाइमेट चेंज के कारण पिछले कुछ दशकों में हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुनी हो गई है। यानी तापमान बढ़ने से बर्फ तेजी से लगातार पिघलती जा रही है। अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जोशुआ मौरर के मुताबिक, क्लाइमेट चेंज के कारण पिछले 40 वर्षों में हिमालय के ग्लेशियर अपना एक चौथाई तक हिस्सा खो चुके हैं। वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाने के लिए भारत, नेपाल, भूटान और चीन के करीब 40 साल पुराना सैटेलाइट डेटा का रिसर्च किया था।
उन्होंने अपने रिसर्च में पाया कि ग्लेशियर के पिघलने की सबसे बड़ी वजह ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) है। क्योंकि एशियाई देशों में जीवाश्म ईंधन और बायोमास का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है। इससे नकलने वाली कालिख ग्लेशयर की सतह तक पहुंच रही है और वो इस कारण से तेजी से पिघल रहे हैं। वहीं पिछले 16 सालों में इन इलाकों में तापमान भी एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। वैज्ञानिकों ने 650 से ज्यादा ग्लेशियरों के सेटेसाइट फुटेज को 3D मॉडल में बदला, तो पाया कि ग्लेशियर की ऊंचाई काफी कम हो गई है।
ग्लेशियर बनते कैसे हैं?
दरअसल, आप जैसे-जैसे उचाईयों पर बढ़ते हैं टेंपरेचर में कमी आती है। हर 165 मीटर की उंचाई पर 1 डिग्री टेंपरेचर गिर जाता है और जब टेंपरेचर कम होता है तो हवा में भी नमी आती है। वहीं जब ये नम हवा हिमालय से टकराती है तो बर्फ का स्रोत बन जाती है। जिसे ग्लेशियर कहा जाता है। ये ग्लेशियर जब पिघलते हैं तो यहीं से नदियों का निर्माण होता है। ग्लेशियर को हम हिंदी में हिमनद भी कहते हैं। जिसका मतलब है बर्फ की नदी, जब ये धिरे-धिरे पिघलते हैं तब तक ये ठीक रहते हैं।
लेकिन जब ये अचानक से टूट जाते हैं तो स्थिति काफी विकराल हो जाती है। इससे नदियों का जलस्तर आचानक से काफी ज्यादा बढ़ जाता है। पहाड़ी इलाका होने की वजह से इसका बहाव भी काफी तेज होता है। यही कारण है कि इसके रास्ते में जो भी चीजें आती हैं उसे बस यह तबाह करते हुआ आगे बढ़ जाती है।