आपने बस्तर ओलंपिक का नाम तो ज़रूर सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि छत्तीसगढ़ के इस स्थानीय खेल महाकुंभ को 'ओलंपिक' क्यों कहा जाता है? आइए जानते हैं! बस्तर ओलंपिक सिर्फ एक सामान्य प्रतियोगिता नहीं, बल्कि शांति, प्रगति और सामाजिक एकता का एक महाशक्तिशाली संदेश है। इसकी शुरुआत बस्तर के युवाओं को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने, उनकी ज़बरदस्त प्रतिभा को निखारने, और सबसे ज़रूरी – क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति और पारंपरिक खेलों को राष्ट्रीय पटल पर लाने के मकसद से हुई थी। इसे 'बस्तर ओलंपिक' इसलिए कहते हैं क्योंकि यह बस्तर संभाग के सातों जिलों (कांकेर, दंतेवाड़ा, सुकमा, नारायणपुर, बीजापुर... आप सभी) के लाखों खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व करता है, ठीक वैसे ही जैसे ओलंपिक में दुनिया के देश करते हैं! 1 से 13 दिसंबर 2025 तक यह दूसरा संस्करण जगदलपुर में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ... लेकिन इस आयोजन की सबसे ख़ास और दिल को छू लेने वाली बात क्या थी? इसमें "नुआ बाट" यानी 'नया रास्ता' नाम की एक विशेष टीम ने भाग लिया... इस टीम में सरेंडर कर चुके नक्सली और नक्सल हिंसा से प्रभावित परिवारों के 600 से ज़्यादा सदस्य थे...सोचिए! खेल कैसे परिवर्तन का सबसे बड़ा वाहक बन सकता है! इस साल, 3 लाख 91 हज़ार से ज़्यादा खिलाड़ियों ने इस मंच पर अपनी प्रतिभा दिखाई.....बस्तर ओलंपिक में संभाग के हर गांव, ब्लॉक और जिले से चुने गए खिलाड़ी शामिल हुए। इसमें जूनियर और सीनियर दोनों वर्गों में, आधुनिक और पारंपरिक, कुल 11 खेलों की धूम रही। यानी कबड्डी, रस्साकशी, दौड़, हॉकी, बैडमिंटन... सब कुछ! इस आयोजन की भव्यता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इसका शुभारंभ मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने किया था, जबकि 13 दिसंबर को हुए समापन समारोह में देश के गृहमंत्री अमित शाह मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे। उन्होंने अपने हाथों से विजेताओं को पुरस्कृत किया। साथ ही, दिग्गज फुटबॉलर बाईचुंग भूटिया और बॉक्सिंग क्वीन मैरी कॉम ने भी खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाया। बस्तर ओलंपिक ने यह साफ़ कर दिया है कि बस्तर के युवा अब बंदूक छोड़कर हाथ में हॉकी और बैडमिंटन थामकर, विकास और सफलता के रास्ते पर चल पड़े हैं!
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