हाइलाइट्स
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मातृभाषा मंच का दो दिनी सम्मेलन शक्ति नगर में शुरू
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सम्मेलन में 13 भारतीय भाषाई समाज के बच्चों ने दीं प्रस्तुतियां
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अथितियों ने मातृभाषा के उपयोग पर दिया जोर
Matra Bhasha Manch Sammelan: राजधानी के विभिन्न भाषाई समाज की भागीदारी से मातृभाषा मंच का दो दिवसीय सम्मेलन (Matra Bhasha Manch Sammelan) का
शुभारंभ शनिवार, 10 मई को सुभाष मैदान शक्ति नगर में हुआ। इसमें 13 समाज के बालक -बालिकाओं ने रंगारंग प्रस्तुतियां दीं।
सम्मेलन में छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा प्रचलित ‘होन’ मुद्रा और विभिन्न भाषाई समाज के व्यंजन आकर्षण का केंद्र रहे।
देशज व्यंजनों के स्टॉल लगे, बाल कलाकारों ने लोक नृत्य पेश किए
कार्यक्रम (Matra Bhasha Manch Sammelan) में 13 भाषाई समाज के लोगों द्वारा विभिन्न देशज व्यंजनों के स्टॉल लगाए।
कार्यक्रम में आए लोगों ने व्यंजनों का स्वाद लेने के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद भी लिया।
बाल कलाकारों ने लोक नृत्यों की रंगारंग प्रस्तुतियां दी, जिनमें गुजराती, बंगाली, छत्तीसगढ़ी, ओडिसी, महाराष्ट्रीयन, मलयाली और तमिल आदि भाषाई समाजों के नृत्य शामिल रहे।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मुद्रा ‘होन’ से खरीदारी
हिन्दवी स्वराज्य के 350वें वर्ष में छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की अवधारणा, स्वदेशी नीति आदि से समाज को परिचित
कराने के उद्देश्य से उनके काल में प्रचलित ‘होन’ मुद्रा का उपयोग कार्यक्रम (Matra Bhasha Manch Sammelan) में किया गया।
कार्यक्रम प्रांगण में वस्तुओं का क्रय करने के लिए होन मुद्रा का आदान-प्रदान किया गया। प्रांगण में एक स्टॉल लगाया गया है, जिसमें भारतीय मुद्राएं देकर होन मुद्राएं ले सकते हैं।
मुगलकाल में शिवाजी ही ऐसे शासक जिन्होंने स्वयं की मुद्राएं चलाई
मुगलकाल में जब पूरे देश में हिन्दू साम्राज्य सिमट रहा था। ऐसे में छत्रपति महाराज शिवाजी ने सन 1674 ई. में अपने राज्य रोहण पर रायगढ़ किले की टकसाल से भारतीय मुद्राओं को जारी किया था।
उन्होंने सोने और तांबा धातुओं के अपने स्वतंत्र सिक्के जारी किए थे। स्वर्णमुद्रा को ‘होन’ कहा जाता था और ताम्र मुद्रा को ‘शिवराई’।
इस मुद्रा के अगले भाग में ‘छत्रपति’ अभिलेख अंकित है और पीछे ‘श्रीराजा शिव’ अभिलेख अंकित होता था।
इन सिक्कों की एक विशेषता यह भी थी कि इन पर नागरी लिपि में मुद्रा अभिलेख अंकित किए गए हैं। शिवाजी महाराज की स्वराज्य अवधारणा का उनके द्वारा प्रचलित मुद्राएं जीवंत प्रमाण हैं। महाराज का व्यक्तित्व आज भी हमें प्रेरणा दे रहा है।
सरकारों ने मातृभाषा पर नहीं दिया ध्यान
सम्मेलन (Matra Bhasha Manch Sammelan) में मुख्य अतिथि डॉ. पीएस बिंद्रा ने कहा, जब देश स्वतंत्र हुआ तब तत्कालीन नेतृत्व ने अंग्रेजी भाषा को अधिक महत्व दिया।
यदि उस समय ही मातृभाषा के महत्व को स्थापित किया जाता तो बहुत अच्छा रहता।
उन्होंने कहा, सरकारों की अनदेखी का ही परिणाम है कि आज न्यायालय में भी अंग्रेजी का ज्यादा प्रयोग किया जा रहा है।
दलीलें भी अंग्रेजी में ही पेश की जा रही हैं, जिससे याचिकाकर्ता को कुछ समझ ही नहीं आता और वकील और न्यायाधीश के बीच में ही फैसला हो जाता है।
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भारत ‘स्व’ की ओर लौट रहा, राम मंदिर जीवंत उदाहरण
डॉ. पीएस बिंद्रा कहा कि अब भारत ‘स्व’ की ओर लौट रहा है। राम मंदिर इसका जीवंत उदाहरण है।
समाज में एक उत्साह का वातावरण निर्मित हुआ है। ऐसे में हमें अपनी मातृभाषाओं को आगे बढ़ाने के उपाय करने चाहिए।
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भारतीय संस्कृति पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन
सम्मेलन (Matra Bhasha Manch Sammelan) में भारतीय संस्कृति पर आधारित प्रदर्शनी में लगे चित्र दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं।
प्रदर्शनी में ऋषि-मुनियों और हमारे तत्वों के चित्र लगाए गए है।
जिसका उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (मध्यभारत प्रांत) के प्रांत संघचालक अशोक पाण्डेय, डॉ. पीएस बिंद्रा और मातृभाषा संगठन के अध्यक्ष संतोष सिंह रावत
ने छत्रपति शिवाजी महाराज के चित्र पर फूल चढ़ाकर किया।