Tulse Vivah 2023: आज 23 नवंबर को पूरे देश में देव उठनी एकादशी यानि तुलसी विवाह धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दिन मां तुलसी और शालिग्राम का विवाह होता है। पर क्या आप जानते हैं कि तुलसी विवाह का मंडल गन्ने और केले के पत्ते से ही क्यों सजाया जाता है। यदि नहीं तो चलिए जानते हैं पंडित राम गोविंद शास्त्री से इसका धार्मिक कारण।
क्यों सजता है गन्ने का मंडप
ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री के अनुसार ज्योतिष में पूरे नौ ग्रहों का संबंध 12 राशियों से होता हैं। जिसके लिए कुछ कारक होते हैं। ऐसे ही गन्ने का संंबंध शुक्र ग्रह से माना जाता है और शुक्र ग्रह विवाह के लिए खास होता है। शुक्र को सुख—समृद्धि का कारक माना जाता है। इसलिए तुलसी विवाह में गन्ने से मंडप बनाना जरूरी होता है।
गुरू ग्रह से है केले का संबंध
नवग्रह में गुरू ग्रह को भी विवाह के लिए खास माना जाता है। शुक्र, गुरू उचित होने पर ही विवाह कार्य शुरू होते हैं। केले में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। तो वहीं गुरू का संबंधी केले से होने के कारण देवउठनी एकादशी में केले के पत्तों से मंडल सजाकर पूजा करना जरूरी होता है।
बढ़ गई गन्नों की कीमत
एकादशी पर गन्ने का पूजन जरूरी होने के कारण मार्केट में गन्ने की कीमत आसमान छू रही है। राजधानी भोपाल में एक गन्ना 50 से 80 रुपए का बिक रहा है। शाम होते—होते इसकी कीमत और अधिक बढ़ती जा रही है।
शाम को केवल इतने बजे तक है देवउठनी एकादशी का मुहूर्त
एकादशी तिथि 22 नवंबर 2023: रात 11:03 मिनट से शुरू।
एकादशी तिथि 23 नवंबर 2023: रात 09:01 मिनट पर समाप्त होगी।
तुलसी स्तुति का मंत्र :
(देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः, नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये)
अथ तुलसी मंगलाष्क मंत्र
ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः।
चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः।
प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः,
स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ,
गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः ।
गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी,
गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्।
गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः ।
मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती ।
स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥