नई दिल्ली। खेलों का महाकुंभ यानी ओलंपिक (Olympics) 23 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। देश को इस बार कई खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद है। साल 1900 से 2016 तक भारत ने ओलंपिक में अब तक कुल 28 पदक अपने नाम किए हैं। इनमें नौ गोल्ड, सात सिल्वर और 12 कांस्य यानी ब्रॉन्ज मेडल शामिल हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ओलंपिक में आजाद भारत के पहले पदक विजेता कौन थे? यह बात ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं, इसलिए आज हम आपको आजाद भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता की कहानी बताएंगे।
स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक विजेता
खाशाबा दादासाहेब जाधव (Khashaba Dadasaheb Jadhav), जिन्हें KD Jadhav के नाम से भी जाना जाता है। ये स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक विजेता थे। इनका जन्म 15 जनवरी, 1926 को महाराष्ट्र के गुलेश्वर नामक गांव में हुआ था। जाधव ने फ्रीस्टाइल पहलवान के रूप में वर्ष 1952 में हेलसिंकी खेलों में कांस्य पदक जीता था। हालांकि, भारत ने हेलसिंकी ओलंपिक से पहले खेलों में पदक जीते थे, लेकिन सभी फील्ड हॉकी में आए थे, न कि व्यक्तिगत रूप से।
पद्म पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया
बतादें कि केडी जाधव एकमात्र ऐसे ओलंपिक पदक विजेता रहे, जिन्हें पद्म पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया। जाधव छोटी हाइट के थे इसलिए उन्हें ‘पॉकेट डायनेमो’ के नाम से भी जाना जाता था। केडी जाधव के परिवार को शुरू से ही कुश्ती का शौक था। उनके पिता दादासाहेब खुद भी पहलवान थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि एक बार ओलंपिक पदक विजेता केडी जाधव को कॉलेज में उनके स्पोर्ट्स टीचर ने टीम में शामिल नहीं किया था। क्योंकि छोटे कद के जाधव बेहद कमजोर दिखाई देते थे। हालांकि बाद में कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें प्रतियोगिता में भाग लेने की इजाजत दे दी थी।
घर गिरवी रखकर हेलसिंकी गए थे जाधव
केडी जाधव छोटे कद के जरूर थे लेकिन कुश्ती में माहिर थे। 1948 के लंदन ओलंपिक में वे छठे स्थान पर रहे थे। लेकिन इस दौरान उन्होंने अपने खेल से खूब सुर्खियां बटोरी थीं। जाधव, देश के लिए ओलंपिक में पदक लाने को इतने बेताब थे कि उन्होंने लंदन से वापस लौटते ही हेलसिंकी ओलंपिक खेलों की तैयारी शुरू कर दी। लेकिन जब हेलसिंकी जान का समय आया, तो उनके पास पैसे ही नहीं थे। ऐसे में पहले तो उन्हें राजाराम कॉलेज के उनके पूर्व प्रिंसिपल ने 7000 रूपये की मदद की, बाद में राज्य सरकार ने भी 4000 रुपये दिए। लेकिन जब यह रकम भी वहां जाने के लिए काफी नहीं थी, तो उन्होंने अपना घर गिरवी रख दिया और फिर हेलसिंकी का सफर तय किया।
हेलसिंकी ओलंपिक में किया कमाल
जाधव बैंटमवेट फ्रीस्टाइल वर्ग में कनाडा, मैक्सिको और जर्मनी के पहलवानों को पछाड़कर फाइनल राउंड में पहुंचे थे। लेकिन वह सोवियत संघ के पहलवान राशिद मम्मादबेयोव से हार गए। अब उनके पास मुकाबलों के बीच में आराम करने का समय नहीं था। जाधव थक चुके थे। इसके बाद ही उन्होंने जापान के शोहाची इशी (स्वर्ण पदक विजेता) का सामना किया, जिनके खिलाफ वह हार गए। हालांकि भारत का यह दिग्गज कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहा। ऐसा करके केडी जाधव स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता बने।
देश के हीरों बन गए थे जाधव
कांस्य पदक जीतकर जाधव देश के हीरो बन गए थे। जब वे हेलसिंकी से भारत लौटे तो उन्हें देखने के लिए भीड़ जमा हो गई थी। 100 बैलगाड़ियों से उनका स्वागत किया गया था। स्टेशन से घर पहुंचने में उन्हें 7 घंटे लगे थे। जो दूरी सिर्फ 15 मिनट में पूरी हो सकती थी। देश के लिए पदक लाने के बाद उन्हें 1955 में मुंबई पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी दी गई थी। पुलिस में बेहतरीन परफॉर्मेंस की बदौलत जाधव रिटायरमेंट से 6 महीने पहले असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर भी बनाए गए थे।
जीते जी उचित सम्मान नही दे सकी सरकार
लेकिन एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद इस महान पहलवान को बचाया नहीं जा सका। 58 साल की उम्र में केडी जाधव ने 1984 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। देश के लिए पहला पदक जीतने वाले जाधव को भारत सरकार जीते जी उचित सम्मान नही दे सकी। लेकिन ओलंपिक पदक जीतने के 50 साल बाद 2001 में उन्हें मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा साल 2010 में दिल्ली के इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुश्ती स्टेडियम का नाम केडी जाधव के नाम पर रखा गया था। एकमात्र ऐसे ओलंपिक पदक विजेता रहे, जिन्हें पद्म पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया।