रायपुर। छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी दल कांग्रेस भूपेश बघेल सरकार की कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा कर राज्य में अपनी सत्ता बरकरार रखने की उम्मीद लगाए हुए है। वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य सरकार के कथित भ्रष्टाचार, धर्मांतरण और अधूरे चुनावी वादों को लेकर सरकार को घेरना चाह रही है।
राज्य के दोनों प्रमुख दलों ने कहा है कि वे चुनाव में किसी भी नेता को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं करेंगे। राज्य में 10 ऐसे मुद्दे हैं जो विधानसभा चुनाव में हावी रह सकते हैं।
— भ्रष्टाचार— कांग्रेस सरकार कोयला खनन, शराब कारोबार, जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ), गोबर खरीद योजना और लोक सेवा आयोग में कथित घोटालों को लेकर आलोचना का सामना कर रही है।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) राज्य में कथित ‘कोयला लेवी’ रैकेट, शराब घोटाला, डीएमएफ फंड का उपयोग और एक अवैध ऑनलाइन गेमिंग/सट्टेबाजी ऐप से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामलों की जांच कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित शीर्ष भाजपा नेताओं ने अपनी रैलियों में इन मुद्दों को लेकर भूपेश बघेल सरकार को घेरा और मुख्यमंत्री पर छत्तीसगढ़ को कांग्रेस के लिए एटीएम में बदलने का आरोप लगाया।
हमले का जवाब देते हुए बघेल ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर उनकी सरकार की छवि को खराब करने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया।
-किसानों के लिए योजनाएं— तीन प्रमुख किसान समर्थक योजनाओं ने कांग्रेस को ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद की है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत सरकार ने खरीफ धान उगाने वाले करीब 23 लाख किसानों को 21,912 करोड़ रुपये की इनपुट सब्सिडी दी है।
राज्य में गोधन न्याय योजना (गोबर खरीदी योजना) के तहत पशुपालकों, गौठान समितियों और महिला स्व-सहायता समूहों को कुल 580 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर कृषि न्याय योजना ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन कृषि मजदूर परिवारों को वार्षिक वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, लगभग 3.55 लाख लाभार्थियों को सात हजार करोड़ रुपये की सहायता प्रदान की जा रही है। बघेल सरकार ने यह भी घोषणा की है कि वह चालू खरीफ सीजन के दौरान पहले के 15 क्विंटल धान की तुलना में 20 क्विंटल धान खरीदेगी। इन योजनाओं का सकारात्मक असर भाजपा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है।
-छत्तीसगढ़ियावाद — मुख्यमंत्री बघेल ने पिछले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ियावाद यानि क्षेत्रवाद को बढ़ावा दिया और क्षेत्रीय गौरव पर गर्व करने का लगातार अनुरोध किया। कांग्रेस ने दावा किया कि 15 साल के भाजपा शासनकाल में छत्तीसगढ़वासी पूरी तरह से हाशिये पर थे।
बघेल ने क्षेत्रीय त्योहारों, खेल, कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया। उन्होंने निर्देश दिया कि हर जिले में छत्तीसगढ़ महतारी (छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाली एक मातृ छवि) की एक प्रतिमा लगाई जाए। मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास ने तीजा-पोरा और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहारों की मेजबानी की।
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भी आयोजन किया। राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में देवगुड़ी और घोटुल (पारंपरिक सामुदायिक केंद्र) का निर्माण किया और आदिवासी परब सम्मान निधि की स्थापना की।
-ईसाई और गैर-ईसाई आदिवासियों के बीच तनाव, धर्म परिवर्तन— पिछले दो वर्षों में आदिवासी बहुल इलाकों, खासकर बस्तर संभाग से धर्म परिवर्तन को लेकर झड़प की कई घटनाएं सामने आईं। दिसंबर 2022 में नारायणपुर-कोंडागांव सीमा क्षेत्र से ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों और स्थानीय आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प की सूचना मिली थी।
भाजपा ने सरकार पर धर्मांतरण में शामिल लोगों को बचाने का आरोप लगाया। हालांकि कांग्रेस ने इस आरोप से इनकार किया।
-सांप्रदायिक हिंसा— अक्टूबर 2021 में कबीरधाम जिले और इस साल अप्रैल में बेमेतरा जिले में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बाद भाजपा ने सरकार पर एक विशेष समुदाय के प्रति पक्षपात करने का आरोप लगाया।
कांग्रेस ने भाजपा पर वास्तविक मुद्दों के अभाव में सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया। राजनीति के जानकारों के मुताबिक यह घटनाएं मध्य छत्तीसगढ़ में मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सकती है।
-शराबबंदी— कांग्रेस द्वारा शराबबंदी के प्रमुख चुनावी वादे को पूरा नहीं करने के लिए भाजपा ने बघेल सरकार पर निशाना साधा है। माना जाता है कि इस वादे से कांग्रेस को 2018 में महिलाओं का वोट पाने में मदद मिली थी।
-संविदा कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करना — यह 2018 के चुनावों में कांग्रेस द्वारा किया गया एक और प्रमुख वादा था जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। पिछले दो वर्षों में लगभग 1.50 लाख ‘संविदा’, दैनिक वेतनभोगी और आउटसोर्स कर्मचारियों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया है। भाजपा ने संविदा कर्मचारियों की मांग को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने का वादा किया है।
-अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण — अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), जो राज्य की आबादी का लगभग 52 प्रतिशत है, 27 प्रतिशत कोटे की मांग कर रहा है। तीन प्रमुख ओबीसी समुदायों, साहू, कुर्मी और यादव ने 2018 के चुनावों में बड़े पैमाने पर कांग्रेस का समर्थन किया था।
यह मुद्दा सत्ताधारी दल कांग्रेस के लिए उस समय चिंता का विषय बन गया जब पिछले साल छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य में समग्र कोटा बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने के भाजपा सरकार के 2012 के आदेश को रद्द कर दिया।
2012 के आदेश में अनुसूचित जाति के लिए कोटा चार प्रतिशत घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था, जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए कोटा 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 32 प्रतिशत कर दिया गया था।
ओबीसी के लिए आरक्षण 14 प्रतिशत अपरिवर्तित रखा गया था। कांग्रेस सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। बाद में राज्य विधानसभा में आरक्षण से संबंधित विधेयक पारित किया गया जिसके तहत आदिवासी समुदाय को 32 प्रतिशत, ओबीसी को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को चार प्रतिशत कोटा दिया गया।
इससे राज्य में कुल मिलाकर 76 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है। दोनों विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है। मई में उच्चतम न्यायालय ने सरकार को 58 फीसदी आरक्षण लागू करने का निर्देश दिया था।
-बुनियादी ढांचा— भाजपा ने आरोप लगाया है कि पिछले पांच वर्षों में राज्य में बुनियादी ढांचे का विकास रुक गया है और सड़कों की हालत खराब हो गई है।
-केंद्रीय योजनाएं— भाजपा ने बघेल सरकार पर केंद्र की प्रधानमंत्री आवास योजना को लागू करने में विफल रहने और जल जीवन मिशन को ठीक ढंग से लागू नहीं करने का आरोप लगाया है।
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