Tulsi Vivah 2023: आज देवउठनी एकादशी के साथ ही शुभ कार्य शुरू हो जाएंगे। इसी के साथ शुभ कार्यों पर से लगी रोक हट जाएगी। देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है। यानि आज से शादियां शुरू हो जाएंगीं। जानते हैं पंडित रामगोविंद शास्त्री से कि तुलसी विवाह पर आप कौन से उपाय कर सकते हैं ।
तुलसी की 108 परिक्रमा
सोमवती अमावस्या पर माता तुलसी 108 बार परिक्रमा की जाए तो ऐसा करने से घर की दरिद्रता दूर होती है। यदि आप भी अपने जीवन के कष्टों को दूर करना चाहते हैं तो ये उपाय जरूर करना चाहिए।
तुलसी पर कच्चे दूध से सिंचाई
दूसरे उपाय में इस दिन तुलसी जी को कच्चे दूध के साथ सींचना चाहिए। इसके बाद इसी मिट्टी को माथे पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से आपके घर में सुख—समृद्धि आती है। शाम को तुलसी जी के पौधे के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए।
सोलह श्रृंगार का सामान चढ़ाएं
सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya 2023) पर तुलसी के पौधे की अवश्य पूजा करें। इस दिन जल अर्पित तकरने के साथ घी का दीपक जलाएं। इसके के साथ ही सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार का समान चढ़ाएं। ऐसा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी व्यक्ति को हर तरह की मुसीबतों से बचाते हैं।
चाहिए गौदान जितना फल, श्रीहरि को चढ़ाएं तुलसी
कार्तिक माह में किसी भी दिन श्रीहरि को चढ़ाई गई तुलसी से व्यक्ति को कई गौदान के बराबर फल मिलता है। शास्त्रों की मानें तो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराने की परंपरा बेहद प्राचीन है। एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराते हैं। तो वहीं कुछ लोग द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह कराते हैं।
तुलसी विवाह के दिन से भगवान निंद्रा लोक से जाग जाते हैं। इसलिए इस एकादशी को देव उठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल तुलसी विवाह गुरुवार के शुभ संयोग में 23 नवंबर को किया जाएगा।
आप भी जान लें तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 22 नवंबर 2023: रात 11:03 मिनट से शुरू।
एकादशी तिथि 23 नवंबर 2023: रात 09:01 मिनट पर समाप्त होगी।
तुलसी विवाह विधि
ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह के लिए घर के अन्य सदस्यों की तरह ही तैयार होना चाहिए। जिस प्रकार विवाह या शादी समारोह में तैयार होते हैं। उसके बाद घर के आंगन या छत पर तुलसी का पौधा एक लकड़ी चौकी पर बिलकुल बीचों बीच रख दें।
तुलसी के गमले के लिए गन्ने का मण्डप सजाएं। उसके नीचे तुलसी का पौधा रखें। वहीं तुलसी जी पर समस्त सुहाग की सामग्री के साथ लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं। गमले में शालिग्राम जी रखें। पर ध्यान रखें कि शालिग्राम जी को चावल नहीं बल्कि उनपर तिल चढ़ाएं।
तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हुई हल्दी लगाएं और गन्ने के मण्डप पर हल्दी का लेप कर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसका पूजन करें। विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक का पाठ इस दौरान अवश्य करें।
इसके साथ ही कुछ मौसमी खाद्य पदार्थों में भाजी, मूली, बेर, आंवला आदि का भगवान को प्रसाद चढ़ाकर इस दिन से इनका सेवन प्रारंभ कर दिया जाता है।
उठो देव रक्षा करो
तुलसी विवाह के पूजन के बाद से विवाह कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इसी के साथ कुछ परंपराओं में तुलसी विवाह होने के बाद जब पूजन समाप्त हो जाता है।
तब तुलसी की चौकी को घर के सभी सदस्यों बार-बार उपर नीचे उठाते हुए कहते हैं उठो देव रक्षा करो, उठो देव रक्षा करो, क्वारन के ब्याव करो, ब्यावं के चलाओ करो।
मान्यता है ऐसा करने से घर के अविवाहितों का विवाह होने लगता है और जिनका विवाह हो चुका होता है उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।
तुलसी के पौधे के गमले के बाहर हिस्से को फूलों से सजाएं। गमले के चारों तरफ गन्ने गाड़कर मंडप बनाएं।
इसके बाद तुलसी जी के ये मंत्र पढ़ें
तुलसी पूजन का मंत्र
(ॐ सुभद्राय नमः, ॐ सुप्रभाय नमः)
तुलसी पत्र तोड़ने का मंत्र:
(मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी, नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते)
रोग मुक्ति का मंत्र :
(महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते)
तुलसी स्तुति का मंत्र :
(देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः, नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये)
अथ तुलसी मंगलाष्क मंत्र
ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः।
चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः।
प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः,
स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ,
गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः ।
गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी,
गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्।
गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः ।
मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥
गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती ।
स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥