भोपाल/ श्योपुर । MP Kuno National Park अंतरमहाद्वीपीय स्थानांतरण परियोजना के तहत अफ्रीका से चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (केपीएनपी) में लाये जाने के बाद केपीएनपी के आसपास पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। पर्यटन जगत से जुड़े लोगों को लग रहा है कि पर्यटन को बढ़ावा मिलने से स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। नयी दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार, देश के वन्य जीवन में विविधता लाने के अपने प्रयासों के तहत नामीबिया से लाए जा रहे चीतों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ेंगे। इस साल के शुरू में एक करार के तहत चीतों को नामीबिया से यहां लाया जा रहा है। इससे स्थानीय निवासियों में काफी उत्साह है और वे अभयारण्य में अफ्रीकी मेहमानों के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
पूर्व शाही परिवार से संबंध रखने वाले ऋषिराज सिंह पालपुर ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘यहां के लोग बहुत उत्साहित हैं। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। हम मोरवां में लगभग छह बीघा ( लगभग दो एकड़) जमीन पर एक रिजॉर्ट का निर्माण कर रहे हैं जिसमें कई सुविधाएं होंगी।’’ उन्होंने कहा कि यह रिजॉर्ट राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य प्रवेश द्वार से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की मौजूदगी से पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी और श्योपुर जिले और इसके आसपास के इलाकों में आगंतुकों के लिए सुविधाओं में इजाफा होगा। मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड की एक फ्रेंचाइजी ‘‘ मिडवे ट्रीट’’ के मालिक अशोक सर्राफ ने उम्मीद जताई की उद्यान में विशेष तौर पर बनाए गए बाड़ों में प्रधानमंत्री द्वारा चीतों को छोड़ने के बाद 17 सितंबर से यहां कारोबार बढ़ेगा। श्योपुर में पर्यटन बोर्ड की फ्रेंचाइजी के तहत एक होटल भी बनाया जा रहा है। श्योपुर-सवाई माधोपुर रोड पर एक निर्माणाधीन होटल और रिजॉर्ट के मालिक मनोज सर्राफ ने कहा कि चीतों के आने के बाद कुनो राष्ट्रीय उद्यान देश के वन्यजीव मानचित्र में एक विशेष स्थान प्राप्त करेगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में पांच कौशल शिविर स्थापित करने की घोषणा की है, जहां स्थानीय लोगों को आतिथ्य उद्योग से संबंधित रोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा।मप्र के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) जेएस चौहान ने कहा ‘‘यहां आने के बाद चीतों को पहले एक महीने के लिए छोटे बाड़ों में रखा जाएगा। फिर कुछ महीनों तक उन्हें बड़े बाड़ों में रखा जाएगा ताकि वे आसपास के वातावरण से परिचित हो सकें। इसके बाद उन्हें वन में छोड़ दिया जाएगा।’’ अधिकारी ने कहा, ‘‘हमने जानवरों को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में स्थानांतरित करने के दौरान आवश्यक कानूनी आदेश के अनुसार छह छोटे पृथक बाड़े स्थापित किए हैं।’’देश में अंतिम चीते की मौत वर्ष 1947 में वर्तमान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में हुई थी। इस प्रजाति को वर्ष 1952 में भारत से विलुप्त घोषित किया गया था। ‘अफ्रीका चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया’ वर्ष 2009 से चल रहा है जिसने हाल के कुछ सालों में गति पकड़ी है। भारत ने चीतों के आयात के लिए नामीबिया सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।